Narendra Modi द्वारा हाल ही में किये गए हमलों ने Rashtriya Janata Dal (राजद)-Indian National Congress (कांग्रेस) गठबंधन के घोषणापत्र को कड़ी आलोचना के केंद्र में ला खड़ा किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि विपक्षी गठबंधन ने अपने वादों को एक दर शीट-रेट-कार्ट के तौर पर प्रस्तुत किया है — जिसमें ‘रंगदारी’, ‘घूस-लूट’, ‘भ्रष्टाचार’ जैसे शब्दों को प्रमुखता मिल रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र प्रचार-प्रसार तेज हो गया है। इस क्रम में मोदी ने मुज्फ़्फ़रपुर एवं छपरा में जनसभाओं को संबोधित करते हुए गठबंधन पर तीखे प्रहार किये हैं, कहा कि उनका घोषणापत्र “हमारी आस्थाओं एवं प्रदेश की संस्कृति के खिलाफ” है।
हैंडलिंग वादों के पीछे का तर्क
घोषणापत्र में राजद-कांग्रेस गठबंधन ने 20 दिनों के भीतर हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने, 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने, पेंशन-भत्ता बढ़ाने जैसे बड़े वादे किये हैं। मोदी ने इन वादों को “रिटेल-लेन-रेंट” की भाषा कहा और आरोप लगाया कि ये केवल वोट बैंक बनाने के लिए हैं, भ्रष्टाचार-लूट की गारंटी के साथ। उनके अनुसार, यह गठबंधन पहले ही बिहार में ‘जंगलराज’ की याद ताज़ा कर चुका है।
मोदी ने सभा में संवाददाताओं को व्याख्यात्मक रूप से बताया कि राजद-कांग्रेस के वादों की “रेट-कार्ट” तैयार की गयी है, जहाँ हर वादे का मूल्य मान-चित्र तैयार करना संभव हो सकता है — “यह रंगदारी है, यह फिरौती है” — उन्होंने सवाल किया कि क्या यह व्यवस्था बिहार की बेटियों-भाइयों के हित में हो सकती है?
इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि छठ पूजा-सम्बंधित सामाजिक भावनाओं का भी इस गठबंधन द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे उन्होंने नकारात्मक रूप से देखा। यह निशाना उस वक्त अधिक तिरछा हो गया जब उन्होंने कहा कि गठबंधन “छठी मैया की पूजा को ड्रामा समझता है” — और यह जनता बहन-मां की आस्था का अपमान है
राजनीतिक परिदृश्य और रणनीति
बिहार की राजनीति में आगामी 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान की प्रायः तैयारी चल रही है। राजद-कांग्रेस की ओर से प्रस्तुत ‘तेजस्वी प्रण’ नामक घोषणा-पत्र में बेरोजगारी कम करने, परिवार-वार नौकरी देने, संविदा कर्मचारियों की स्थायीकरण जैसे वादे हैं।
लिहाजा, मोदी ने इसे न सिर्फ राजनीतिक वादा-विपणन कहा है, बल्कि इसे “भ्रष्टाचार-लूट का झंडा” करार दिया है, और मतदाताओं से आग्रह किया है कि वे बिहार को सुरक्षित हाथों में सौंपें।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया एवं आगे की राह
विश्लेषकों का कहना है कि मोदी का यह हमला उन मतदाताओं को टारगेट करता है जो वादों पर शक कर रहे हैं। पुराने समय में राजद-कांग्रेस सहयोगी दौर को ‘खराब प्रशासन’ के रूप में देखा गया था, और अब उसी इतिहास को पुनः गर्म करने की कोशिश कहा जा रहा है।
वहीं, राजद-कांग्रेस का यह कहना है कि उनकी योजनाएं जनता-हित में हैं, और उन्हें ‘लूट-घोटाला’ कह कर खारिज करना राजनीतिक सिद्धांत को कमजोर करता है। विपक्ष यह भी दावा कर रहा है कि मोदी सरकार ने बिहार में विकास नहीं कर दिखाया और इस कारण जनता परिवर्तन चाहती है।
अगले कुछ दिनों में घोषणापत्र में उठाये गए वादों की यथार्थता, चुनाव प्रचार की रणनीति और जनता-भावना का परीक्षण होगा। यह स्पष्ट है कि इस चरण में बिहार के मतदाता वादों और आरोपों के बीच अपना निर्णय सोच-समझ कर करेंगे। इस धरातल पर सवाल यह है: क्या यह प्रस्तावित वादे विकास के मार्ग पर ले जायेंगे, या राज्य को पिछले दौर की लूट-रंगदारी की ओर वापस खींचेंगे?
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।