बिहार महागठबंधन में बाबूबरही सीट पर राजद और वीआइपी के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दृष्टिगत महागठबंधन में दरार गहराती दिखाई दे रही है। मधुबनी जिले की बाबूबरही विधानसभा सीट पर राजद और वीआइपी के उम्मीदवार आमने-सामने आने से गठबंधन में तनाव बढ़ गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस असहमति से महागठबंधन की चुनावी संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
दरार की जड़ें: बाबूबरही और गौड़ाबौराम का उदाहरण
दरभंगा जिले की गौड़ाबौराम सीट पर भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली थी। वहां राजद ने अपने प्रत्याशी को सिंबल दिया, लेकिन वीआइपी के नेता मुकेश साहनी ने अंतिम क्षण में अपने भाई संतोष साहनी को उम्मीदवार बनाया। निर्वाचन अधिकारी को सूचित करना पड़ा कि राजद के प्रत्याशी की स्थिति पर कोई अन्य आवेदन स्वीकार न किया जाए। इसी प्रकार, बाबूबरही सीट पर भी गठबंधन सहयोगियों के बीच मतभेद उभर कर सामने आया है।
बाबूबरही में मुकाबला: 12 सीटों की समस्या
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में कांग्रेस और राजद लगभग 12 सीटों पर आमने-सामने हैं। बाबूबरही सीट पर राजद ने अनिल सिंह कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया, वहीं वीआइपी ने पूर्व विधायक और जिला परिषद अध्यक्ष बिंदु गुलाब यादव को मैदान में उतारा। इससे गठबंधन में असहमति स्पष्ट रूप से सामने आई है।
चुनावी मोड़: बाबूबरही की जटिल स्थिति
बिंदु गुलाब यादव पहले झंझारपुर सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा में थे, लेकिन उन्होंने बाबूबरही से ताल ठोककर सीधे राजद के खिलाफ चुनावी मोर्चा खोल दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर अब भी सहमति नहीं बन पाई है।
अन्य उम्मीदवार और मुकाबले की गहराई
बाबूबरही में पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव के पुत्र आलोक यादव जन सुराज पार्टी से उम्मीदवार हैं। वहीं, जदयू ने मौजूदा विधायक मीणा कामत को फिर से खड़ा किया है। इसके अतिरिक्त, तेज प्रताप यादव की जनशक्ति जनता दल से शांति देवी भी उम्मीदवार हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि चुनावी लड़ाई में विभिन्न दलों के बीच जटिल मुकाबला होने जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि महागठबंधन के भीतर ऐसी असहमति गठबंधन की सुदृढ़ता पर संकट पैदा कर सकती है। सीटों के बंटवारे पर सहयोगियों के मतभेद से मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बन सकती है, जो कि चुनाव परिणामों पर असर डाल सकती है।
नजदीकी भविष्य में रणनीति
महागठबंधन के नेताओं को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि सीटों का विवाद चुनावी नुकसान में परिवर्तित न हो। इसके लिए नेताओं के बीच खुली बातचीत और रणनीतिक समझौता आवश्यक होगा। अन्यथा, बाबूबरही जैसी सीटें उनके लिए चुनौती बन सकती हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की स्थिरता पर बाबूबरही सीट जैसी घटनाएं गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं। सहयोगी दलों के बीच तालमेल स्थापित करना अब उनकी प्राथमिकता बन गया है। चुनावी मुकाबला अभी और भी रोचक और जटिल होने वाला है।