विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस 2025 के अवसर पर केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने हड्डी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और आयुर्वेद के माध्यम से हड्डियों की मजबूती और रोग निवारण के महत्व पर जोर दिया है। ऑस्टियोपोरोसिस एक धीमी लेकिन गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो हड्डियों को कमजोर कर देती है और उन्हें टूटने के लिए अधिक संवेदनशील बना देती है। इसे अक्सर “मौन रोग” कहा जाता है क्योंकि अधिकांश मामलों में यह केवल हड्डी टूटने पर ही स्पष्ट होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों की ताकत और घनता के धीरे-धीरे कम होने के कारण उत्पन्न होता है। यह अक्सर हिप, कलाई या रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के रूप में प्रकट होता है, जिससे दर्द, मुद्रा में बदलाव और चोट के बाद धीमी रिकवरी जैसी समस्याएँ होती हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण में ऑस्टियोपोरोसिस
आयुर्वेद के अनुसार, ऑस्टियोपोरोसिस मुख्य रूप से वात दोष के विकार से जुड़ा होता है, जो हड्डियों की मजबूती को कमजोर करता है और हड्डी की घनता घटाता है। यह प्राचीन समझ आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से भी मेल खाती है, जो ऑस्टियोपोरोसिस को हड्डियों के खनिजों की कमी और उम्र-संबंधित हार्मोनल बदलावों से जोड़ती है।
केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान परिषद (CCRAS) के महानिदेशक प्रो. रबिनारायण आचार्य ने कहा, “ऑस्टियोपोरोसिस एक बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है, लेकिन आयुर्वेद के समग्र और रोग निवारक उपायों से इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। शास्त्रीय अवधारणा ‘अस्थि सौषिर्य’ आधुनिक विज्ञान में हड्डियों की भंगुरता की समझ से मेल खाती है। आयुर्वेद में समय पर रोकथाम, संतुलित आहार और अनुकूल जीवनशैली हड्डियों को मजबूत बनाने और स्वस्थ उम्र बढ़ने की दिशा में प्राकृतिक मार्ग प्रदान करती है।”
आयुर्वेदिक उपाय और हड्डियों का स्वास्थ्य
CCRAS ने ऑस्टियोपोरोसिस के प्रबंधन के लिए आयुर्वेदिक उपायों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया है:
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रसायण चिकित्सा: हड्डियों को मजबूत करने और उम्र से संबंधित क्षय को धीमा करने के लिए प्रारंभिक उपचारात्मक औषधियों का उपयोग।
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स्नेहन (थेराप्यूटिक मसाज): महा नारायण तेल, दशमूल तेल, चंदन बला लक्षदी तेल जैसे औषधीय तेलों से हड्डियों और जोड़ो को पोषण प्रदान करना।
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हर्बल औषधियाँ: लाक्षा गुग्गुलु, महा योगराज गुग्गुलु, प्रवाला पिष्टी, मुक्ताशुक्ति भस्म जैसी शास्त्रीय आयुर्वेदिक तैयारियों का प्रयोग हड्डियों की मजबूती और उपचार में।
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वात-शमन आहार एवं जीवनशैली: कुलथी, शुन्थी, लहसुन, मूंग, कूष्मांड़ जैसी आहार वस्तुएँ हड्डी की घनता और जीवंतता बनाए रखने में सहायक।
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योग और मध्यम व्यायाम: विशिष्ट आसनों से लचीलापन बढ़ता है, हड्डियों और जोड़ो में रक्त प्रवाह सुधरता है और जकड़न कम होती है।
नागरिकों के लिए संदेश
इस विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस पर, आयुष मंत्रालय विशेष रूप से वृद्धजन और रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाओं से आग्रह करता है कि वे आयुर्वेदिक निवारक उपायों, संतुलित पोषण और सौम्य शारीरिक गतिविधियों को अपने दैनिक जीवन में अपनाएँ। इस प्रकार की आदतों से हड्डियों को मजबूत किया जा सकता है, फ्रैक्चर का जोखिम कम होता है और स्वस्थ, सक्रिय जीवन सुनिश्चित किया जा सकता है।
आयुर्वेद न केवल हड्डियों की मजबूती में सहायक है, बल्कि यह संपूर्ण स्वास्थ्य, जीवन शक्ति और वृद्धावस्था में गुणवत्ता जीवन को बढ़ावा देने का प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है।