हद से आगे बढ़ते अत्याचार ने ली एक मासूम की जान
मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सेमरिया क्षेत्र से आई छात्रा की आत्महत्या की घटना समाज को झकझोर देने वाली है। डिजिटल डेस्क पर आई इस खबर ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया है। संस्कार शिक्षा निकेतन नामक निजी विद्यालय की छात्रा ने खुदकुशी कर अपने सुसाइड नोट में शिक्षक पर ऐसे आरोप लगाए हैं जिनसे हर अभिभावक, हर बच्चा और पूरा शिक्षा जगत स्तब्ध है। अपने नोट में छात्रा ने शिक्षक के व्यवहार को न केवल अनैतिक बल्कि असहनीय बताया है। यह घटना अब सिर्फ एक आत्महत्या नहीं रह गई, बल्कि यह व्यवस्था, सुरक्षा और शिक्षा के मूल्यों पर तीखा प्रश्न खड़ा कर रही है।
छात्रा के मोबाइल से लेकर उसके द्वारा स्वयं लिखे गए नोट तक, सबकुछ बताता है कि वह किसी मानसिक दबाव में थी। सवाल यह है कि आखिर स्कूल में ऐसा क्या हुआ जो छात्रा को आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठाना पड़ा। क्या विद्यालय प्रशासन इन शिकायतों से अनजान था या जानबूझकर नजरअंदाज कर रहा था। क्या शिक्षक की कथित हरकतें सिर्फ गलत स्पर्श तक सीमित थीं या पीछे कोई और खतरनाक कहानी छिपी थी। इन सवालों के जवाब पूरे जांच तंत्र पर निर्भर हैं, लेकिन सच यह भी है कि एक परिवार अपनी बच्चे को खो चुका है।
सुसाइड नोट ने खोल दी शर्मनाक हकीकत
छात्रा का सुसाइड नोट पुलिस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सबूत के रूप में सामने आया है। उसमें लिखा गया है कि शिक्षक जब भी उसे डांटते या मारने की कोशिश करते, वह उसकी कलाई पकड़ लेते थे। नोट में यह भी उल्लेख है कि शिक्षक अपनी मुट्ठी बंद कर छात्रा को चुनौती देते थे कि इसे खोलकर दिखाओ, साथ ही बेंच के ऊपर हाथ पकड़कर कहते थे देखो कितना ठंडा है। छात्रा ने इन हरकतों को बेहद असामान्य और परेशान करने वाला बताया।
इन शब्दों से स्पष्ट है कि छात्रा लंबे समय से असहज थी। नोट जैसे दर्दनाक दस्तावेज छात्रा की मजबूरियों, डर और चुप्पी की निशानी बनकर रह गए हैं। इसी कारण मामला अत्यधिक संवेदनशील हो गया है और स्कूल प्रबंधन की भूमिका संदिग्ध लग रही है।रीवा की यह घटना सिर्फ अपराध नहीं बल्कि शिक्षा प्रणाली के चरित्र पर प्रश्नचिह्न है। विद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी केवल फीस लेना नहीं बल्कि विद्यार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर वह माहौल कहां गायब हो गया, जिसमें बच्चे अपने शिक्षक को गुरु और मार्गदर्शक मानते थे। आज वही शिक्षक जब भय, शोषण और मानसिक दबाव का कारण बन जाए, तब ऐसी घटनाएं अवश्य सामने आएंगी। यह समय शिक्षा संस्थानों की जवाबदेही तय करने का है।
परिवार का दर्द और स्कूल प्रशासन पर आरोप
परिजनों ने आरोप लगाया कि छात्रा घर में बिल्कुल सामान्य थी, लेकिन स्कूल में किसी ने उसे “टॉर्चर” किया। परिवार ने मांग की है कि स्कूल की कॉल डिटेल्स और शिक्षक से जुड़े सभी लोगों की जांच की जाए। वे पूछ रहे हैं कि स्कूल प्रशासन ने आखिर क्या कदम उठाए जब छात्रा परेशान थी। अगर शिक्षक के खिलाफ शिकायतें मिल रहीं थीं तो स्कूल ने कार्रवाई क्यों नहीं की।
परिवार के अनुसार यदि समय रहते छात्रा की समस्या को समझा जाता और कार्रवाई की जाती तो आज एक मासूम जान बच सकती थी। आक्रोशित परिजनों और स्थानीय लोगों ने स्कूल प्रशासन के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की है। यह साफ है कि मामला अब सिर्फ एक छात्रा और एक शिक्षक के बीच का नहीं रहा, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की लापरवाही का उदाहरण बन चुका है।बच्चे अक्सर अपने अंदर के डर या परेशानी को खुलकर अभिभावकों या शिक्षकों के सामने नहीं रख पाते। यह चुप्पी अनजाने में घातक साबित होने लगती है। रीवा की छात्रा की स्थिति भी ऐसी ही थी, जिसने अपनी व्यथा सिर्फ कागज़ पर लिखकर छोड़ दी और अंत में खुद को खत्म कर लिया। ऐसे मामलों की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पीड़ित के मौन को कौन और कब समझ पाए।
पुलिस जांच, उम्मीदें और जिम्मेदारी
पुलिस ने मोबाइल और सुसाइड नोट को जब्त कर जांच शुरू कर दी है। अधिकारी कह रहे हैं कि यह सिर्फ व्यक्तिगत आरोप का मामला नहीं है बल्कि स्कूल की प्रणाली, निगरानी और प्रशासनिक लापरवाही का भी मूल्यांकन किया जाएगा। सभी शिक्षकों से पूछताछ होगी, सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएंगे और कॉल रिकॉर्ड्स की भी जांच होगी।
यह जांच केवल दोषी को सजा दिलाने के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भी आवश्यक है। स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना शिक्षण संस्थानों की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। शिक्षा का वातावरण भय का नहीं, विश्वास का होना चाहिए।