चुनावी पराजय पर प्रशांत किशोर का आत्मावलोकन और भविष्य की दिशा
पहली प्रतिक्रिया में स्वीकार किया नैतिक दायित्व
बिहार विधानसभा चुनावों में जन सुराज की करारी पराजय के बाद प्रशांत किशोर ने मंगलवार को पहली बार मीडिया के सामने आकर स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे इस पूरी स्थिति की संपूर्ण जिम्मेदारी स्वयं लेते हैं। पटना में आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने स्वीकार किया कि वे जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे और जन सुराज आंदोलन की चुनावी तैयारियों में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न कर सके।
उन्होंने कहा कि बिहार की राजनीति में वैकल्पिक और स्वच्छ विकल्प तैयार करने की उनकी आकांक्षा अधूरी रह गई, और इसके लिए वे किसी और पर दोषारोपण करने की बजाय स्वयं को उत्तरदायी मानते हैं।
परिवर्तन के संकल्प के साथ किया आत्मचिंतन का ऐलान
किशोर ने घोषणा की कि पराजय केवल निराशा का विषय नहीं बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है। उन्होंने कहा कि जन सुराज के हजारों कार्यकर्ताओं के साथ वे भितिहरवा गांधी आश्रम में एक दिवसीय उपवास करेंगे, जो उनके राजनीतिक अभियान का शुरुआती स्थल रहा है।
उनके अनुसार, यह उपवास चुनावी पराजय से उत्पन्न नैतिक जिम्मेदारी का प्रतीक होगा और आगामी वैचारिक दिशा को पुनर्परिभाषित करने का अवसर प्रदान करेगा।

राजनीति छोड़ने की अटकलों का किया खंडन
चुनावी पराजय के बाद प्रशांत किशोर के राजनीति से हटने की संभावनाओं पर सोशल मीडिया में अनेक अटकलें लगाई जा रही थीं। इन अटकलों को खारिज करते हुए किशोर ने साफ कहा कि वे न तो बिहार छोड़ेंगे और न ही राजनीति से हटेंगे।
उन्होंने कहा कि परिवर्तन की राह कठिन अवश्य हो सकती है, परंतु इससे पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं उठता। किशोर ने अंग्रेजी की एक उक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि व्यक्ति तब तक पराजित नहीं होता, जब तक वह स्वयं प्रयास छोड़ न दे।
एनडीए को दी बधाई, सरकार को किया वादों की याद
प्रशांत किशोर ने बिहार में एनडीए गठबंधन की जीत पर बधाई दी, साथ ही यह भी कहा कि सरकार को अपने चुनावी वादों पर तत्काल कार्य करना चाहिए।
उन्होंने विशेष रूप से उस वादे का उल्लेख किया जिसमें महिलाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि को दस हज़ार रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये किए जाने का आश्वासन दिया गया था।
किशोर ने सरकार से मांग की कि जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए इन वादों को जल्द पूरा किया जाए, ताकि रोजगार और महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।

मतदाताओं को लुभाने के आरोप दोहराए
किशोर ने अपनी हार के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में सरकार पर मतदाताओं को प्रभावित करने के आरोप को दोहराया।
उनका दावा था कि सरकार ने लगभग 40,000 करोड़ रुपये की राशि को चुनाव से ठीक पहले विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं तक पहुँचाया, जिससे जन सुराज को नुकसान उठाना पड़ा।
उन्होंने इसे “लोकलुभावन आर्थिक हस्तांतरण” बताते हुए कहा कि इससे चुनावी मैदानों पर संतुलन बिगड़ा और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा प्रभावित हुई।
जन सुराज के प्रदर्शन पर विस्तृत दृष्टि
बिहार के इस चुनाव में जन सुराज ने कुल मतदान का लगभग 3.34 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त किया, जो अपेक्षाओं से बहुत कम था।
चुनाव से पहले जन सुराज को सोशल मीडिया और विभिन्न जनसभाओं में व्यापक समर्थन प्राप्त होता दिखाई दे रहा था, किंतु मतदान परिणामों ने उस रुझान को प्रतिबिंबित नहीं किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किसी नए राजनीतिक दल के लिए राज्यभर में संगठनात्मक संरचना और जमीनी स्तर पर विश्वसनीयता तैयार करना एक दीर्घकालिक प्रक्रिया होती है, और जन सुराज उसी मार्ग पर संघर्षरत है।
भविष्य की रणनीति और कार्यकर्ताओं का मनोबल
किशोर ने अपनी प्रेस वार्ता में यह भी संकेत दिया कि आने वाले दिनों में वे संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर विशेष ध्यान देंगे।
उन्होंने कहा कि लाखों कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा नहीं है और जन सुराज का अभियान केवल चुनावी राजनीति तक सीमित नहीं है।
उनके अनुसार, बिहार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना में दीर्घकालिक परिवर्तन के लिए एक सतत आंदोलन की आवश्यकता है, और जन सुराज उसी ध्येय के साथ आगे बढ़ेगा।
क्या 2025 की तैयारी अभी से शुरू?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रशांत किशोर की यह प्रतिक्रिया संकेत देती है कि वे आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अभी से तैयारी शुरू कर सकते हैं।
जन सुराज की पिछली यात्राओं और सभाओं में लोगों का मिला समर्थन इस बात का प्रमाण है कि उनके पास जमीनी स्तर पर एक सशक्त कार्यकर्ता आधार तैयार करने की क्षमता है।
ऐसे में यह चुनावी पराजय उनके लिए एक सीख और पुनर्गठन का अवसर बन सकती है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।