बंगाल में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर राजनीतिक संग्राम
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए कोलकाता में एक बड़े विरोध मार्च की घोषणा की है।

ममता बनर्जी का विरोध मार्च
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कदम राज्य सरकार की सलाह के बिना लिया गया है। उन्होंने दावा किया कि यह कार्रवाई राजनीतिक रूप से प्रेरित है। ममता ने कहा कि वह मंगलवार को कोलकाता में एक विशाल विरोध मार्च का नेतृत्व करेंगी।
उन्होंने कहा, “हम लोकतंत्र की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरेंगे। यह एसआईआर प्रक्रिया मतदाताओं के अधिकारों को सीमित करने की कोशिश है।”
12 राज्यों में चलेगा विशेष पुनरीक्षण अभियान
चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण होगा।
पहला चरण 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलेगा।
मतदाता सूची का मसौदा 9 दिसंबर को प्रकाशित होगा और अंतिम सूची 7 फरवरी को जारी की जाएगी।
आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता सूचियों को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाने के लिए है।
बीजेपी का पलटवार, ममता पर आरोप
बंगाल में विपक्षी भाजपा ने ममता बनर्जी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया घुसपैठियों की पहचान में मदद करेगी।
उन्होंने उत्तर 24 परगना में ‘घुसपैठियों को बाहर निकालो’ अभियान के तहत जुलूस निकालने की घोषणा की।
भाजपा विधायक अग्निमित्रा पाल ने कहा, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीएलओ को धमका रही हैं ताकि एसआईआर प्रक्रिया को रोका जा सके।”
उन्होंने कहा कि बीएलओ अधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं और वे किसी दबाव में नहीं झुकेंगे।
शिक्षकों के इस्तेमाल पर तृणमूल में नाराजगी
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि शिक्षकों को बीएलओ के रूप में काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “शिक्षक पहले ही लंबा कामकाजी समय दे रहे हैं। अब उन्हें बीएलओ की जिम्मेदारी देकर और बोझ बढ़ाया जा रहा है।”
घोष ने कहा कि शिक्षा विभाग को पहले से इस तैनाती की कोई जानकारी नहीं थी।
उन्होंने इसे प्रशासनिक स्तर पर गड़बड़ी बताया।
राज्य सरकार और चुनाव आयोग के बीच टकराव
राज्य सरकार ने चुनाव आयोग से इस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की है।
तृणमूल नेताओं का कहना है कि यह निर्णय केंद्र के दबाव में लिया गया है।
वहीं आयोग ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल की राजनीति को और गर्म करेगा।
विपक्ष और तृणमूल की रणनीति
भाजपा मतदाता सूची में घुसपैठियों को हटाने के मुद्दे को प्रमुखता दे रही है।
वहीं तृणमूल कांग्रेस इसे केंद्र द्वारा राज्य पर दबाव बनाने की कोशिश बता रही है।
दोनों दल अपने-अपने समर्थकों को जुटाने में लगे हैं।
राजनीतिक माहौल लगातार तनावपूर्ण हो रहा है।
आगे की राह
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले हफ्तों में यह विवाद और गहराएगा।
एसआईआर प्रक्रिया पर विपक्ष और सत्ताधारी दल के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी रहेंगे।
चुनाव आयोग की भूमिका पर भी निगाहें टिकी रहेंगी।
राज्य में मतदाता सूची का पुनरीक्षण अब एक प्रशासनिक प्रक्रिया से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।