🔔 नोटिस : इंटर्नशिप का सुनहरा अवसर. पत्रकार बनना चाहते हैं, तो राष्ट्रभारत से जुड़ें. — अपना रिज़्यूमे हमें digital@rashtrabharat.com पर भेजें।

Delhi Riots 2020 Case: सुप्रीम न्यायालय ने 2020 दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय देने से किया इंकार

Delhi Riots 2020 Case
Delhi Riots 2020 Case Supreme Court Refuses Extra Time – सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देने से किया इंकार
अक्टूबर 27, 2025

न्यायालय का स्पष्ट निर्देश : समय सीमा में दे जवाब

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में दिल्ली पुलिस को झटका देते हुए, कार्यकर्ताओं उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और मीरन हैदर की ज़मानत याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का अतिरिक्त समय देने से इंकार कर दिया।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि इस मामले में पहले से पर्याप्त समय दिया जा चुका है और अब विलंब स्वीकार्य नहीं होगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ज़मानत मामलों में “काउंटर एफिडेविट” दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ऐसे मामलों में न्यायालय त्वरित निर्णय की अपेक्षा करता है।


दिल्ली पुलिस ने मांगा अतिरिक्त समय, न्यायालय ने ठुकराया

सुनवाई के दौरान, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने दिल्ली पुलिस की ओर से उपस्थित होकर कहा कि उन्हें उत्तर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया जाए। किन्तु पीठ ने यह आग्रह अस्वीकार करते हुए कहा कि पिछले आदेश में ही यह स्पष्ट किया गया था कि सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी और उसी दिन मामले का निपटारा किया जाएगा।

Delhi Riots 2020 Case
Delhi Riots 2020 Case Supreme Court Refuses Extra Time – सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देने से किया इंकार

‘पांच वर्ष से कारागार में हैं अभियुक्त’ : कपिल सिब्बल की दलील

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उमर खालिद की ओर से प्रस्तुत होकर कहा कि अभियुक्त पांच वर्षों से कारागार में निरुद्ध हैं, जबकि न्यायिक प्रक्रिया अत्यधिक विलंब का शिकार हो रही है। उन्होंने कहा कि यह केवल कानूनी अधिकारों का प्रश्न नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी मामला है।

इसी क्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पूरे प्रकरण का मूल मुद्दा “विलंब” है — और अब इस मामले में और देर नहीं होनी चाहिए।

Delhi Riots 2020 Case
Delhi Riots 2020 Case Supreme Court Refuses Extra Time – सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देने से किया इंकार

उच्च न्यायालय ने पहले ही किया था ज़मानत से इंकार

सर्वोच्च न्यायालय ने इस वर्ष 22 सितंबर को दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था, जब याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2 सितंबर को नौ अभियुक्तों की ज़मानत याचिका अस्वीकार की थी, जिनमें उमर खालिद और शरजील इमाम प्रमुख थे।

न्यायालय ने कहा था कि “षड्यंत्रकारी हिंसा” को नागरिक प्रदर्शनों के आड़ में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि भारतीय संविधान नागरिकों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार देता है, परंतु यह अधिकार निरपेक्ष नहीं है और उस पर “युक्तिसंगत प्रतिबंध” लागू होते हैं।


दंगों की पृष्ठभूमि : नागरिकता संशोधन कानून के विरोध से उपजी हिंसा

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोगों की मृत्यु हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
यह हिंसा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी।

दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य को गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम – UAPA और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के अंतर्गत आरोपित किया था। पुलिस का दावा था कि ये सभी “षड्यंत्र के सूत्रधार” थे जिन्होंने हिंसा की साजिश रची।

अभियुक्तों ने इन सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि वे केवल शांतिपूर्ण विरोध का हिस्सा थे।


न्यायालय की टिप्पणी : शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही लोकतंत्र की आत्मा है

उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान यह भी रेखांकित किया कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है, परंतु यदि इसका प्रयोग हिंसा भड़काने के लिए किया जाए तो यह संविधान के ढांचे को हानि पहुँचा सकता है।

न्यायालय ने यह संकेत दिया कि अब वह 31 अक्टूबर को इस मामले की विस्तृत सुनवाई करेगा और संभवतः अंतिम निर्णय देगा।


न्याय और विलंब का संतुलन

इस मामले ने एक बार फिर यह प्रश्न उठाया है कि आतंकवाद-रोधी कानूनों के अंतर्गत ज़मानत प्रक्रिया किस हद तक लंबी खिंच सकती है।
जहाँ एक ओर राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण भी न्याय व्यवस्था का मूल तत्व है।


यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।


 

Rashtra Bharat
Rashtra Bharat पर पढ़ें ताज़ा खेल, राजनीति, विश्व, मनोरंजन, धर्म और बिज़नेस की अपडेटेड हिंदी खबरें।

Breaking