चेन्नई। Zoho Corporation के मुख्य वैज्ञानिक सरीधर वेंबु ने कहा कि भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में सफलता का मुख्य मंत्र है छोटे प्रयोग, पहल और विफलताओं से सीखने की क्षमता। उन्होंने यह विचार बुधवार को श्री रामचंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ़ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च (SRIHER) के 40वें दीक्षांत समारोह में व्यक्त किए।
वेंबु ने कहा कि भारत में प्रतिभाशाली लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है, जो देश में तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित करने में सक्षम हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी कंपनी दोषारोपण का खेल नहीं खेलती, बल्कि विफलताओं से सीखी गई सीखों को अपनाती है। यही दृष्टिकोण कंपनी को लंबी अवधि तक टिके रहने और नवाचार करने की शक्ति देता है।
वेंबु ने उदाहरण देते हुए कहा कि Zoho के ईमेल प्लेटफॉर्म और मेडिकल उपकरण विभाग में भी कंपनी ने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले पर्याप्त समय लिया। कई बार उन्हें संचालन को छोटा करने और पुनः प्रारूपित करने की आवश्यकता भी पड़ी। उन्होंने कहा, “सभी ये संभव हुआ क्योंकि हमने दोषारोपण नहीं किया। हमने सोचा – ‘चलो देखें कि हम क्या सीख सकते हैं।’”
उन्होंने यह भी जोर दिया कि छोटे प्रयोग और पहल किसी भी कंपनी या संगठन की सफलता की कुंजी हैं। विफलताओं को अवसर में बदलना, सुधारात्मक कदम उठाना और टीम के साथ साझा सीख लेना ही एक सतत और स्थायी व्यवसायिक रणनीति का हिस्सा है।
वेंबु ने बताया कि Zoho Corporation में इस दृष्टिकोण के कारण ही कंपनी ने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता हासिल की। चाहे वह सॉफ़्टवेयर विकास हो, क्लाउड प्लेटफॉर्म हो या मेडिकल उपकरण का निर्माण, हर विभाग ने समय लेकर सटीक और स्थायी समाधान तैयार किए।
दीक्षांत समारोह में कुल 1,871 स्नातकों को सम्मानित किया गया। इनमें 21 पीएचडी, 786 पोस्टग्रेजुएट और 1,084 अंडरग्रेजुएट शामिल थे। समारोह में SRIHER के चांसलर वी.आर. वेंकटाचलम और प्रो-चांसलर आर.वी. सेंगुतुवान भी उपस्थित थे।
वेंबु ने इस अवसर पर यह भी कहा कि भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। युवा प्रतिभाओं को खुला अवसर, प्रयोग और नवाचार की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। विफलताओं से डरने के बजाय उनसे सीखने की मानसिकता विकसित करना ही भारत को तकनीकी और व्यवसायिक क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती देगा।
उन्होंने जोर दिया कि आज की तकनीकी दुनिया में सफलता केवल तेज़ परिणामों में नहीं, बल्कि लगातार सुधार और सीखने की प्रक्रिया में निहित है। छोटे कदम, प्रयोग और धैर्य ही एक संगठन को दीर्घकालिक सफलता की ओर ले जाते हैं।
वेंबु का यह संदेश उन सभी छात्रों और पेशेवरों के लिए प्रेरणादायक है, जो नवाचार और उद्यमिता के क्षेत्र में कदम रखना चाहते हैं। उनका मानना है कि यदि भारत के युवा विफलताओं से सीखें और नई चुनौतियों को अपनाएं, तो देश न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में भी अग्रणी बन सकता है।
इस प्रकार, सरीधर वेंबु का अनुभव और दृष्टिकोण दर्शाता है कि विफलताओं से सीखना और दोषारोपण से बचना ही आधुनिक भारत में उद्यमिता, नवाचार और आत्मनिर्भरता का असली मंत्र है।