राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची पुनरीक्षण का व्यापक चरण
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा देशभर में जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) चरण-2 ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। आयोग ने अपने 18 नवंबर के दोपहर 3 बजे जारी दैनिक बुलेटिन में बताया कि कुल 50.97 करोड़ मतदाताओं के लिए तैयार किए गए गणना प्रपत्रों (Enumeration Forms – EFs) में से 98.54 प्रतिशत प्रपत्र सफलतापूर्वक वितरित कर दिए गए हैं। यह पुनरीक्षण प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हुई है और 4 दिसंबर 2025 तक जारी रहेगी।
यह उपलब्धि न केवल निर्वाचन आयोग की विशाल जनसांख्यिकीय कवायद का संकेत देती है, बल्कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने की दिशा में एक व्यापक प्रयास भी है।
वितरण कार्य में लगभग पूर्ण सफलता
गणना प्रपत्र वितरण के आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने लगभग पूर्ण लक्ष्य हासिल कर लिया है। गोवा और लक्षद्वीप ने शत-प्रतिशत प्रपत्र वितरण किया है, जबकि गुजरात 99.51 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 99.69 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश 99.29 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल 99.64 प्रतिशत और अंडमान-निकोबार 99.98 प्रतिशत के साथ इस सूची में अग्रणी बने हुए हैं।
इतनी उच्च उपलब्धि आयोग के बूथ लेवल अधिकारियों और बूथ लेवल एजेंटों की व्यापक तैनाती का परिणाम है, जिन्हें मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने हेतु अहम भूमिका सौंपी गई है।
डिजिटकरण की धीमी रफ्तार चिंता का विषय
परंतु इस व्यापक वितरण के बावजूद डिजिटकरण की प्रक्रिया संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच सकी है। प्रदान किए गए आंकड़ों के अनुसार, अब तक केवल 11.76 प्रतिशत प्रपत्र (यानी लगभग 5.99 करोड़) ही डिजिटल माध्यम में परिवर्तित किए जा सके हैं।
यह धीमी गति कई बड़े राज्यों में विशेष रूप से स्पष्ट है। उत्तर प्रदेश, जहां मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है, वहां केवल 2.19 प्रतिशत प्रपत्र डिजिटाइज़ हुए हैं। वहीं केरल में यह प्रतिशत मात्र 1.04 है।
डिजिटकरण की इस धीमी गति के पीछे जनसंख्या का घनत्व, विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र, विभिन्न ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में तकनीकी पहुँच की कमी और बड़े पैमाने पर डेटा सत्यापन जैसे कारक प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं।
डिजिटकरण में सबसे आगे अग्रणी प्रदेश
इसके बावजूद कुछ राज्यों ने उत्कृष्ट प्रगति दर्ज की है। गोवा 41.65 प्रतिशत डिजिटकरण के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद राजस्थान 33.84 प्रतिशत और पुडुचेरी 22.17 प्रतिशत पर हैं।
ये आंकड़े बताते हैं कि छोटे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में डेटा प्रसंस्करण का आकार अपेक्षाकृत कम होने के कारण कार्य की गति काफी बेहतर है।
जनशक्ति का व्यापक उपयोग
इस विशाल अभियान की जटिलता का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कुल 5,33,093 बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) और 10,41,291 बूथ लेवल एजेंटों (BLAs) की तैनाती की गई है। यह स्तर का मानव संसाधन किसी भी राष्ट्रीय डेटा-सत्यापन अभियान के लिए दुर्लभ है।
निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों से अतिरिक्त बूथ लेवल एजेंट नियुक्त करने की भी अपील की है, ताकि जमीनी स्तर पर सत्यापन का कार्य सुचारू रूप से किया जा सके।
राजस्थान का विशेष मामला
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि राजस्थान के 193-अंटा विधानसभा क्षेत्र को फिलहाल प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। इसका कारण लंबित उपचुनाव है, जिसके चलते वहाँ पुनरीक्षण गतिविधियाँ स्थगित कर दी गई हैं।
दुनिया के सबसे बड़े सत्यापन अभियानों में से एक
अधिकांश देशों में मतदाता सूची का सत्यापन सीमित क्षेत्रों में होता है, परंतु भारत में यह कार्य राष्ट्रीय स्तर पर लाखों प्रपत्रों और करोड़ों नागरिकों की जानकारी के साथ किया जाता है।
50 करोड़ से अधिक मतदाताओं के डेटा को सुव्यवस्थित करना, सत्यापित करना और उसे डिजिटाइज़ करना किसी भी दृष्टि से वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े प्रयासों में से एक है।
आगामी दो सप्ताह निर्णायक
आयोग ने संकेत दिया है कि आगामी दो सप्ताह में वितरण कार्य के साथ-साथ डिजिटकरण की गति को भी तेज किया जाएगा, ताकि 4 दिसंबर को जारी होने वाली प्रारूप मतदाता सूची में त्रुटियों की संभावना न्यूनतम रहे।
देश में चुनावी व्यवस्थाओं को मजबूत और पारदर्शी बनाने के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि त्रुटिरहित मतदाता सूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव होती है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।