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Bihar Chunav: विपक्षीय राजनीति में गरमा‐गर्म मोर्चा, बिहार में ’वोट बैंक’ और ’विकास’ का करामाती मिलन

Vote Bank vs Development
Vote Bank vs Development - Bihar में वोट बैंक राजनीति और विकास का संगम (Photo: PTI)
अक्टूबर 30, 2025

बिहार के दरभंगा जिले में हाल ही में आयोजित एक जनसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी महागठबंधन पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि विपक्ष केवल वोट बैंक की राजनीति कर रहा है, जबकि उनकी सरकार विकास और कल्याण के एजेंडे पर केन्द्रित है।

विकास-विरोधी आरोपों की गिरह

विषय के एक सर्वेक्षण अनुसार, बिहार में युवा बेरोज़गारी, मतदाता सूची में संशोधन और वोटर निष्कासन जैसी चिंताएं गहराती जा रही हैं। गृह मंत्री शाह ने कहा कि महागठबंधन (विपक्षी दलों का समूह) ने ‘वोट बैंक’ को ही अपना लक्ष्य बना लिया है और वास्तविक विकास की दिशा से हट गया है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष ने वंशवाद व योग्य नेतृत्व को दरकिनार कर दिया है।

विकास की योजनाओं का जोर

शाह ने सभा में यह उल्लेख किया कि दरभंगा में मेट्रो, एक नई एम्स और हवाई अड्डे की रूपरेखा तैयार है। साथ ही मिथिला संस्कृति के संरक्षण हेतु एक ५०० करोड़ रुपये के केंद्र की स्थापना का भी एलान किया गया। उन्होंने कहा कि यह दिखाने का तरीका है कि सरकार विकास-भारी पॉलिसी ला रही है, जबकि विपक्ष सिर्फ प्रतिज्ञा-पर्चे (“रैंटकित वादा”) बाँट रहा है।

वोट बैंक नीति और मतदाता सूची संशोधन

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में विशेष तीव्रता से की गई समीक्षा (SIR) के चलते कई गरीब-वर्ग, प्रवासी और ग्रामीण मतदाता प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं। आरोप है कि इस तरह की चल रही प्रक्रिया से विशेष रूप से अल्पसंख्यक व कमजोर वर्ग प्रभावित होंगे, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

युवा मतदाता और बेरोजगारी का दबाव

बिहार में युवाओं की बड़ी संख्या बाहर जाकर काम कर रही है और राज्य के अंदर रोजगार की कमी बड़ी समस्या है। एक सर्वेक्षण में बताया गया कि उम्र 15-29 वर्ष के बीच लगभग 9.9 % बेरोज़गार हैं।  गृह मंत्री ने इसे चुनौती माना और कहा कि उनकी सरकार ने महिलाओं व परिवारों तक सीधे कल्याण पहुँचाने के लिये योजनाएँ शुरू की हैं। विपक्षियों ने कहा कि यह अदम्य वादा-परक राजनीति है।

समापन विचार

दरभंगा की सभा ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव सिर्फ सीटों की लड़ाई नहीं बल्कि दो विचार-धाराओं की मुठभेड़ है — एक वह जिसमें विकास, कल्याण व संरचना पर बल है; दूसरी वह जिसमें वोट बैंक, वादा-कार्ड व रणनीति प्रमुख है। यदि विकास-एजेंडा सफल रहा, तो राज्य में बदलाव के संकेत मिल सकते हैं; परन्तु यदि वोटर निष्कासन व निष्क्रियता बनी रही, तो राजनीतिक भूगोल पुरानी तरह बना रह सकता है।

राजनीति की इस जंग में जनता ही निर्णायक होगी — क्या बिहार विकास की ओर बढ़ेगा या फिर रणनीति-निर्माता दलों की राजनीति उसी पुराने पटल पर चलती रहेगी?


यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।


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