बिहार की राजनीति में अचानक बदलाव
छपरा। बिहार की राजनीति में सियासी तूफान ने अचानक जोर पकड़ा है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले परसा और बनियापुर सीटों से राजद के दो मौजूदा विधायक अपनी राजनीतिक दिशा बदलकर विपक्ष और सहयोगी दलों की ओर बढ़ गए हैं। इस बदलाव ने न केवल राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव को झटका दिया है, बल्कि सियासी गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
छोटेलाल राय का पाला बदलना
परसा के विधायक छोटेलाल राय ने अचानक जदयू का दामन थाम लिया। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। छोटेलाल राय की राजनीतिक यात्रा गौर करने योग्य है। वे पहली बार 2005 में जदयू के टिकट पर विधायक बने। 2010 में भी जदयू से जीत दर्ज की। लेकिन 2015 में लोजपा का दामन थामकर चुनाव लड़ा और हार गए। 2020 में राजद के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि छोटेलाल राय ने इस बार बेहद चालाकी से पाला बदला। सुबह राजद में थे, शाम को जदयू में और फिर रात में वापस राजद में लौट आए। यह राजनीतिक कौशल और चुनावी रणनीति का स्पष्ट संकेत है।
केदारनाथ सिंह का भाजपा का दामन थामना
वहीं, बनियापुर के विधायक केदारनाथ सिंह ने भी रातों-रात पाला बदलकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। केदारनाथ सिंह की राजनीतिक यात्रा जदयू से शुरू हुई। 2005 में मशरक विधानसभा सीट से विधायक बने। बाद में राजद में आए और बनियापुर सीट से तीन बार विधायक चुने गए।
हाल के लोकसभा चुनाव के दौरान से ही वे राजद से दूरी बना चुके थे। इस बार जब बनियापुर सीट भाजपा के खाते में आई, तो उन्होंने भी कमल का दामन थाम लिया। अब उनका मुकाबला राजद की चांदनी देवी से होगा।
राजनीतिक शतरंज और दल बदल
राजनीति में ऐसे पल अक्सर देखे जाते हैं जब नेता अपने सियासी भविष्य के लिए दल बदलते हैं। सारण जिले में एक ही रात में दो विधायकों का अलग-अलग दलों में शामिल होना और दोनों को तत्काल चुनावी टिकट मिल जाना एक अनोखी घटना है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह दल बदल का खेल दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में स्थायित्व बहुत कम है। विचारधारा, पार्टी निष्ठा या रिश्ते ज्यादा महत्व नहीं रखते; केवल चुनावी रणनीति और भविष्य की संभावनाएं ही निर्णायक होती हैं।
चुनावी रणभूमि में मतदाताओं के लिए रोमांच
परसा और बनियापुर विधानसभा सीटों के मतदाताओं के लिए यह चुनाव अब और भी दिलचस्प हो गया है। सारण ही नहीं, पूरे बिहार के लोग यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि कौन-सा नेता इस रंग बदलते माहौल में असली चमक दिखाएगा।
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि यह घटना आगामी चुनाव में बड़े पैमाने पर राजनीतिक हलचल और सियासी रणनीति का संकेत देती है। नेताओं ने अपनी नई जमीन तलाश ली है और चुनावी खेल की शुरुआत हो चुकी है।
बिहार में सियासी उठापटक और दल बदल की यह कहानी दर्शाती है कि यहां कोई भी स्थिति स्थायी नहीं रहती। न विचारधारा, न पार्टी, और न ही व्यक्तिगत रिश्ते। केवल चुनावी रणनीति और अवसरवाद ही निर्णायक बनते हैं।