छठ पूजा 2025: चार दिन और पूजा का महत्व
छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव (भगवान भास्कर) और उनकी बहन छठी मैया (ऊषा देवी) की उपासना के लिए होता है। पर्व का उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि है।
चार दिन की विधि
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पहला दिन – नहाय खाय: शरीर और मन की शुद्धि के लिए व्रती स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
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दूसरा दिन – खरना: निर्जला व्रत से पूर्व गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है।
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तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर आभार व्यक्त किया जाता है।
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चौथा दिन – उषा अर्घ्य: उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
संध्या और उषा अर्घ्य का शुभ मुहूर्त 2025
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खरना पूजा: 26 अक्टूबर, शाम 5:35 PM – 8:22 PM
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संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर, शाम 5:40 PM
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उषा अर्घ्य: 28 अक्टूबर, सुबह 6:30 AM
सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र में अर्घ्य देने से स्वास्थ्य और ऊर्जा में वृद्धि होती है।
छठ पूजा सामग्री सूची
पूजा सामग्री में शामिल हैं:
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बांस का सूप और डालियां, कोसी, पितल या कांसे का लोटा, थाली, कलश
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दीपक, अगरबत्ती, धूप, कपूर, कपड़ा (लाल या पीला दुपट्टा)
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आम की लकड़ी, गंगाजल, गन्ना, नारियल, सेब, केला, अमरूद, संतरा, नींबू, अनार, नाशपाती
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नए धान का चावल, गेहूँ का आटा, गुड़, घी, दूध, केला के पत्ते, फूल, सिंदूर, हल्दी, रोली, कुमकुम, तेल, बत्ती
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नया कपड़ा (साड़ी या धोती), आटा का दीपक, सोहारी, सुपारी, पान, इलायची, लौंग, धागा, मौली, कच्चा सूत
पूजा के दौरान गीत और मंत्र
छठ पूजा में लोकगीत और मंत्रों का विशेष महत्व है। कुछ लोकप्रिय छठी मैया गीत:
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ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
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मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
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पहिले पहिल हम कईनी, छठी मैया व्रत तोहर।
ये गीत व्रतियों और श्रद्धालुओं के वातावरण को भक्ति और ऊर्जा से भर देते हैं।
प्रसाद और अर्घ्य की परंपरा
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खरना का प्रसाद: गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी, केला और शुद्ध जल।
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संध्या और उषा अर्घ्य: अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
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प्रमुख फल: डाभ नींबू, अनानास, केला, गन्ना, सिंघाड़ा।
व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यदेव व छठी मैया से स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
छठ महापर्व 2025 उत्तर भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। संध्या और उषा अर्घ्य का समय, पूजा की विधि और मंत्रों का पालन व्रतियों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह पर्व न केवल सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का अवसर है, बल्कि समाज में स्वास्थ्य, एकता और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का माध्यम भी है।