घटना का विस्तार
शिकायतकर्ता महिला मॉल के बाहर अपने वाहन के साथ खड़ी थी। उसी समय आरोपी ने कार का पीछा किया और उसे बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया। उसे एक अज्ञात स्थान पर ले जाकर बलात्कार किया गया और घटना का वीडियो बनाकर महिला को धमकी दी गई कि यदि उसने किसी को बताया तो समाज में उसकी बदनामी होगी और जान से मारने की चेतावनी दी जाएगी।
घटना के तुरंत बाद महिला ने कपिलनगर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ गहन जाँच शुरू की।
न्यायालय की सुनवाई
जिला एवं सत्र न्यायालय में न्यायमूर्ति श्रीमती एस. पी. पोंक्षे के समक्ष सुनवाई हुई। सुनवाई में शिकायतकर्ता महिला, उसकी बेटी और बेटा, पाँच गवाह और जाँच अधिकारी की गवाही दर्ज की गई। आरोपी की ओर से अधिवक्ता मंगेश डी. राउत ने गवाहों से जिरह की।
न्यायालय ने सभी सबूतों और गवाहियों की सावधानीपूर्वक जाँच की। अदालत ने पाया कि प्रस्तुत सबूत पर्याप्त नहीं थे और घटना की पुष्टि करने के लिए आवश्यक ठोस प्रमाण मौजूद नहीं थे।
अदालत का निर्णय
अदालत ने पुख्ता सबूतों की कमी को देखते हुए आरोपी नानक लालता प्रसाद यादव को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी की बरी होने का अर्थ यह नहीं कि घटना नहीं हुई, बल्कि केवल यह कि वर्तमान साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना संभव नहीं था।
कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण
इस घटना ने समाज में महिला सुरक्षा के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून और पुलिस प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ बनाना आवश्यक है।
सामाजिक संगठनों ने न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया, लेकिन साथ ही सरकार और पुलिस से अपेक्षा जताई कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएँ।
नागपुर में महिला अपहरण और बलात्कार के इस मामले ने न्यायिक प्रक्रिया की संवेदनशीलता और साक्ष्य आधारित न्याय की आवश्यकता को उजागर किया। जबकि आरोपी बरी हुआ, यह घटना समाज और कानून दोनों के लिए चेतावनी और शिक्षा का स्रोत बनी।