Betia Man-Eating Tiger Attack: 22 दिनों में तीसरी मौत, बिहार के बेतिया में फैली दहशत
बिहार के बेतिया जिले से आई यह खबर पूरे राज्य को हिला देने वाली है। Betia Man-Eating Tiger Attack का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। मंगुराहा वन क्षेत्र के गोबर्धना रेंज के बनहवा मटियरिया गांव में एक और व्यक्ति की जान जाने के बाद ग्रामीणों में भय और आक्रोश दोनों बढ़ गए हैं। यह घटना पिछले 22 दिनों में तीसरी मौत के रूप में सामने आई है, जिसने वन विभाग की लापरवाही को उजागर कर दिया है।
बिहार के बेतिया में Betia Man-Eating Tiger Attack से फिर दहशत!
22 दिनों में तीसरी मौत, ग्रामीणों में भय और वन विभाग की लापरवाही पर गुस्सा।
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तीसरी मौत ने बढ़ाई चिंता
शुक्रवार की देर शाम मटियरिया गांव के निवासी भजन मुसहर अपने मवेशियों के साथ लौट रहे थे। उसी दौरान पंडई नदी के किनारे झाड़ियों में छिपे बाघ ने उन पर हमला कर दिया। ग्रामीणों के अनुसार, बाघ ने कुछ ही पलों में भजन की जान ले ली। मौके पर मौजूद लोगों ने किसी तरह शोर मचाकर बाघ को भगाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

यह इस इलाके में 22 दिनों के भीतर हुई तीसरी मौत है। इससे पहले 12 सितंबर को सोनबरसा गांव की उमछि देवी, और अक्टूबर की शुरुआत में किसुन महतो इसी बाघ का शिकार बन चुके हैं। लगातार हो रहे इन हमलों ने मंगुराहा के आस-पास के सभी गांवों में डर का माहौल पैदा कर दिया है।
वन विभाग की निष्क्रियता पर सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार बाघ की मौजूदगी की सूचना वन विभाग (Forest Department) को दी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। विभाग की टीम न तो समय पर ट्रैकिंग कर पाई, न ही गांवों में कोई सुरक्षात्मक कदम उठाया गया।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि विभाग के अधिकारी सिर्फ बयानबाजी कर रहे हैं। न तो ड्रोन सर्विलांस किया गया और न ही ट्रैकिंग टीम ने बाघ की गतिविधियों का पता लगाया। अब ग्रामीणों ने खुद निगरानी के लिए समूह बना लिए हैं और लाठी-डंडों से चौकसी कर रहे हैं।
डर में जी रहे हैं ग्रामीण
गांवों में रात ढलते ही लोग अपने घरों से बाहर निकलने से डरते हैं। मवेशियों को खुले में छोड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा। ग्रामीणों का कहना है कि अगर वन विभाग जल्द कार्रवाई नहीं करता, तो उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी।
किसुन महतो के परिजन ने कहा —
“हम हर दिन डर में जी रहे हैं। बच्चों को बाहर भेजना मुश्किल हो गया है। बाघ कभी भी हमला कर सकता है और विभाग सिर्फ बयान दे रहा है।”
अधिकारियों के वादे, कार्रवाई नहीं
Forest Officials का कहना है कि बाघ की ट्रैकिंग के लिए टीम तैनात की गई है और जल्द ही उसे पकड़कर सुरक्षित इलाके में भेजा जाएगा। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है — अब तक न तो कोई गश्त बढ़ाई गई है और न ही पीड़ित परिवारों को कोई मुआवजा मिला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बेतिया और आसपास के क्षेत्र Valmiki Tiger Reserve के बफर ज़ोन में आते हैं, जहां Human-Wildlife Conflict की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जंगलों में जल और भोजन की कमी के चलते बाघ मानव बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं।
तकनीकी उपायों की जरूरत
वन्यजीव विशेषज्ञों का सुझाव है कि विभाग को अब तकनीकी कदम उठाने चाहिए — जैसे GPS collaring, drone surveillance, और rapid response teams का गठन। इससे न केवल बाघ की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकेगी, बल्कि ऐसी घटनाओं को समय रहते रोका भी जा सकेगा।
वेब स्टोरी:
Betia Man-Eating Tiger Attack ने बिहार के वन प्रबंधन और सुरक्षा तंत्र की खामियों को उजागर कर दिया है। यह सिर्फ एक बाघ का आतंक नहीं, बल्कि उस प्रणाली की विफलता है जो ग्रामीणों और वन्यजीव दोनों की सुरक्षा के लिए बनी है। जब तक विभाग ठोस और तेज कदम नहीं उठाता, तब तक बेतिया के लोग इस डर के साए में जीने को मजबूर रहेंगे।