सुप्रीम न्यायालय में राहुल गांधी को अंतरिम राहत, सेना टिप्पणी प्रकरण की सुनवाई 4 दिसंबर तक स्थगित

Rahul Gandhi Army Statement Case
Rahul Gandhi Army Statement Case: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कार्यवाही पर रोक बढ़ाई, अगली सुनवाई 4 दिसंबर को (File Photo)
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को 2022 की सेना टिप्पणी मामले में अंतरिम राहत देते हुए ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक को 4 दिसंबर तक बढ़ा दिया। राहुल गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समन संबंधी आदेश को चुनौती दी है। अगली सुनवाई में अदालत मामले की वैधता पर विस्तृत विचार कर सकती है।
नवम्बर 20, 2025

शीर्ष न्यायालय की कार्यवाही और पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को वर्ष 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कथित रूप से सेना पर की गई टिप्पणी के मामले में अंतरिम राहत जारी रखते हुए ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक को 4 दिसंबर तक बढ़ा दिया है। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की दो सदस्यीय पीठ ने गुरुवार को यह आदेश दिया। पीठ के समक्ष सुनवाई स्थगित करने के लिए भेजे गए पत्र को संज्ञान में लेते हुए अगली तारीख निर्धारित की गई।

मामला किस टिप्पणी से जुड़ा है

यह विवाद राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा के एक पड़ाव पर दिए गए कथित बयान से उत्पन्न हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने भारतीय सेना के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की। यह आरोप लगते ही मामला राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया। लखनऊ की ट्रायल कोर्ट में इसी संबंध में एक शिकायत दायर की गई, जिसके आधार पर अदालत ने राहुल गांधी को समन भेजा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश और उसकी चुनौती

राहुल गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 29 मई को दिए गए आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें राहुल गांधी ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन को निरस्त करने की मांग की थी। उच्च न्यायालय का मत था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करने में कोई विधिक त्रुटि नहीं है। इसी के विरुद्ध राहुल गांधी ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

पहले की कार्यवाही और सुप्रीम कोर्ट का रुख

अगस्त की सुनवाई में रोका गया था ट्रायल

अगस्त माह में हुई पूर्व सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और उत्तर प्रदेश सरकार तथा शिकायतकर्ता से जवाब मांगा था। अदालत ने उस समय यह भी प्रश्न उठाया था कि राहुल गांधी किस आधार पर यह दावा कर सकते हैं कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर कब्जा किया है। अदालत ने पूछा था कि क्या वह स्थल पर मौजूद थे या प्रत्यक्ष जानकारी रखते थे। पीठ ने टिप्पणी की थी कि यदि कोई स्वयं को सच्चा भारतीय मानता है, तो वह बिना सत्यापन ऐसे बयान देने से बचेगा।

शीर्ष अदालत की दूरदर्शिता और प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के इन प्रश्नों ने यह संकेत दिया कि अदालत केवल बयान की वैधता ही नहीं, बल्कि उसकी परिस्थितियों और उसके प्रभाव की भी गंभीर समीक्षा कर रही है। न्यायालय का अवलोकन था कि सार्वजनिक जीवन में कार्यरत व्यक्ति द्वारा दिए गए बयान का प्रभाव व्यापक होता है; इसलिए ऐसे दावों के पीछे परिपक्वता, तथ्यों की प्रामाणिकता और संवेदनशीलता अपेक्षित है।

राहुल गांधी की ओर से प्रस्तुत दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी का पक्ष

राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क रखते हुए कहा कि विपक्ष के नेता को राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछने का संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि किसी भी आपराधिक शिकायत को स्वीकारने से पहले अदालत का यह दायित्व है कि वह आरोपी के कथन को भी सुने, ताकि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष रह सके।

समन जारी करने की प्रक्रिया पर सवाल

राहुल गांधी के वकील का कहना है कि शिकायत का अवलोकन करने भर से आरोप संदिग्ध प्रतीत होते हैं और प्रथम दृष्टया कोई ठोस आधार स्थापित नहीं होता। उनके अनुसार, राहुल गांधी लखनऊ के निवासी नहीं हैं, अतः समन जारी करने से पहले यह जांच आवश्यक थी कि क्या आरोप विधिक और तथ्यात्मक दृष्टि से पर्याप्त हैं। उन्होंने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने इस आवश्यक परीक्षण को बिना उचित कारण छोड़ दिया।

राजनीतिक संदर्भ और प्रभाव

राजनीतिक विमर्श में मामला क्यों महत्वपूर्ण

सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे भारतीय राजनीति में अत्यंत संवेदनशील रहे हैं। इन विषयों पर दी गई टिप्पणियाँ अक्सर राजनीतिक आक्षेपों और आरोप-प्रत्यारोपों को जन्म देती हैं। राहुल गांधी के बयान को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संवाद बना हुआ है। इस मामले की न्यायिक समीक्षा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इस बात का परीक्षण भी बन जाता है कि राजनीतिक भाषण की सीमाएँ क्या हैं और अदालतें किस प्रकार संतुलन स्थापित करती हैं।

मीडिया और जनमत में चर्चा

मामले ने मीडिया में व्यापक बहस को जन्म दिया है। एक ओर, राहुल गांधी के समर्थकों का मत है कि विपक्ष के नेता के तौर पर उनका दायित्व है कि वह सरकार की नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर प्रश्न उठाएँ। दूसरी ओर, विरोधियों का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना जैसे संवेदनशील विषयों पर कथन देते समय तथ्यों की पुष्टि और विवेक आवश्यक है।

4 दिसंबर को अगली सुनवाई

शीर्ष अदालत द्वारा अगली सुनवाई की तारीख 4 दिसंबर तय किए जाने के बाद अब सभी की निगाहें उस दिन पर टिकी होंगी। अदालत उस दिन यह तय कर सकती है कि अंतरिम रोक आगे जारी रहेगी या ट्रायल आगे बढ़ेगा। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो सकता है कि टिप्पणी की संवैधानिकता, उसकी विधिक प्रासंगिकता और उस पर आधारित आपराधिक कार्रवाई की वैधता क्या है।

न्यायिक दृष्टि से मामले के संभावित परिणाम

यदि सुप्रीम कोर्ट पाता है कि शिकायत प्रथम दृष्टया टिकाऊ नहीं है, तो मामला यहीं समाप्त हो सकता है। वहीं यदि अदालत यह मानती है कि ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया विधिक रूप से उचित है, तो राहुल गांधी को ट्रायल का सामना करना होगा। दोनों ही परिस्थितियों का राजनीतिक परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.