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Nagpur Politics: कटोल-नरखेड़ मतदाता सूची विवाद, लोकतंत्र पर गंभीर संकट

कटोल-नरखेड़ क्षेत्र में मतदाता सूची में 35,535 वोटों की गड़बड़ी का आरोप सामने आया है। पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग से त्वरित कार्रवाई की मांग की है। मामला लोकतंत्र और विधानसभा चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
नवम्बर 6, 2025

Nagpur Politics: मतदाता सूची में विसंगतियों का खुलासा

देशमुख ने कहा कि किसान, व्यापारी, मजदूर, कर्मचारी और आम जनता में भाजपा के खिलाफ गहरा आक्रोश है। उन्होंने यह भी दावा किया कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार से बचने के लिए मतदाता सूची में हेराफेरी की गई।

उन्होंने बताया कि इस मामले की जांच के लिए 13 टीमें बनाई गईं। इन टीमों ने तीन महीनों में मतदाता सूची की गहन जाँच की। जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। 2019 से 2024 तक मतदाता संख्या केवल 1,952 बढ़ी, जबकि लोकसभा चुनाव 2024 से विधानसभा चुनाव 2024 के बीच केवल पाँच महीनों में मतदाता संख्या में 8,400 की असामान्य वृद्धि हुई।

सूची से गायब हुए मतदाता और दोहरी प्रविष्टियां

देशमुख ने कहा कि कई मतदाताओं और उनके परिवारों के नाम सूची से गायब हैं। कुछ के नाम शहर और ग्रामीण दोनों सूचियों में दर्ज हैं, जबकि कुछ को “घर नंबर 00” जैसे अवैध पते पर शामिल किया गया। कई जगह भाजपा कार्यकर्ताओं के नाम दोहरी सूची में पाए गए।

सीमा क्षेत्र के मतदाता शामिल – Nagpur Politics

इसके अलावा, मध्यप्रदेश सीमा के गांवों के लोगों के नाम भी कटोल-नरखेड़ मतदाता सूची में शामिल किए गए। देशमुख ने कहा कि यह लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है और चुनाव आयोग को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।

लोकतंत्र पर प्रभाव और मांगें

देशमुख ने जोर देकर कहा कि ऐसी हेराफेरी न केवल मतदाताओं का अधिकार प्रभावित करती है, बल्कि चुनाव की निष्पक्षता और लोकतंत्र की मजबूती पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। उन्होंने मांग की कि मामले की गहन जांच हो और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह मामला सही साबित होता है, तो इसका असर विधानसभा चुनाव के परिणाम पर पड़ सकता है। कई राजनीतिक विश्लेषक यह भी कहते हैं कि मतदाता सूची की पारदर्शिता और सही रिकॉर्ड रखना लोकतंत्र की आधारशिला है।

कटोल-नरखेड़ मतदाता सूची विवाद महाराष्ट्र के चुनावी माहौल को और गर्म कर सकता है। अगर चुनाव आयोग ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाए, तो यह मामला राज्य और जिले के राजनीतिक परिदृश्य में लंबे समय तक विवाद का विषय बन सकता है।

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