मधुबनी में मतदाताओं की नई सोच: वादों से अधिक विकास पर नजर
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले मधुबनी जिले में चुनावी माहौल जोरों पर है। लेकिन इस बार तस्वीर कुछ बदली हुई है। यहाँ के मतदाता केवल घोषणाओं या मुफ्त सौगातों के लालच में नहीं हैं, बल्कि वे इन वादों की वास्तविकता को परख रहे हैं। युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक, सबके मन में एक ही सवाल है — क्या रेवड़ियों से बिहार का विकास संभव है?
चुनावी वादों की कसौटी पर कस रहे हैं मतदाता
मिथिलांचल की धरती मानी जाने वाली मधुबनी में एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने-अपने वादों का पिटारा खोल रखा है। लेकिन यहाँ के मतदाता इन वादों को व्यवहारिकता की कसौटी पर कस रहे हैं।
बेनीपट्टी मेन रोड पर एक चुनावी चर्चा में युवा धीरेंद्र ठाकुर कहते हैं, “मुफ्त राशन या एक बार की सहायता से बिहार का विकास नहीं होगा। यह पैसा अगर उद्योग और रोजगार के साधनों पर लगाया जाए तो बेहतर होगा।”
वहीं, सुमन पटेल नामक एक अन्य युवक कहते हैं कि “महिलाओं को आर्थिक सहायता देना बुरा नहीं है, क्योंकि जब अन्य राज्य ऐसा कर रहे हैं तो बिहार में इसकी जरूरत और भी अधिक है।”
रेवड़ियों पर मतदाताओं की मिली-जुली राय
रेवड़ियों की राजनीति पर मतदाताओं में मतभेद साफ दिख रहा है। जयनगर के बुज़ुर्ग शिक्षक दिगंबर प्रसाद सिंह कहते हैं, “चुनाव को ध्यान में रखकर सौगातें देना गलत है, मगर जब यह पूरे देश में हो रहा है तो बिहार में इसे गलत ठहराना भी मुश्किल है।”
उनकी इस बात पर युवाओं ने मुस्कुराते हुए कहा कि अब जनता को चुनावी लाभ से अधिक स्थायी विकास की उम्मीद है।
उद्योग और रोजगार पर केंद्रित युवा
मधुबनी कलक्टेरियट के पास फल खाते हुए कुछ युवाओं ने बताया कि उन्हें मुफ्त योजनाओं से अधिक रोज़गार चाहिए। सोनू कुमार कहते हैं, “गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु का विकास उद्योगों से हुआ है, लेकिन बिहार अभी भी मुफ्त राशन और नकद सहायता पर निर्भर है।”
राजनगर के मिंटू पटेल ने कहा, “राज्य में शराबबंदी सिर्फ कागज़ों पर है। अवैध शराब का धंधा खुलेआम चल रहा है। सरकार को इन पर रोक लगाकर रोजगार बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए।”
शराबबंदी और सामाजिक चुनौतियाँ
नीतीश सरकार की शराबबंदी नीति पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मिंटू पटेल कहते हैं, “अब तो शराब की होम डिलिवरी होती है। यह एक बड़ा अवैध धंधा बन गया है जिससे प्रशासनिक भ्रष्टाचार भी बढ़ा है।”
उनका मानना है कि बिहार को केवल कानून लागू करने की नहीं, बल्कि समाजिक सुधार की भी आवश्यकता है।
जातिवाद से ऊपर उठने की जरूरत
कई मतदाताओं ने माना कि बिहार में वास्तविक विकास तभी संभव है जब राजनीति जाति और पंथ के दायरे से बाहर निकले। मिंटू पटेल कहते हैं, “हम कुशवाहा समाज से हैं, लेकिन अगर जाति से ऊपर नहीं उठेंगे, तो बिहार कभी आगे नहीं बढ़ेगा।”
मधुबनी की यह सोच इस बात की ओर संकेत करती है कि मतदाता अब केवल जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि विकास और प्रशासनिक कार्यक्षमता पर वोट देंगे।
एनडीए और महागठबंधन में कांटे की टक्कर
मधुबनी जिले की 10 विधानसभा सीटों पर इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। पिछली बार आठ सीटें एनडीए के खाते में गई थीं, लेकिन इस बार समीकरण बदल सकते हैं।
बिस्फी विधानसभा में भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी कुमार चौबे और हरियाणा के मंत्री राजेश नागर ने कार्यकर्ताओं से कहा कि “मिथिलांचल में पार्टी मजबूत है, लेकिन आत्मसंतुष्टि से नुकसान हो सकता है।”
मतदाताओं की भूमिका निर्णायक
मधुबनी के मतदाता इस बार न केवल मुद्दों पर जागरूक हैं, बल्कि वे चुनावी गणित को भी प्रभावित करने की स्थिति में हैं। यहाँ के राजनीतिक चर्चाओं से साफ है कि जनता अब योजनाओं के लालच से आगे बढ़कर विकास, रोजगार और प्रशासनिक ईमानदारी को तरजीह दे रही है।