भारतीय रुपये में सोमवार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संभावित बाजार हस्तक्षेप के बाद तेजी देखी गई। शुक्रवार को रिकॉर्ड निचले स्तर 89.49 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंचने के बाद देशी मुद्रा में राहत मिली है। हालांकि, निकट अवधि की अस्थिरता की उम्मीदें कई महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं, जो आने वाले समय में रुपये की चाल को लेकर अनिश्चितता को दर्शाती है।
सोमवार को सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.1625 के स्तर पर था, जो पिछले कारोबारी दिन से 0.3 प्रतिशत मजबूत था। यह उछाल केंद्रीय बैंक के समय पर किए गए हस्तक्षेप का नतीजा माना जा रहा है, जिसने रुपये को ऐतिहासिक निचले स्तर से दूर जाने में मदद की।
आरबीआई का बाजार हस्तक्षेप और रणनीति
व्यापारियों ने बताया कि केंद्रीय बैंक ने स्थानीय स्पॉट बाजार खुलने से पहले ही रुपये को समर्थन देने के लिए संभवतः हस्तक्षेप किया। इस कदम ने मुद्रा को ऐतिहासिक निचले स्तर से वापस आने में मदद की। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समय-समय पर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोका जा सके।
शुक्रवार को रुपये में अचानक आई गिरावट ने व्यापारियों को चौंका दिया था। आरबीआई ने लगभग दो महीने तक रुपये की कमजोरी को 88.80 के स्तर पर सीमित रखने के बाद इस स्तर की रक्षा से पीछे हट गई थी। यह अप्रत्याशित कदम बाजार के लिए आश्चर्यजनक था, क्योंकि केंद्रीय बैंक लगातार इस स्तर को बचाने में सफल रहा था।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा पूंजी निकालने का दौर, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और केंद्रीय बैंक द्वारा 88.80 स्तर की रक्षा में कमी ने स्थानीय मुद्रा में गिरावट को बढ़ावा दिया।
अस्थिरता के संकेतक बढ़े
रुपये में आई अचानक गिरावट के कारण निकट अवधि की अस्थिरता की उम्मीदों में तेज उछाल आया है। डॉलर-रुपया जोड़ी की एक महीने की निहित अस्थिरता सितंबर की शुरुआत के बाद पहली बार 4 प्रतिशत से ऊपर चली गई। यह संकेत बाजार सहभागियों के बीच रुपये की भविष्य की दिशा को लेकर बढ़ी हुई अनिश्चितता को दर्शाता है।
विदेशी मुद्रा सलाहकार फर्म सीआर फॉरेक्स के प्रबंध निदेशक अमित पाबारी ने कहा कि पिछले सप्ताह 89 के स्तर के निर्णायक उल्लंघन के साथ, यह जोड़ी अब 88.90 से 90.20 के नए दायरे में स्थापित होती दिख रही है, क्योंकि बाजार स्थिरता की तलाश कर रहा है।
यह नया दायरा रुपये के लिए एक महत्वपूर्ण चरण का संकेत देता है, जहां बाजार सहभागी नए समर्थन और प्रतिरोध स्तरों की पहचान कर रहे हैं। आने वाले सप्ताहों में इस दायरे के भीतर रुपये की गतिविधि वैश्विक और घरेलू कारकों से प्रभावित होगी।
सरकारी बॉन्ड पर प्रभाव
रुपये में गिरावट ने शुक्रवार को भारत के सॉवरेन बॉन्ड को भी प्रभावित किया। व्यापारियों का मानना है कि मुद्रा में उतार-चढ़ाव बॉन्ड यील्ड के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु बना रहेगा। 10 वर्षीय सॉवरेन बॉन्ड पर यील्ड शुक्रवार को तीन सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद सोमवार को मामूली रूप से कम होकर 6.5578 प्रतिशत पर थी।
बॉन्ड बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार के बीच घनिष्ठ संबंध है। जब रुपया कमजोर होता है, तो विदेशी निवेशकों को मुद्रा जोखिम का सामना करना पड़ता है, जो बॉन्ड की मांग को प्रभावित कर सकता है। इसके विपरीत, जब रुपया मजबूत होता है, तो यह विदेशी निवेश को आकर्षित करने में मदद करता है।
वैश्विक बाजार और डॉलर इंडेक्स की स्थिति
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर इंडेक्स 100.2 के स्तर पर स्थिर रहा। एशियाई मुद्राएं अधिकतर कमजोर रहीं और अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा अगले महीने ब्याज दर में कटौती की बढ़ती संभावनाओं के बावजूद सीमित प्रतिक्रिया दिखाईं।
सीएमई के फेडवॉच टूल के अनुसार, दिसंबर में 25 आधार अंकों की कटौती की संभावना बढ़कर लगभग 70 प्रतिशत हो गई है, जो एक सप्ताह पहले लगभग 45 प्रतिशत थी। फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति का वैश्विक मुद्राओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, और ब्याज दर में कटौती आमतौर पर डॉलर को कमजोर करती है, जो उभरते बाजारों की मुद्राओं के लिए अनुकूल होती है।
पोर्टफोलियो बहिर्वाह और व्यापार चिंताएं
हाल के दिनों में भारत से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा पूंजी निकालने का दौर जारी रहा है। यह रुपये पर दबाव का एक प्रमुख कारक रहा है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, अमेरिकी ब्याज दरों में संभावित बदलाव और घरेलू आर्थिक स्थितियों ने विदेशी निवेशकों के निर्णयों को प्रभावित किया है।
इसके अलावा, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता भी बनी हुई है। व्यापार वार्ताओं में किसी भी नकारात्मक विकास का रुपये पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध महत्वपूर्ण हैं, और किसी भी तरह की व्यापारिक बाधाओं का भारतीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा पर असर पड़ सकता है।
विश्लेषकों का दृष्टिकोण
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले सप्ताहों में रुपये की गतिविधि कई कारकों से प्रभावित होगी। वैश्विक तेल की कीमतें, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति, विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह और घरेलू आर्थिक आंकड़े प्रमुख निर्धारक होंगे।
आरबीआई की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहेगी। केंद्रीय बैंक के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, जिसका उपयोग वह रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए कर सकता है। हालांकि, लगातार हस्तक्षेप भंडार को कम कर सकता है, इसलिए केंद्रीय बैंक को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।
आगे की चुनौतियां
रुपये के सामने कई चुनौतियां हैं। घरेलू स्तर पर मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटा प्रमुख चिंताएं हैं। वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक आर्थिक मंदी के संकेत और प्रमुख केंद्रीय बैंकों की नीतियां रुपये को प्रभावित कर सकती हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि निवेशकों और व्यापारियों को सतर्क रहना चाहिए और मुद्रा जोखिम से बचाव के उपाय करने चाहिए। वायदा अनुबंध, विकल्प और अन्य व्युत्पन्न उपकरण मुद्रा जोखिम को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं।
केंद्रीय बैंक और सरकार को संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान देना चाहिए जो दीर्घकालिक रूप से रुपये को मजबूत करने में मदद करेंगे। निर्यात को बढ़ावा देना, विदेशी निवेश को आकर्षित करना और घरेलू विनिर्माण को मजबूत करना महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।