धमदाहा की सियासत में मचा तूफान
धमदाहा की राजनीति में सोमवार का दिन हलचल भरा रहा। जदयू के मीडिया प्रदेश अध्यक्ष मनीष मंडल ने एक प्रेस वार्ता में पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा पर तीखा प्रहार किया।
यह प्रेस वार्ता जदयू धमदाहा प्रखंड अध्यक्ष शंभू जयसवाल के आवास पर आयोजित की गई, जहाँ पार्टी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में मंडल ने बेबाकी से कहा —
“नीतीश कुमार जी की वजह से ही वे विधायक बने, सांसद बने और राजनीतिक पहचान बनाई। परंतु आज वही व्यक्ति महत्वाकांक्षा और अवसरवाद की वजह से अपने ही घर से बेगाने हो गए हैं।”
इस बयान ने धमदाहा की राजनीतिक फिज़ा में नई बहस छेड़ दी है।
जड़ों से कटने का आरोप
मनीष मंडल ने अपने वक्तव्य में कहा कि संतोष कुशवाहा का राजनीतिक इतिहास अवसरवाद से भरा रहा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा —
“2005 से अब तक वे परिस्थितियों के अनुसार दल बदलते रहे हैं। नीतीश कुमार जी और नरेंद्र मोदी जी के नाम पर उन्होंने चुनाव जीते, पर खुद जनता के बीच कभी सक्रिय नहीं दिखे।”
मंडल ने आगे जोड़ा कि जब मैदान में कठिन संघर्ष की आवश्यकता होती थी, तब संतोष कुशवाहा अनुपस्थित रहते थे।
“जब मज़बूत उम्मीदवार सामने होते हैं, तब असली लड़ाई होती है। लेकिन वे उस वक्त भी सुबह 9 बजे तक सोकर उठते थे। जनता सब देखती है — कोई भी जनता को मूर्ख नहीं बना सकता।”
कुशवाहा समाज से दूरी पर उठे सवाल
जदयू नेता मनीष मंडल ने यह भी कहा कि संतोष कुशवाहा, अपने ही समाज से दूरी बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने तीखा प्रश्न दागा —
“कुशवाहा समाज से होने के बावजूद उन्होंने अपने ही समाज के लोगों को नज़दीक क्यों नहीं रखा? आखिर किस कारण उन्होंने अब जाकर राजद का दामन थामा? क्या जदयू में उनका सम्मान नहीं था, या फिर उनकी महत्वाकांक्षा अब भी शांत नहीं हुई?”
उनके इस बयान से यह स्पष्ट झलकता है कि जदयू के भीतर भी कई नेता अब संतोष कुशवाहा के राजनीतिक कदमों से असहज महसूस कर रहे हैं।
जदयू संगठन ने दिया सम्मान, फिर भी मोहभंग?
मंडल ने कहा कि जदयू संगठन ने हमेशा संतोष कुशवाहा को पूरा मान-सम्मान दिया।
“हमारे आदरणीय ऋषि सिंह जी, विधानसभा प्रभारी, लोकसभा प्रभारी — सभी ने मिलकर उनके लिए कार्य किया। लेकिन चुनाव के बाद जो फीडबैक सामने आया, उसने उनकी कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए।”
उनके अनुसार, पार्टी की निष्ठा और नेतृत्व पर सवाल उठाना अनुचित है। यदि कोई असंतोष था, तो उसे संगठन के भीतर उठाया जा सकता था। लेकिन सार्वजनिक रूप से पार्टी पर प्रहार करना राजनीतिक अनुशासन के विपरीत है।
मीडिया से सीधी अपील
प्रेस वार्ता के अंत में मनीष मंडल ने मीडिया से भी अपील की कि वे इस विषय पर संतोष कुशवाहा से जवाब मांगें।
“आप लोग भी पूछिए — आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिस पार्टी ने उन्हें नाम, पहचान और सम्मान दिया, उसी के खिलाफ अब वे मोर्चा खोल रहे हैं? क्या यही राजनीति है?”
मंडल के इस बयान ने स्पष्ट कर दिया कि अब जदयू में असंतोष का दौर खुलकर सामने आने लगा है।
आने वाले चुनावों का संकेत
धमदाहा की यह प्रेस वार्ता केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि आगामी चुनावी मौसम का संकेत भी मानी जा रही है।
जदयू के भीतर उठी यह आवाज़ बताती है कि अब जंग केवल टिकट की नहीं, बल्कि निष्ठा और भरोसे की भी है।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि यह विवाद आने वाले विधानसभा समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।
धमदाहा की यह हलचल सिर्फ एक क्षेत्रीय प्रकरण नहीं, बल्कि बिहार की व्यापक राजनीति का आईना है।
जहाँ एक ओर मनीष मंडल जैसे नेता निष्ठा और संगठन को सर्वोपरि मानते हैं, वहीं दूसरी ओर संतोष कुशवाहा जैसे नेता राजनीतिक अवसरों को साधने में विश्वास रखते हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस पक्ष को सही ठहराती है —
निष्ठा की राजनीति या महत्वाकांक्षा की चाल।