कोलकाता में सूचीकरण फार्म न मिलने की आशंका ने ली जान: वृद्धा ने आत्मदाह कर दी प्राणोत्सर्ग

SIR Fear
SIR Fear: कोलकाता में सूचीकरण फार्म में विलंब के कारण वृद्धा की आत्मदाह से मृत्यु (File Photo)
नवम्बर 18, 2025

पश्चिम बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया पर भय का साया

पश्चिम बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के आरम्भ होते ही जहाँ राज्य प्रशासन मतदाता सूची को अद्यतन करने में जुटा हुआ है, वहीं आम नागरिकों के बीच उत्पन्न चिंता और भ्रम ने कई जटिल परिस्थितियाँ खड़ी कर दी हैं। कोलकाता के पुरबा पुटियारी क्षेत्र में 67 वर्षीय जमुना मंडल द्वारा भयवश आत्मदाह किए जाने की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि प्रशासनिक संवाद और जागरूकता की कमी पर गंभीर प्रश्न भी खड़े करती है।

घटना और संवेदनशील पृष्ठभूमि

घटना सोमवार को तब घटी, जब जमुना मंडल ने अचानक अपने घर पर स्वयं को आग के हवाले कर दिया। परिजन उन्हें तत्काल एम. आर. बांगुर अस्पताल ले गए जहाँ उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। परिवार के आरोपों के अनुसार, जमुना मंडल पिछले कई दिनों से बड़ी मानसिक चिंता में थीं, क्योंकि अन्य घरों में SIR के सूचीकरण प्रपत्र पहुँच चुके थे, जबकि उनके घर नहीं पहुँचे थे। यही कारण था कि उन्हें भय सताने लगा था कि कहीं उनका नाम मतदाता सूची से हट न जाए।

परिवार का आरोप: भय ने ली जान

जमुना मंडल के पुत्र मृृत्युंजय मंडल ने बताया कि माँ को लगातार यह आशंका बनी रही कि फॉर्म न मिलने से वे चुनावी प्रक्रिया से बाहर हो जाएँगी। मोहल्ले के कई परिवारों को BLO द्वारा फॉर्म पहुँचा दिए गए थे, परंतु जब उनके घर तक फॉर्म नहीं पहुँचा, तो उनकी चिंता धीरे-धीरे भय में बदल गई। परिवार का कहना है कि 15 नवंबर को जब फॉर्म मिला, तब भी उनका भय कम नहीं हुआ। उन्हें विश्वास नहीं हो पा रहा था कि विलंब का उन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

पुलिस की जानकारी और जाँच की स्थिति

कोलकाता पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रारम्भिक जाँच से प्रतीत होता है कि महिला ने स्वयं आग लगाई थी। हालांकि, पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि किन कारणों और परिस्थितियों में उन्होंने ऐसा कठोर कदम उठाया। अधिकारी के अनुसार, मामले में परिवार के बयान दर्ज किए जा रहे हैं और पूरे प्रकरण को संवेदनशीलता के साथ देखा जा रहा है।

SIR प्रक्रिया पर बढ़ता भय और नागरिकों में भ्रम

यह पहली घटना नहीं है जब SIR प्रक्रिया से जुड़े भय का असर किसी नागरिक पर इस तरह पड़ा हो। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से ऐसी खबरें आई हैं कि नागरिकों को यह भ्रम है कि कोई भी त्रुटि या फॉर्म न मिलना उन्हें मतदाता सूची से बाहर कर सकता है। कुछ स्थानों पर आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश के आरोप सामने आ चुके हैं। यह स्थिति बताती है कि प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर सही जानकारी आमतक पहुँचने में कमी है।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया और आरोप-प्रत्यारोप

इस संवेदनशील मामले ने राजनीतिक तापमान भी बढ़ा दिया है। तृणमूल कांग्रेस ने इस घटना को आधार बनाकर चुनाव आयोग और भाजपा पर हमला बोला है। पार्टी ने आरोप लगाया कि SIR की घोषणा के बाद से ही लोगों में भय फैल रहा है और उन्हें आशंका है कि उनका नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता है। टीएमसी का कहना है कि राज्य के कई क्षेत्रों में लोग इसी वजह से मानसिक तनाव में हैं।

दूसरी ओर, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि TMC जानबूझकर नागरिकों में भय का वातावरण बना रही है। भाजपा का तर्क है कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है और मतदाता सूची के अद्यतन के लिए आवश्यक है। उनके अनुसार, जनता में उत्पन्न भय का वास्तविक कारण राजनीतिक भ्रम फैलाना है।

नागरिक अधिकार और जागरूकता की आवश्यकता

मतदाता सूची से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया अत्यंत संवेदनशील होती है क्योंकि यह सीधे नागरिक अधिकारों से संबंधित है। किन्तु इस घटना ने यह स्पष्ट किया है कि राज्य में इस प्रक्रिया को लेकर सही जानकारी और पारदर्शिता के अभाव के कारण आम लोगों में अनिश्चितता और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। प्रशासन का दायित्व है कि वह नागरिकों तक स्पष्ट संदेश पहुँचाए कि फॉर्म न मिलने से कोई भी स्वतः मतदाता सूची से वंचित नहीं होता।

सामाजिक मनोविज्ञान और व्यक्तिगत असुरक्षा

जमुना मंडल जैसी वृद्ध महिलाओं के लिए ऐसी प्रक्रियाओं में थोड़ी-सी देरी भी अत्यंत असुरक्षा का कारण बन सकती है। कई बार उम्र, सामाजिक परिस्थितियाँ और स्वास्थ्य भी इस भय को बढ़ा देते हैं। ऐसे में राज्य प्रशासन तथा BLO स्तर पर निरन्तर संवाद और सहयोग आवश्यक है। यदि किसी नागरिक को जानकारी नहीं मिल रही, तो अधिकारियों को उसके घर जाकर आश्वस्त करना चाहिए।

संवाद की कमी से उपजे संकट को दूर करने की आवश्यकता

जमुना मंडल की मृत्यु केवल एक कागजी प्रक्रिया से जुड़े भ्रम का परिणाम नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक व्यापक समस्या की ओर संकेत करती है। यह घटना बताती है कि किसी भी प्रशासनिक प्रक्रिया में संवाद, स्पष्टता और समयबद्ध जानकारी न मिलने पर समाज के संवेदनशील वर्गों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
राज्य सरकार, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जागरूकता की मजबूत व्यवस्था तैयार करनी होगी। नागरिकों को यह समझाना आवश्यक है कि किसी भी प्रक्रिया में होने वाली सामान्य देरी का अर्थ उनके अधिकारों का हनन नहीं होता।

यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.