भागलपुर में छठ की तैयारी, लोक कला और आस्था का संगम
भागलपुर, जिसे अपनी प्राचीन संस्कृति और लोककला के लिए जाना जाता है, इस बार छठ पर्व को लेकर और भी विशेष तैयारी कर रहा है। पूरे शहर में घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ और सांस्कृतिक सजावट को देखते हुए यह साफ दिखाई देता है कि लोक आस्था और कला का संगम अब और भी जीवंत हो गया है। इस बार खास बात यह है कि छठ घाटों पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए मंजूषा पेंटिंग से सजे सूप का प्रयोग किया जाएगा।
मंजूषा सूप: भागलपुर की पहचान
भागलपुर की पारंपरिक मंजूषा कला, जो अपनी जीवंत रंगों और रूपांकनों के लिए प्रसिद्ध है, अब छठ पर्व के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान और मजबूत करेगी। मंजूषा गुरु मनोज पंडित ने बताया कि उनके मार्गदर्शन में इस बार सूपों को विशेष रूप से सजाया गया है। उन्होंने कहा,
“हम चाहते हैं कि छठ पर्व केवल श्रद्धा का प्रतीक ही न बने, बल्कि भागलपुर की प्राचीन लोककला को भी जन-जन तक पहुँचाया जाए।”
इस पहल से यह साफ संकेत मिलता है कि भागलपुर की संस्कृति और लोककला को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।
छठ घाटों पर अनोखा दृश्य
इस बार घाटों पर जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, तब श्रद्धालु मंजूषा सूपों के माध्यम से अपनी भक्ति प्रकट करेंगे। ये सूप न केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा होंगे, बल्कि भागलपुर की सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत चित्रण भी पेश करेंगे। सूपों पर पारंपरिक चित्रांकन और स्थानीय रंगों का मिश्रण इसे और भी आकर्षक बनाता है।
भागलपुर के घाटों पर इस बार बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों की एक अद्भुत झलक देखने को मिलेगी। लोग न केवल सूर्य देव को अर्घ्य देंगे, बल्कि लोककला के संरक्षण और प्रसार में भी योगदान देंगे।
कलाकारों की मेहनत और समर्पण
मंजूषा सूपों की तैयारी में भागलपुर के स्थानीय कलाकारों ने भी अपनी पूरी मेहनत लगाई है। सृष्टि सिंह, एक प्रमुख कलाकार ने कहा,
“हमारा उद्देश्य केवल सजावट करना नहीं है, बल्कि लोककला को छठ पर्व के माध्यम से नई पहचान देना है। यह हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।”
संपूर्ण टीम ने दिन-रात मेहनत करके यह सुनिश्चित किया कि हर सूप पूरी तरह से पारंपरिक और आकर्षक रूप में तैयार हो।
लोक कला और आस्था का संदेश
भागलपुर में इस बार छठ पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहेगा। यह लोक कला और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक बनेगा। लोग इस अनोखे अनुभव के माध्यम से यह समझ पाएंगे कि हमारे त्योहार केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कला और संस्कृति के संवाहक भी हैं।
इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि भागलपुर की संस्कृति और लोककला में अब नई जान फूंकने का प्रयास किया जा रहा है। छठ पर्व, जो कि हिन्दू धर्म का एक महापर्व है, अब लोककला के माध्यम से और भी व्यापक रूप से अपनी पहचान बनाएगा। भागलपुर के घाटों पर श्रद्धालु जब सूर्य देव को अर्घ्य देंगे, तब यह दृश्य न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करेगा, बल्कि लोककला की गरिमा और महत्व को भी उजागर करेगा।