शेख हसीना और उनके पिता: बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य का परिचय
बांग्लादेश की राजनीति के इतिहास में शेख हसीना और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान का नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित है। शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें बंगबंधु के नाम से भी जाना जाता है, न केवल बांग्लादेश के संस्थापक थे, बल्कि उन्होंने पाकिस्तान के अधीन पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में जनता ने अत्याचार और असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई, और उनका बेटा-बेटी का रिश्ता इतिहास में वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में दर्ज हुआ।
शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ आरोप और न्यायालयीय निर्णय
बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई। यह मुकदमा उनकी गैरमौजूदगी में चला। आरोप पिछले साल जुलाई-अगस्त के विद्रोह से जुड़े थे। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह निर्णय पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है।
शेख मुजीबुर रहमान का चुनावी संघर्ष
1970-71 में शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग ने प्रांतीय विधानसभा में अभूतपूर्व जीत दर्ज की। 300 में से 288 सीटें अवामी लीग ने जीतीं और पश्चिमी पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भी 167 सीटें हासिल कीं। इस जीत के बावजूद, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने उन्हें सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया।
ऐतिहासिक भाषण और जनता की प्रतिक्रिया
मार्च 1971 में ढाका के रेसकोर्स ग्राउंड में शेख मुजीबुर रहमान ने ऐतिहासिक भाषण दिया। उनके भाषण में जनता ने प्रशासन के आदेशों की अवज्ञा करते हुए स्वतंत्रता और न्याय के लिए समर्थन जताया। करीब दस लाख लोग उपस्थित थे, जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक बने।
शेख हसीना का राजनीतिक उदय
शेख हसीना ने अपने पिता के बलिदान और संघर्ष से प्रेरणा लेकर राजनीति में कदम रखा। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत अवामी लीग में सक्रिय सदस्यता से हुई। उन्होंने पार्टी की नीतियों को मजबूती से लागू किया और अपने नेतृत्व कौशल के माध्यम से बांग्लादेश की राजनीति में स्थिरता और विकास के नए मार्ग प्रशस्त किए।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और शांति स्थापना के प्रयास
शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती देने का प्रयास किया। उन्होंने कई देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते मजबूत किए और आर्थिक, सामाजिक सुधारों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त किया। उनके प्रयासों से बांग्लादेश की छवि वैश्विक स्तर पर सकारात्मक रूप से स्थापित हुई।
सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण
शेख हसीना ने महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में नीतियां लागू कीं। उनके नेतृत्व में कई सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू हुईं, जिससे देश में महिलाओं और गरीब वर्ग की स्थिति में सुधार हुआ।
लोकतंत्र और मानवता के प्रति अडिग प्रतिबद्धता
शेख हसीना ने अपने राजनीतिक जीवन में लोकतंत्र और मानवता के मूल्यों को सर्वोपरि रखा। उन्होंने अपने पिता के आदर्शों का अनुसरण करते हुए किसी भी प्रकार के अधिनायकवाद और अन्याय के खिलाफ दृढ़ता से खड़े होने की परंपरा को जीवित रखा। उनके संघर्ष ने देश में लोकतंत्र की नींव मजबूत की।
पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई और गिरफ्तारी
याह्या खान के पाकिस्तान लौटते ही पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत शेख मुजीबुर रहमान के आवास पर धावा बोला। सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया और मियांवाली जेल में रखा। जेल में शेख मुजीबुर रहमान को कई महीनों तक पूरी तरह से बाहरी दुनिया से काट दिया गया।
मौत की सजा और अंतरराष्ट्रीय दबाव
सैन्य ट्राइब्यूनल ने शेख मुजीबुर रहमान को मौत की सजा सुनाई। हालांकि जुल्फिकार अली भुट्टो के अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। शेख मुजीबुर रहमान ने स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए अपनी शर्तों पर रिहाई स्वीकार की और भारत के माध्यम से बांग्लादेश लौटे।
बांग्लादेश में सत्ता संभालना और अंततः हत्या
राष्ट्रपति बनने के बाद शेख मुजीबुर रहमान ने बांग्लादेश को व्यवस्थित करने के प्रयास किए। भ्रष्टाचार और असंतोष के बीच 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर अफसरों ने उनके आवास पर हमला किया और उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। यह घटना बांग्लादेश के इतिहास में गहरी चोट के रूप में दर्ज हुई।
शेख हसीना का संघर्ष और वर्तमान राजनीतिक भूमिका
आज शेख हसीना, अपने पिता के मार्गदर्शन और बलिदान की विरासत को आगे बढ़ाते हुए बांग्लादेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनके पिता की तरह ही उन्होंने भी कठिन राजनीतिक परिस्थितियों का सामना किया और मानवता तथा लोकतंत्र के लिए निर्णायक कदम उठाए।
शेख हसीना और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान का जीवन बांग्लादेश के इतिहास में वीरता, बलिदान और लोकतंत्र के प्रतीक के रूप में अंकित है। उनके संघर्ष और राजनीतिक निर्णय आज भी इतिहासकारों, राजनीतिक विश्लेषकों और जनता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।