घाटशिला उपचुनाव में बढ़ी सियासी गर्मी
घाटशिला विधानसभा उपचुनाव झारखंड की राजनीति में नया अध्याय लिखने जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। दूसरी ओर भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज कर राज्य में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करना चाहती है। दोनों दलों के लिए यह चुनाव सम्मान और अस्तित्व का मामला बन चुका है।
आदिवासी और कुड़मी मतदाता बने चुनाव की धुरी
घाटशिला विधानसभा में लगभग 45 प्रतिशत आदिवासी और 45 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं। इनमें कुड़मी समुदाय की संख्या सबसे प्रभावशाली है। यही समुदाय इस बार चुनाव की दिशा तय करेगा। आदिवासी समाज के भीतर झामुमो और भाजपा दोनों के समर्थक मौजूद हैं, जिससे सीधी टक्कर के आसार हैं।
कुड़मी-कुरमी समुदाय की संख्या यहां करीब 20 हजार के आसपास है। पिछले चुनाव में झामुमो के रामदास सोरेन ने भाजपा को 22,446 मतों से हराया था। उनके निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। अब मैदान में उनके बेटे सोमेश चंद्र सोरेन हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट दिया है।
पारिवारिक मुकाबला, पर मतों में बिखराव संभव
यह चुनाव दो संताल परिवारों के बीच हो रहा है। दोनों उम्मीदवार आदिवासी समाज से हैं, इसलिए समुदाय के मत दोनों ओर बंट सकते हैं। भाजपा लोजपा के सहारे दलित मतों को अपने पाले में करने की कोशिश में है, जबकि झामुमो गठबंधन मुस्लिम मतदाताओं पर ध्यान दे रहा है।
भाजपा के लिए विद्युतवरण महतो का प्रभाव भी निर्णायक साबित हो सकता है। वे जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं और घाटशिला में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है।
प्रचार में झोंकी ताकत, नेताओं की मौजूदगी बढ़ी
घाटशिला में अब तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी, चंपाई सोरेन, आदित्य साहू, भानु प्रताप शाही और नवीन जायसवाल प्रचार में जुटे हैं। झामुमो की ओर से हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की चुनावी सभाओं का इंतजार है। भाजपा का दावा है कि जनता राज्य सरकार को उपचुनाव में सबक सिखाएगी, जबकि झामुमो का कहना है कि जनता हेमंत सरकार के विकास कार्यों को याद रखेगी।
कुड़मी समुदाय का एसटी दर्जे का मुद्दा गर्माया
इस चुनाव का सबसे बड़ा सामाजिक मुद्दा कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग है। आदिवासी संगठनों ने इसका विरोध किया है। झामुमो और भाजपा दोनों ही इस मुद्दे पर सतर्क हैं। किसी भी पक्ष की स्पष्ट राय सामने नहीं आई है।
यह चुप्पी दोनों दलों के पारंपरिक वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है। झामुमो को डर है कि आदिवासी मतों में दरार पड़ सकती है, वहीं भाजपा को उम्मीद है कि कुड़मी समाज उसे समर्थन देगा।
मतदाताओं की खामोशी, परिणाम पर सभी की निगाहें
घाटशिला सीट पर 300 बूथों में कुल 2,55,823 मतदाता हैं। इनकी खामोशी दोनों दलों को बेचैन कर रही है।
भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन पिछले चुनाव में 75,910 वोट लाए थे। अब देखना है कि वे इस बार पिछली बढ़त से आगे बढ़ पाते हैं या नहीं।
झामुमो उम्मीदवार सोमेश चंद्र सोरेन अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए मैदान में हैं।
कौन जीतेगा, यह तो मतगणना के दिन तय होगा, पर घाटशिला का यह चुनाव झारखंड की राजनीतिक दिशा तय कर सकता है।
जनता के मूड पर टिकेगी हेमंत सरकार की प्रतिष्ठा
यह उपचुनाव हेमंत सोरेन के लिए राजनीतिक अग्निपरीक्षा है।
अगर झामुमो हारता है, तो विपक्ष को बड़ा नैतिक बल मिलेगा।
अगर जीतता है, तो यह संदेश जाएगा कि आदिवासी बहुल इलाकों में अभी भी झामुमो का आधार मजबूत है।
भाजपा पूरी ताकत से मैदान में है, लेकिन जनता किस ओर झुकेगी, यही असली सवाल है।