बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन का घोषणा-पत्र आज जारी, उपमुख्यमंत्री पद पर बदल सकता है समीकरण
डिजिटल डेस्क, पटना।
बिहार की राजनीति में आज का दिन निर्णायक माना जा रहा है। विपक्षी महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) आज मंगलवार को अपना बहुप्रतीक्षित घोषणा-पत्र जारी करने जा रहा है। यह कार्यक्रम ऐसे समय हो रहा है जब राज्य में चुनावी माहौल अपने चरम पर है और जनता की निगाहें तेजस्वी यादव, राहुल गांधी तथा अन्य गठबंधन नेताओं पर टिकी हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बुधवार से अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करने वाले हैं, ऐसे में इस घोषणा-पत्र का जारी होना विपक्ष के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
घोषणा-पत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर मुख्य ध्यान
सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन का यह घोषणा-पत्र शिक्षा, स्वास्थ्य और युवाओं के रोजगार जैसे विषयों पर केंद्रित रहेगा। यह भी संभावना है कि इसमें प्रत्येक परिवार में एक सरकारी नौकरी की गारंटी से जुड़ा वादा शामिल किया जाए, जिसे हाल में तेजस्वी यादव ने कई मंचों पर दोहराया था।
गठबंधन का दावा है कि यह वादा केवल चुनावी नारा नहीं बल्कि एक “वैज्ञानिक अध्ययन” पर आधारित नीति प्रस्ताव है। हालांकि, सत्ताधारी एनडीए (NDA) और जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने इसे अव्यावहारिक करार दिया है।
उपमुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा संभव
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि घोषणापत्र जारी होने के साथ ही उपमुख्यमंत्री पद के लिए एक नए नाम का भी एलान किया जा सकता है। फिलहाल यह पद तेजस्वी यादव के पास है, लेकिन गठबंधन समीकरणों को संतुलित करने के लिए एक अल्पसंख्यक या पिछड़े वर्ग के नेता को भी यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।
पिछले दिनों वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाने की संभावना जताई गई थी, जिससे निषाद समुदाय को साधने की कोशिश दिखी। अब यह भी कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय से उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की जा सकती है, जिससे सामाजिक संतुलन का संदेश दिया जाए।
INDIA ब्लॉक का जातीय संतुलन साधने पर फोकस
महागठबंधन का मुख्य उद्देश्य राज्य में जातीय और सामाजिक समीकरणों को साधना है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जारी “अति पिछड़ा संकल्प” में पहले ही अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए कई घोषणाएँ की जा चुकी हैं।
इसमें EBC समुदाय को सरकारी ठेकों में आरक्षण देने, अत्याचारों से सुरक्षा के लिए नया कानून लाने तथा आरक्षण सीमा बढ़ाने का भी वादा शामिल है।
यह भी दावा किया जा रहा है कि अगर गठबंधन सत्ता में आया, तो वह जातीय सर्वेक्षण के परिणामों के आधार पर आरक्षण कानून में संशोधन करेगा और केंद्र सरकार से इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करेगा ताकि इसे न्यायिक जांच से सुरक्षा मिले।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साझा मंच पर
महागठबंधन के घटक दलों के कार्यकर्ता इस घोषणा-पत्र से एक नई ऊर्जा की उम्मीद कर रहे हैं।
बुधवार को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव संयुक्त रूप से मुजफ्फरपुर और दरभंगा में रैलियाँ करने वाले हैं। यह पहली बार होगा जब दोनों नेता बिहार की धरती पर एक साथ मंच साझा करेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम विपक्षी एकता को मजबूती देगा और एनडीए के भीतर चल रहे आंतरिक मतभेदों का लाभ भी महागठबंधन को मिल सकता है।
त्योहार के बाद बढ़ी सियासी गर्मी
छठ पर्व की शांति के बाद बिहार में सियासी सरगर्मियाँ फिर से बढ़ गई हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने छठ अपने परिवारों के साथ मनाया, लेकिन अब सबकी निगाहें पटना पर टिकी हैं, जहाँ महागठबंधन अपने वादों की झड़ी लगाने वाला है।
जनता को उम्मीद है कि यह घोषणा-पत्र केवल वादों का पुलिंदा नहीं बल्कि बिहार की वास्तविक चुनौतियों — बेरोज़गारी, शिक्षा में गिरावट और स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरी — का समाधान प्रस्तुत करेगा।
राजनीतिक विश्लेषण: क्या बदलेंगे समीकरण?
विश्लेषकों का मानना है कि अगर महागठबंधन अपने वादों को विश्वसनीय रूप से प्रस्तुत कर पाता है, तो यह एनडीए के मजबूत जनाधार में सेंध लगा सकता है।
हालाँकि, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पहले ही आरोप लगा चुकी है कि गठबंधन ने मुस्लिम समुदाय को नज़रअंदाज़ किया है, जिससे कुछ सीटों पर विपक्षी वोटों में बँटवारा हो सकता है।
बिहार में अब चुनावी मुकाबला और दिलचस्प होता जा रहा है।
महागठबंधन का घोषणा-पत्र केवल वादों का दस्तावेज़ नहीं बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला दस्तावेज़ साबित हो सकता है।
अब देखना यह होगा कि जनता इन वादों को कितनी गंभीरता से लेती है और क्या यह गठबंधन को सत्ता के करीब ले जा पाता है या नहीं।