सुप्रीम कोर्ट ने कहा — “घटना को प्राकृतिक रूप से समाप्त होने दें”
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस वकील के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने से इनकार कर दिया जिसने इस महीने की शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ नहीं बल्कि न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अदालत में जूता फेंकने का प्रयास किया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि यद्यपि यह घटना अदालत की मर्यादा के विपरीत है, लेकिन इस पर किसी प्रकार की सजा देना अब “अनावश्यक प्रसिद्धि” देना होगा।
पीठ ने कहा,
“यदि हम अवमानना नोटिस जारी करते हैं, तो यह उस वकील को अनावश्यक महत्व देगा। बेहतर होगा कि यह घटना अपने आप समाप्त हो जाए।”
71 वर्षीय वकील राकेश किशोर पर था मामला
घटना के केंद्र में 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर हैं, जिन्होंने 6 अक्टूबर को सीजेआई की अदालत में जूता फेंकने की कोशिश की थी। हालांकि जूता सीजेआई तक नहीं पहुंचा और उन्हें तुरंत अदालत सुरक्षा कर्मियों ने रोका।
इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर का लाइसेंस तत्काल निलंबित कर दिया था।
सीजेआई बी.आर. गवई ने तब अत्यंत संयम दिखाते हुए अदालत के कर्मचारियों को निर्देश दिया था,
“उसे जाने दो, बस अनदेखा करो।”
एससीबीए की याचिका और कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने इस घटना को अदालत की गरिमा के लिए गंभीर खतरा बताते हुए अवमानना की कार्यवाही की मांग की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह, एससीबीए की ओर से पेश हुए और कहा कि,
“सीजेआई का निर्णय व्यक्तिगत क्षमा था, न कि संस्थान की ओर से। हम इस घटना को यूं ही नहीं जाने दे सकते।”
उन्होंने कहा कि यदि उसी दिन उस वकील को जेल भेज दिया जाता, तो सोशल मीडिया पर चल रही “गौरवगाथा” जैसी चर्चाओं को रोका जा सकता था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति बागची की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
“जूता फेंकना या अदालत में नारे लगाना निश्चित रूप से अदालत की अवमानना है, परंतु कानून के अनुसार यह निर्णय उस न्यायाधीश पर निर्भर करता है जिसके समक्ष घटना हुई।”
उन्होंने आगे कहा कि जब सीजेआई स्वयं क्षमा कर चुके हैं, तो क्या किसी अन्य पीठ या प्राधिकरण को इस मामले को पुनर्जीवित करने का अधिकार है?
न्यायमूर्ति बागची ने भी इसी मुद्दे पर सवाल उठाया कि क्या Contempt of Courts Act की धारा 14 के तहत एक पीठ के निर्णय के बाद दूसरी पीठ अवमानना शुरू कर सकती है?
उन्होंने कहा,
“सीजेआई ने बड़ी उदारता दिखाई है। अब सवाल यह है कि क्या कोई अन्य पीठ या अटॉर्नी जनरल इस मामले को पुनः खोल सकता है?”
विकास सिंह की दलील — “यह क्षमा संस्थागत नहीं, व्यक्तिगत थी”
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि सीजेआई का क्षमा निर्णय संवेदनशीलता का परिचायक हो सकता है, लेकिन संस्थान की गरिमा को बनाए रखने के लिए न्यायालय को कदम उठाना चाहिए।
उन्होंने जोड़ा,
“आज लोग सोशल मीडिया पर मज़ाक बना रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई कदम नहीं उठाया। इससे गलत संदेश जा रहा है।”
सॉलिसिटर जनरल की राय — “कदम उठाने से मामला और बढ़ेगा”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी कठोर कदम से यह घटना और अधिक उभर सकती है।
उन्होंने कहा,
“उस व्यक्ति की सोशल मीडिया पर चर्चा बस कुछ दिनों की है। यदि हम नोटिस जारी करेंगे, तो वह स्वयं को शिकार (victim) के रूप में पेश करेगा।”
अदालत की सोच — निवारक दिशा-निर्देश होंगे अगला कदम
पीठ ने यह साफ किया कि अब अदालत निवारक दिशा-निर्देश (preventive guidelines) बनाने पर विचार करेगी ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
“किसी एक व्यक्ति को महत्व देने के बजाय हमें ऐसे उपाय करने चाहिए जो अदालत की गरिमा को भविष्य में सुरक्षित रखें।”
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे देशभर की अदालतों में हुई इसी प्रकार की घटनाओं का ब्यौरा एकत्र करें ताकि अगले सप्ताह इस पर चर्चा हो सके।
पृष्ठभूमि — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मर्यादा
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दूसरों की गरिमा और न्यायिक संस्था की प्रतिष्ठा की कीमत पर नहीं हो सकता।
अदालत ने सोशल मीडिया पर बढ़ते “अनियंत्रित भाषणों” को “धन कमाने के माध्यम” के रूप में वर्णित किया था और कहा था कि ऐसी प्रवृत्तियाँ लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं।
निष्कर्ष — गरिमा के साथ संवेदनशीलता का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दिखाया है कि संवेदनशीलता, संयम और संस्थागत गरिमा न्यायपालिका के मूल मूल्य हैं।
जहां एक ओर यह निर्णय अवमानना कानून की सीमाओं को रेखांकित करता है, वहीं दूसरी ओर यह दर्शाता है कि न्यायपालिका कठोर दंड के बजाय शालीन निवारक दृष्टिकोण अपनाना चाहती है।
यह फैसला संदेश देता है —
“न्यायालय की प्रतिष्ठा केवल दंड से नहीं, बल्कि संयम और विवेक से बनी रहती है।”