झाझा विधानसभा में आरजेडी का नया दांव
बिहार की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। जमुई जिले की झाझा विधानसभा सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपने वरिष्ठ नेता जयप्रकाश यादव को मैदान में उतारकर बड़ा सियासी कदम उठाया है। इस फैसले से न केवल स्थानीय समीकरण बदले हैं बल्कि पूरे सीमांचल और मगध क्षेत्र में नई हलचल पैदा हो गई है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ने जयप्रकाश यादव के नाम पर अंतिम मुहर लगाई है, जिसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है।
लालू परिवार के पुराने सिपाही को मिला मौका
जयप्रकाश यादव लंबे समय से लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने संगठन में कई अहम भूमिकाएँ निभाई हैं और पार्टी के कठिन दौर में भी साथ नहीं छोड़ा। अब जब झाझा सीट पर जातीय और राजनीतिक समीकरण जटिल हो चुके हैं, आरजेडी ने एक बार फिर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट देने का निर्णय लिया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह फैसला न केवल अनुभव पर आधारित है बल्कि झाझा में आरजेडी के जनाधार को पुनर्जीवित करने की रणनीति का हिस्सा भी है।
झाझा में बदल रहा है राजनीतिक परिदृश्य
झाझा विधानसभा क्षेत्र में अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रभाव रहा है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में स्थानीय मुद्दों के कारण मतदाताओं में असंतोष बढ़ा है। रोजगार, सड़क और शिक्षा जैसे बुनियादी सवाल एक बार फिर चुनावी चर्चा का केंद्र बन गए हैं। जयप्रकाश यादव के मैदान में उतरने से अब यह सीट बहुकोणीय संघर्ष का रूप लेने जा रही है। आरजेडी को उम्मीद है कि यादव, मुस्लिम और दलित वोटों का गणित इस बार पार्टी के पक्ष में काम करेगा।
कार्यकर्ताओं में जोश और जनता में उम्मीद
जयप्रकाश यादव के नाम की घोषणा होते ही झाझा और आसपास के क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। स्थानीय नेताओं ने कहा कि “जयप्रकाश जी का अनुभव और जनता से सीधा जुड़ाव आरजेडी के लिए बड़ा फायदा साबित होगा।” वहीं, मतदाताओं का एक वर्ग यह मानता है कि लंबे समय बाद झाझा को एक ऐसा उम्मीदवार मिला है जो क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देगा।

तेजस्वी यादव की रणनीति पर नजर
तेजस्वी यादव ने हाल के दिनों में संगठन में कई बदलाव किए हैं और युवा तथा अनुभवी नेताओं के संतुलन पर खास ध्यान दिया है। झाझा में जयप्रकाश यादव को उतारना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, तेजस्वी यादव आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जातीय गणित और स्थानीय मुद्दों को समान रूप से साधने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि पार्टी अपने खोए हुए जनाधार को वापस पा सके।
विपक्ष के लिए भी चुनौती
भाजपा और जदयू के स्थानीय नेता इस फैसले से सतर्क हो गए हैं। दोनों दलों को अब झाझा में मजबूत उम्मीदवार खड़ा करने की चुनौती है। वहीं कांग्रेस की नजर आरजेडी के साथ तालमेल पर टिकी है। अगर महागठबंधन का फार्मूला पहले जैसा रहा, तो झाझा की लड़ाई रोमांचक हो सकती है।
जनता की प्राथमिकता: विकास या जातीय समीकरण?
झाझा में जनता के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इस बार चुनाव जातीय समीकरण पर लड़ा जाएगा या विकास के मुद्दे पर। जयप्रकाश यादव ने अपने पहले ही संबोधन में कहा है कि वे “जात नहीं, जन की राजनीति” में विश्वास रखते हैं और झाझा को विकास की मुख्यधारा में लाने का संकल्प दोहराया है।
झाझा विधानसभा की यह जंग इस बार बेहद दिलचस्प होने जा रही है। आरजेडी ने अपने अनुभवी नेता पर भरोसा जताकर सियासी पत्ते खुल दिए हैं। अब देखना होगा कि जनता विकास के मुद्दे पर किसे मौका देती है — पुराने अनुभव को या नए चेहरों को।