4 नवंबर से शुरू होगा मतदाता सूची पुनरीक्षण का दूसरा चरण
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2025 —
भारत निर्वाचन आयोग ने सोमवार को घोषणा की कि मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का दूसरा चरण 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 नवंबर से फरवरी 2026 तक आयोजित किया जाएगा।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ग्यानेश कुमार ने कहा कि यह चरण देश के 51 करोड़ मतदाताओं को कवर करेगा और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि “कोई पात्र मतदाता सूची से छूटे नहीं और कोई अपात्र नाम सूची में शामिल न रहे।”
किन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में होगा पुनरीक्षण
दूसरा चरण जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजित होगा, वे हैं —
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
इनमें से तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में वर्ष 2026 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं, जबकि असम के लिए अलग से पुनरीक्षण आदेश जारी किया जाएगा।
असम के लिए अलग प्रक्रिया
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने बताया कि असम के लिए विशेष प्रावधान नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) के तहत लागू हैं।
उन्होंने कहा,
“असम में नागरिकता जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अंतिम चरण में है। इसलिए 24 जून को जारी SIR आदेश वहां लागू नहीं किया जा सकता। असम के लिए अलग आदेश और तिथि की घोषणा की जाएगी।”
SIR की समयसीमा और प्रक्रिया
दूसरे चरण की प्रक्रिया 4 नवंबर से एन्यूमरेशन स्टेट (गणना अवस्था) के साथ शुरू होगी, जो 4 दिसंबर तक चलेगी।
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ड्राफ्ट वोटर लिस्ट (प्रारंभिक सूची): 9 दिसंबर 2025 को जारी होगी।
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अंतिम मतदाता सूची: 7 फरवरी 2026 को प्रकाशित की जाएगी।
ग्यानेश कुमार ने बताया कि यह स्वतंत्र भारत के बाद नौवां विशेष गहन पुनरीक्षण है, जबकि पिछला SIR वर्ष 2002–2004 में हुआ था।
पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा: बिहार बना उदाहरण
निर्वाचन आयोग ने बताया कि SIR का पहला चरण बिहार में शून्य अपील (Zero Appeals) के साथ पूरा किया गया।
बिहार में मतदाता सूची सफाई अभियान के बाद अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित हुई जिसमें 7.42 करोड़ मतदाता शामिल हैं।
राज्य में 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा तथा 14 नवंबर को मतगणना होगी।
पश्चिम बंगाल को लेकर किसी टकराव की स्थिति नहीं
हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा SIR पर उठाए गए सवालों पर प्रतिक्रिया देते हुए, मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने स्पष्ट किया कि आयोग और राज्य सरकार के बीच किसी प्रकार का टकराव नहीं है।
उन्होंने कहा,
“निर्वाचन आयोग अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा रहा है, और राज्य सरकार भी अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाएगी। दोनों के बीच कोई टकराव नहीं है।”
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि सभी राज्य सरकारें आयोग को चुनाव प्रक्रिया और मतदाता सूची तैयार करने के लिए आवश्यक कर्मचारी उपलब्ध कराने की संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
स्थानीय चुनावों को लेकर केरल पर भी सफाई
केरल में स्थानीय निकाय चुनावों के चलते SIR को टालने की मांग पर CEC ने कहा कि अभी स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, इसलिए पुनरीक्षण में कोई बाधा नहीं है।
SIR का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
SIR का मूल उद्देश्य विदेशी अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें मतदाता सूची से हटाना है।
इसके तहत मतदाताओं के जन्म स्थान और नागरिकता की पुष्टि की जाएगी।
यह कदम विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों के विरुद्ध कई राज्यों में कार्रवाई चल रही है।
पिछले SIR की तिथियों का उपयोग मानक के रूप में
निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि हर राज्य में अंतिम बार हुए SIR को वर्तमान पुनरीक्षण के लिए कटऑफ वर्ष के रूप में माना जाएगा।
उदाहरण के लिए —
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बिहार में 2003 की मतदाता सूची का उपयोग आधार के रूप में किया गया।
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दिल्ली में 2008 की मतदाता सूची अंतिम गहन पुनरीक्षण के रूप में दर्ज है।
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उत्तराखंड में 2006 का SIR आखिरी बार हुआ था।
अधिकांश राज्यों ने 2002–2004 के बीच अंतिम SIR किया था और अब वे वर्तमान मतदाताओं को उस सूची से मिलान कर अपडेट कर रहे हैं।
निष्कर्ष: पारदर्शिता और सटीकता की दिशा में बड़ा कदम
निर्वाचन आयोग का यह कदम न केवल मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा, बल्कि नागरिकता से जुड़े विवादों को भी स्पष्ट करने में सहायक होगा।
4 नवंबर से शुरू होने वाला यह दूसरा चरण चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को मजबूत करेगा और आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक सटीक और अद्यतन मतदाता आधार तैयार करेगा।