RBI की संभावित दर कटौती: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत का संदेश
मुंबई – भारतीय अर्थव्यवस्था को एक अच्छी खबर मिलने वाली है। प्रमुख विश्व वित्तीय सेवा कंपनी मॉर्गन स्टेनली की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दिसंबर के पहले सप्ताह में अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो दर में 25 आधार बिंदु (0.25%) की कटौती कर सकता है। यह कदम RBI के तीन-सूत्रीय सहजीकरण चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को नई गति प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है।
रेपो दर में कटौती का अर्थ और महत्व
रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर RBI बैंकों को अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है। जब RBI रेपो दर को कम करता है, तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे ग्राहकों को भी सस्ते ब्याज दरों पर ऋण दे सकते हैं। इससे आम जनता और व्यवसायों के लिए कर्ज लेना आसान हो जाता है, जिसका सीधा असर आर्थिक विकास पर पड़ता है।
मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट के अनुसार, यह दर कटौती 5.5% से 5.25% तक होगी। हालांकि यह संख्या छोटी लग सकती है, लेकिन वित्तीय बाजारों में यह कदम काफी महत्वपूर्ण है। रेपो दर में हर 0.25% की कटौती बैंकिंग क्षेत्र और वास्तविक अर्थव्यवस्था दोनों पर गहरा प्रभाव डालती है।
तीन-सूत्रीय सहजीकरण रणनीति: व्यापक दृष्टिकोण
RBI की दर कटौती केवल ब्याज दर तक सीमित नहीं रहेगी। मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में उल्लेख है कि RBI ने एक तीन-सूत्रीय सहजीकरण चक्र अपनाया है, जिसमें ब्याज दरें, तरलता की स्थितियां, और नियामक उपाय शामिल हैं। यह समग्र दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक सहजीकरण सभी मोर्चों पर होगा।
तरलता की स्थितियों में सुधार का मतलब है कि बैंकों के पास अधिक नकदी उपलब्ध होगी, जिससे वे अधिक ऋण दे सकेंगे। नियामक उपायों में शामिल हो सकते हैं – बैंकों के लिए आरक्षित अनुपात को कम करना, क्रेडिट निर्गम को प्रोत्साहित करने के लिए नियमों में छूट देना, और अन्य प्रकार की सहायता।
डेटा-निर्भर नीति: आगे की रणनीति
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दर कटौती के बाद, RBI का व्यापक नीति रुख सतर्क बना रहेगा, और केंद्रीय बैंक डेटा-निर्भर हो जाएगा। इसका मतलब है कि भविष्य की दर कटौती आर्थिक डेटा पर निर्भर करेगी – जैसे मुद्रास्फीति के आंकड़े, GDP वृद्धि, और रोजगार के आंकड़े। RBI एक प्रतीक्षा और देखभाल की स्थिति अपनाएगा, जब तक कि ब्याज दरें, तरलता, और नियामक उपायों का असर स्पष्ट न हो जाए।
यह दृष्टिकोण आर्थिक परिस्थितियों के साथ तेजी से ढल जाने की RBI की क्षमता को दर्शाता है। यदि मुद्रास्फीति उम्मीद से अधिक बढ़ने लगती है, तो RBI हिचकिचाए बिना अपनी नीति को कड़ा कर सकता है। दूसरी ओर, यदि विकास गति में बाधा आती है, तो आगे की दर कटौती संभव हो सकती है।
सरकारी राजकोषीय नीति: संतुलित दृष्टिकोण
मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में सरकार की राजकोषीय नीति पर भी टिप्पणी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, सरकार राजकोषीय व्यावहारिकता बनाए रखना जारी रखेगी, क्रमिक समेकन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, लेकिन पूंजीगत व्यय को प्राधान्य दिया जाएगा। यह दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है क्योंकि पूंजीगत व्यय – जैसे सड़कें, रेलवे, और बिजली संयंत्र – दीर्घकालीन आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: नियंत्रण में रहने की संभावना
मॉर्गन स्टेनली के अनुमान के अनुसार, भारत की मुख्य मुद्रास्फीति 2026-27 में थोड़ी बढ़ सकती है, लेकिन यह वृद्धि नियंत्रित रहेगी और अंततः RBI के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4% की ओर आगे बढ़ेगी। खाद्य और मुख्य मुद्रास्फीति दोनों 4 से 4.2% के बीच रहने की उम्मीद है।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहती है, तो मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं स्थिर रहती हैं। यह स्थिरता उपभोक्ता विश्वास को बेहतर बनाती है, क्योंकि लोगों को यह विश्वास होता है कि उनकी खरीद क्षमता कम नहीं होगी।
बाहरी क्षेत्र: मजबूत स्थिति
मॉर्गन स्टेनली भारत के बाहरी क्षेत्र की भी प्रशंसा करता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत का चालू खाता घाटा GDP के 1% के पास या उससे नीचे रहेगा। वैश्विक व्यापार व्यवधानों के बावजूद, सेवा निर्यात स्थिर बने हुए हैं, और भारत का वैश्विक हिस्सा 5.1% बना हुआ है।
भारत का बाहरी संतुलन पत्र भी मजबूत दिख रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार, पर्याप्त आयात कवर, और कम बाहरी कर्ज-से-GDP अनुपात द्वारा समर्थित है। यह सब मिलकर भारत को एक आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित स्थिति में रखता है।
GDP वृद्धि: संशोधित पूर्वानुमास
हाल ही में, RBI ने वित्त वर्ष 2026 के लिए GDP वृद्धि का पूर्वानुमास 6.5% से संशोधित करके 6.8% कर दिया है। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन RBI ने चेतावनी दी है कि वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही में व्यापार और टैरिफ से संबंधित बाधाओं के कारण वृद्धि में नरमी आ सकती है। यह वास्तविकतावादी दृष्टिकोण है जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को स्वीकार करता है।
अन्य महत्वपूर्ण संशोधन: मुद्रास्फीति का आशावाद
RBI ने वित्त वर्ष 2026 के लिए मुख्य मुद्रास्फीति के पूर्वानुमास को 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है। यह महत्वपूर्ण संशोधन यह सुझाता है कि कीमतों में वृद्धि की गति कम होने वाली है। कम मुद्रास्फीति का अर्थ है कि वेतन और बचत की क्रय क्षमता बेहतर रहेगी।
नीति में निरंतरता: आर्थिक स्थिरता की नींव
RBI की यह दर कटौती और अन्य सहजीकरण उपाय एक बृहत्तर नीतिगत निरंतरता का हिस्सा हैं। केंद्रीय बैंक समझता है कि अर्थव्यवस्था को अभी भी बढ़ने की जरूरत है, लेकिन मुद्रास्फीति नियंत्रण में होनी चाहिए। यह संतुलन भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन स्थिरता के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष: आशा की नई किरण
RBI की संभावित दर कटौती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आशा की एक नई किरण है। यह न केवल व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए राहत लाएगी, बल्कि आने वाले महीनों में अधिक आर्थिक विकास की संभावना भी बनाएगी। हालांकि, मॉर्गन स्टेनली और RBI दोनों ही वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रति सचेत हैं। लेकिन एक चीज स्पष्ट है – भारतीय अर्थव्यवस्था की मौलिक शक्ति मजबूत है, और RBI की नीतियां इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं।