देश की राजनीतिक दिशा-निर्धारण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। Election Commission of India (ई सी आई) ने जल्द ही देशव्यापी रूप से वोटर सूची के Special Intensive Revision (एसआईआर) के पहले चरण की शुरुआत करने की दिशा में संकेत दिए हैं। इसके तुरंत बाद, Omar Abdullah ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि इस तरह की विशाल पहल में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और पहले आगामी विधानसभा चुनावों, खासकर Bihar में मतदान प्रक्रिया पूरी हो जाने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए।
हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि
निर्वाचन आयोग के अनुसार, एसआईआर का उद्देश्य भारत में मतदाता सूची को व्यापक रूप से पुनर्स्थापित करना है — जिसमें पुराने एवं अनुपस्थित नामों की पुनः जाँच-पड़ताल, नए नामों का समावेश और सूची की पारदर्शिता व निष्पक्षता सुनिश्चित करना शामिल है।इस प्रक्रिया को 10-15 राज्यों में पहले चरण में लागू किए जाने की संभावना है, जिसमें उन राज्यों को प्राथमिकता दी गई है जहाँ आगामी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
ओमर अब्दुल्ला की आपत्ति और सुझाव
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने कहा है कि ई सी आई को तुरंत देशव्यापी एसआईआर के लिए आगे नहीं बढ़ना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया:
“पहले बिहार-विधानसभा चुनाव पूरी तरह हो जाएँ, तब देखें कि यह प्रक्रिया वास्तव में लाभदायक है या नहीं, उसके बाद ही देश के अन्य हिस्सों में लागू करना चाहिए।”
उनका तर्क है कि जल्दबाजी यह धारणा पैदा कर सकती है कि चुनावी प्रक्रियाओं के पीछे राजनीतिक दबाव है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पूर्व में हुए परिसीमन (डीलिमिटेशन) की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था, न कि केवल जनता के बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए।
प्रत्युत्तर और राजनीतिक मायने
चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि ओमर अब्दुल्ला की यह टिप्पणी समय-सापेक्ष है क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव जैसे संवेदनशील चुनाव के समय लागू होने योग्य किसी बड़े बदलाव को व्यापक रूप से देखा जाता है। एसआईआर की प्रक्रिया में समय-सीमा, दस्तावेजों की माँग और मतदाता सूची से हटाए जाने वाले नामों का खुलासा-प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों में पहले से ही चिंताएँ हैं।
ऐसे में ओमर ने कहा है कि “अगर इस तरह की प्रक्रिया जल्दी में की जाती है तो यह राजनीतिक पक्षपात का आभास दे सकती है और आयोग की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है।”
आगे की चुनौतियाँ और दिशा-निर्देश
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चुनाव आयोग को निर्णय-प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी — जैसे कि सूची में नाम हटने वालों की संख्या, कारण एवं पुनर्प्रवेश के उपाय स्पष्ट हों।
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उचित समय चुनना होगा ताकि चुनावी तैयारियों व स्थानीय प्रक्रियाओं में व्यवधान न आए। ऐसा माना जा रहा है कि स्थानीय निकाय उपचुनाव या निर्वाचन कार्य पहले हों तो एसआईआर को बाद में लागू किया जाएगा।
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राजनीतिक दलों का भरोसा जीतना है कि यह प्रक्रिया सर्वहित में है, किसी पार्टी-विशेष को लाभ देने के लिए नहीं। ओमर का बयान इस दिशा में एक चेतावनी की तरह है।
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आम मतदाताओं को जागरूक करना होगा कि उनके नाम सूचियों में शामिल हों और यदि किसी कारणवश नाम नहीं है तो समाधान-मार्ग उपलब्ध हों।
जिस प्रकार लोकतंत्र में मतदाता-सूची का सही होना निर्वाचित प्रतिनिधियों की वैधता और प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिए अनिवार्य है, उसी प्रकार यह भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी बड़ी प्रक्रिया बिना व्यापक चर्चा, तैयारी और निष्पक्षता के न शुरू हो जाए। ओमर अब्दुल्ला का सुझाव कि पहले बिहार चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाए, एक व्यावहारिक प्रस्ताव है जो आयोग तथा राजनीति दोनों के लिए सावधानी के संकेत देता है। यदि सही समय-प्रबंधन और निष्पक्षता के साथ एसआईआर लागू किया जाए, तो यह देश के निर्वाचन तंत्र को सुदृढ़ करने में सहायक हो सकता है।