प्रकरण का विस्तार
दिल्ली की एक अदालत ने अल-फलाह विश्वविद्यालय के संस्थापक और अल-फलाह ग्रुप के अध्यक्ष जावेद अहमद सिद्दीकी को प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में भेजने का निर्णय सुनाया है। यह फैसला उस मामले के संदर्भ में आया है, जिसमें विश्वविद्यालय पर आतंकी वित्तपोषण से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग आरोपों सहित व्यापक वित्तीय अनियमितताओं का संदेह व्यक्त किया गया है। अदालत ने सिद्दीकी को 13 दिन की ईडी हिरासत में भेजते हुए कहा कि मामले की प्रकृति, आरोपों की गंभीरता और वित्तीय लेनदेन की परतें खोलने हेतु विस्तृत पूछताछ आवश्यक है।
ईडी की कार्रवाई का क्रम
ईडी ने सिद्दीकी को मंगलवार देर शाम हिरासत में लिया। एजेंसी का आरोप है कि अल-फलाह विश्वविद्यालय ने कई वर्षों तक छात्रों को भ्रामक मान्यताओं और फर्जी मान्यता प्राप्ति के दावों के आधार पर दाखिला दिया। इस प्रक्रिया में संस्था ने करोड़ों रुपये की राशि एकत्रित की, जबकि मान्यता से जुड़ी जानकारी या तो गलत थी या भ्रामक। ईडी ने अदालत में बताया कि यह न केवल कानूनी उल्लंघन है, बल्कि इससे हजारों छात्रों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
वित्तीय विवरणों में संदिग्ध अंतर
ईडी द्वारा अदालत में प्रस्तुत दस्तावेज़ों के अनुसार, अल-फलाह विश्वविद्यालय और उससे जुड़े संस्थानों के आयकर रिटर्न की जांच में कई विसंगतियां सामने आईं। वित्तीय वर्ष 2014–15 और 2015–16 में विश्वविद्यालय ने क्रमशः 30.89 करोड़ रुपये और 29.48 करोड़ रुपये को स्वैच्छिक योगदान के रूप में दर्ज किया। एजेंसी का कहना है कि इन आंकड़ों की प्रकृति संदेहास्पद है और इनके स्रोत व प्रवाह का उचित लेखा नहीं मिलता।
इसके बाद, वर्ष 2016–17 से विश्वविद्यालय ने अपनी आय को सीधे शैक्षिक संचालन से उत्पन्न राजस्व के रूप में दर्ज करना शुरू किया। इस अचानक बदलाव पर प्रश्न उठते हैं कि क्या संस्था पूर्व वर्षों की अनियमितताओं को छिपाने या उनके स्वरूप को बदलने का प्रयास कर रही थी। ईडी का तर्क है कि यह बदलाव ‘जानबूझकर की गई साजिश’ की दिशा में संकेत करता है।
वर्षों में आय का बढ़ता स्तर
वित्तीय जांच बताते हुए एजेंसी ने कहा कि विश्वविद्यालय ने आगामी वर्षों में भी बड़ी मात्रा में धन अर्जित किया। वित्तीय वर्ष 2018–19 में दर्ज 24.21 करोड़ रुपये और 2024–25 में 80.01 करोड़ रुपये की आय ने जांच को और गहरा कर दिया। ईडी के अनुसार, कुल मिलाकर लगभग 415.10 करोड़ रुपये फर्जी मान्यता, भ्रामक दावों और कथित अवैध प्रक्रियाओं के माध्यम से एकत्र किए गए।
छात्रों से विश्वासघात का आरोप
एजेंसी ने अदालत को यह भी बताया कि विश्वविद्यालय ने लगातार NAAC मान्यता और अन्य वैधानिक मान्यताओं के संबंध में गलत जानकारी प्रसारित की। संस्था ने ऐसे दावे प्रस्तुत किए, जिनके आधार पर छात्रों ने अपने शैक्षणिक भविष्य को निर्देशित किया। ईडी का कहना है कि इन गलत सूचनाओं ने हजारों छात्रों के कैरियर पर ‘अपरिवर्तनीय’ क्षति पहुंचाई।
छात्रों ने अपने सबसे उत्पादक वर्षों और परिवारों की आर्थिक बचत को इस विश्वास में लगाया कि संस्था पूरी तरह से मान्यता प्राप्त है। लेकिन गलत दावों के कारण प्राप्त डिग्रियों का मूल्य कम हुआ, उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों के अवसर सीमित हुए और मानसिक तनाव का दबाव बढ़ा।
ईडी द्वारा हिरासत की आवश्यकता का तर्क
ईडी ने अदालत से 14 दिन की हिरासत की मांग की थी। एजेंसी का कहना था कि मामले का पैमाना व्यापक है, इसमें कई वर्षों के वित्तीय लेनदेन, कई संस्थापक सदस्य, ट्रस्ट से जुड़े परिवारजन और कार्यालय धारक शामिल हैं। इसलिए, जावेद अहमद सिद्दीकी से सीधे पूछताछ करना आवश्यक है।
अदालत को दिए गए आवेदन में ईडी ने कहा कि यदि आरोपी को हिरासत में नहीं रखा गया तो वह सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है, संभावित गवाहों को प्रभावित कर सकता है या फरार होने की कोशिश कर सकता है। एजेंसी ने दलील दी कि अभी भी कई वित्तीय लेनदेन, संपत्ति निर्माण, और जुटाई गई धनराशि के उपयोग से जुड़ी जानकारी स्पष्ट नहीं है।
विश्वविद्यालय निर्णयों पर सिद्दीकी का नियंत्रण
जांच में सामने आए दस्तावेज़ बताते हैं कि भले ही कई परिवारजन ट्रस्टी, निदेशक या पदाधिकारी के रूप में सूचीबद्ध थे, परंतु विश्वविद्यालय के प्रमुख निर्णयों पर वास्तविक नियंत्रण जावेद अहमद सिद्दीकी का ही था। ईडी का कहना है कि मान्यता से जुड़े फर्जी दावे, फीस वसूली प्रक्रियाएं, और विभिन्न संपत्तियों में धन प्रवाह जैसी सभी प्रमुख गतिविधियों के पीछे वही मुख्य भूमिका निभाते थे।
मामले की गंभीरता के प्रति अदालत की टिप्पणी
अदालत ने ईडी के तथ्यों को सुनने के बाद कहा कि प्राथमिक स्तर पर यह प्रतीत होता है कि मामले की जटिलता और जांच की आवश्यकता को देखते हुए आरोपी का ईडी हिरासत में होना उचित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह हिरासत जांच एजेंसी को व्यापक बहुपक्षीय पूछताछ का अवसर प्रदान करेगी।
फैसले में कहा गया कि आरोपी को 13 दिन की ईडी हिरासत में भेजा जाता है, जो 1 दिसंबर तक प्रभावी रहेगी।
जांच की अगली दिशा
इस मामले ने उच्च शिक्षा क्षेत्र में मान्यता, पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। ईडी द्वारा दर्ज आरोपों के सत्यापन, धन प्रवाह की जांच, और छात्रों के हित में उठाए जाने वाले संभावित कदमों को लेकर आगे के दिनों में और महत्वपूर्ण विकास संभावित हैं। यह प्रकरण न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी बताता है कि जैसे-जैसे निजी विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ रही है, वैसे ही नियामक संरचनाओं के दृढ़ और प्रभावी होने की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।