राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष: राष्ट्रनिर्माण की नई चेतना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण किए हैं। 2 अक्टूबर 2025, विजयादशमी के पावन अवसर पर संघ ने अपने शताब्दी वर्ष का शुभारंभ किया। यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन, नवसंकल्प और राष्ट्रनिर्माण के प्रति नवीन दृष्टिकोण का भी प्रतीक है। इस दिन से पूरे देश में विविध आयोजनों की शृंखला आरंभ हुई है, जिनका उद्देश्य समाज को एकसूत्र में पिरोकर भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने का है।
समाज को जोड़ने का संकल्प – RSS 100 Years
संघ के अनुसार, शताब्दी वर्ष केवल संगठन की उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का एक प्रयास है। “समरस समाज, सशक्त राष्ट्र” की भावना के साथ आरएसएस ने घर-घर संपर्क अभियान, युवा सम्मेलन, हिन्दू सम्मेलन, सामाजिक सद्भाव कार्यक्रम और प्रबुद्ध नागरिक संवाद जैसे आयोजन प्रारंभ किए हैं।
संघ का मानना है कि जब समाज में संवाद और सहयोग की भावना बढ़ेगी, तभी राष्ट्र सशक्त बनेगा। इसी सोच के साथ देशभर में कार्यकर्ताओं को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचने और उनके साथ आत्मीय संबंध स्थापित करने का आह्वान किया गया है।
विचार और संवाद की परंपरा
आरएसएस के शताब्दी वर्ष में संवाद पर विशेष बल दिया जा रहा है। संगठन का मानना है कि विचारों का आदान-प्रदान ही समाज को आगे बढ़ाने की सबसे प्रभावी प्रक्रिया है। इसी क्रम में, आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 8 और 9 नवंबर को बेंगलुरु में दो दिवसीय विशेष व्याख्यान श्रृंखला को संबोधित करेंगे।
इस कार्यक्रम में शिक्षाविद्, नीति-निर्माता, उद्योगपति, सामाजिक कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। डॉ. भागवत राष्ट्र, समाज और संगठन की भावी दिशा पर अपने विचार साझा करेंगे। यह आयोजन संघ की वैचारिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण चरण माना जा रहा है, जिसमें संगठन के 100 वर्षों के अनुभव को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रयास होगा।
राष्ट्रनिर्माण के प्रति नवीनीकृत दृष्टिकोण – RSS 100 Years
संघ ने शताब्दी वर्ष में स्पष्ट किया है कि उसका लक्ष्य केवल संगठन का विस्तार नहीं, बल्कि राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में सक्रिय भागीदारी है। शिक्षा, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, ग्राम विकास और आत्मनिर्भर भारत जैसे विषयों पर आरएसएस ने अपने स्वयंसेवकों को दिशा देने की रूपरेखा तय की है।
इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों में सेवा परियोजनाओं, चिकित्सा शिविरों, पर्यावरण संरक्षण अभियानों और ग्रामोदय कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। संघ का उद्देश्य है कि भारत का प्रत्येक नागरिक आत्मगौरव और राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो।
समरसता और सद्भाव की दिशा में प्रयास
आरएसएस ने हमेशा से समाज में समरसता और सद्भाव के प्रसार को प्राथमिकता दी है। इस शताब्दी वर्ष में यह प्रयास और सशक्त रूप से सामने आया है। देशभर में “सामाजिक समरसता सप्ताह” मनाने की घोषणा की गई है, जिसमें विभिन्न समुदायों, जातियों और पंथों के बीच संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
संघ का मानना है कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में निहित है, और यही विविधता जब एकता में परिवर्तित होती है, तो राष्ट्र की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
भविष्य की राह और वैचारिक यात्रा
डॉ. मोहन भागवत के नेतृत्व में आरएसएस ने अपने आगामी 25 वर्षों की दिशा तय करने का संकेत दिया है। संगठन की दृष्टि केवल सांस्कृतिक जागरण तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक उत्थान तक विस्तारित है।
संघ का कहना है कि भारत की युवा पीढ़ी को स्वावलंबन, राष्ट्रसेवा और चरित्रनिष्ठा के आदर्शों से जोड़ना ही उसकी भावी यात्रा का मुख्य ध्येय रहेगा।