दो दशक बाद दिल्ली की सड़कों पर विरोध की शैली ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इंडिया गेट के भव्य परिसर में रविवार शाम हुए प्रदर्शन ने देश के लोकतांत्रिक ढांचे, हिंसक समर्थन और नक्सली विचारधारा के प्रसार पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन अचानक उस दिशा में मुड़ गया, जहां प्रदर्शनकारियों के हाथों में पेपर स्प्रे था, और उनके पोस्टर में नक्सली कमांडर माडवी हिडमा का चेहरा दिखाई दे रहा था। यह वही हिडमा है जिसे भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने वर्षों से सबसे खतरनाक माओवादी चेहरों में गिना, और जो हाल ही में मुठभेड़ में मारा गया।
इस प्रदर्शन ने एक तरफ पर्यावरण को लेकर चिंताओं को उजागर किया, वहीं दूसरी तरफ नक्सली विचारधारा के समर्थन जैसी असामान्य प्रवृत्ति ने लोकतांत्रिक विरोध की परिभाषा पर गहरा सवाल खड़ा किया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन के दौरान जब पुलिस ने रास्ता खाली कराने की कोशिश की तो कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों पर मिर्च स्प्रे का उपयोग किया। पुलिस के अनुसार यह घटना पहली बार हुई जब किसी प्रदर्शन में पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने के लिए मिर्च स्प्रे का उपयोग किया गया।
विरोध प्रदर्शन का असामान्य मोड़
वायु प्रदूषण से नक्सली समर्थन तक का सफर
दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है और नागरिक लगातार सरकारों की नीतियों और असफलता पर सवाल उठाते रहे हैं। इसी मुद्दे पर शुरू हुआ प्रदर्शन कुछ ही घंटों में ऐसे रूप में बदल गया, जिसने पूरा माहौल तनावपूर्ण बना दिया। प्रदर्शनकारियों के हाथों में माडवी हिडमा के पोस्टर दिखे, और उनके द्वारा ‘कितने हिडमा मारोगे’, ‘हर घर से हिडमा निकलेगा’ जैसे नारे लगाए गए। यह नारे नक्सली हिंसा को सही ठहराने और उसके समर्थन की ओर संकेत करते हैं, जो लोकतांत्रिक आंदोलन की प्रकृति पर सीधा प्रहार करते हैं।
Ye air pollution protest hai kya
Fir hidma isme apni mrane kahan se aa gya https://t.co/w9O0BJwp1N pic.twitter.com/R0WiaOsrIp— Kapil Tiwari (@kapiltiwari___) November 24, 2025
सड़क जाम और मिर्च स्प्रे हमला
जब प्रदर्शनकारी सड़क पर बैठकर जाम लगाने लगे, तो पुलिस ने उन्हें हटाने की कोशिश की। इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसी दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों पर मिर्च स्प्रे कर दिया। इससे कई कर्मियों की आंखें जलने लगीं और कुछ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पुलिस ने बताया कि यह न केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा था, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी अत्यंत जोखिमपूर्ण स्थिति बन गई थी।
पुलिस द्वारा दर्ज FIR और गिरफ्तारी
दिल्ली पुलिस ने हमला करने, सरकारी कार्य में बाधा डालने, सड़क जाम करने और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने जैसी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है। पुलिस ने 15 से अधिक प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है और कुछ अन्य प्रदर्शनकारियों की पहचान कर आगे कार्रवाई की जा रही है।
नक्सली पोस्टर और राजनीतिक संकेत
भारत में नक्सलवाद एक गंभीर सुरक्षा मुद्दा रहा है। ऐसे में सार्वजनिक स्थान पर माओवादी कमांडर के पोस्टर के साथ आंदोलन करना, इसे केवल पर्यावरण संबंधी विरोध से हटाकर वैचारिक विद्रोह की दिशा में मोड़ देता है। क्या यह केवल प्रदूषण विरोध था या इसके पीछे कोई संगठित विचारधारा के प्रचार की योजना थी? यह एक बड़ा प्रश्न बन गया है, जिसका उत्तर खुफिया एजेंसियां तलाश रही हैं।
लोकतंत्र और हिंसक विरोध के बीच अंतर
लोकतंत्र में विरोध का अधिकार सर्वोपरि है, लेकिन क्या हिंसा इसका हिस्सा हो सकता है? क्या पुलिस कर्मियों पर जानबूझकर हमला और कानून व्यवस्था को चुनौती देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है? यह मुद्दा अब केवल एक विरोध प्रदर्शन का नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक चरित्र की गंभीर परीक्षा बन गया है।
पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल
इंडिया गेट पर हुए प्रदर्शन के बाद पुलिस की भूमिका को लेकर सोशल मीडिया पर सवालों की बाढ़ आ गई। कई लोगों का कहना है कि विरोध को संभालने का तरीका अधिक कठोर था, जबकि अन्य ने तर्क दिया कि मिर्च स्प्रे जैसे हमलों के बाद पुलिसकर्मियों की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इस घटना ने बहस को इस दिशा में मोड़ दिया कि क्या कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल प्रयोग उचित था, या क्या इसे बातचीत के जरिए हल किया जा सकता था।
नक्सली विचारधारा का शहरी विस्तार
शहरी क्षेत्रों में नक्सली विचारधारा का समर्थन कोई नई बात नहीं, परंतु इसे खुले स्थान पर इतने उग्र तरीके से सामने आना बेहद चिंताजनक माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह न केवल सुरक्षा एजेंसियों के लिए चेतावनी है बल्कि यह दिखाता है कि विचारधारा इंटरनेट के माध्यम से शहरों में तेजी से फैल रही है। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या प्रदर्शन प्रदूषण के मुद्दे पर था या इसके नाम पर वैचारिक प्रचार किया जा रहा था।
‘पेपर स्प्रे’ का उपयोग एक नई चुनौती
पेपर स्प्रे आमतौर पर आत्मरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग पुलिस पर हमला करने में किया जाना खतरनाक प्रवृत्ति की शुरुआत है। इससे सार्वजनिक विरोध अब अधिक संगठित और खतरनाक रूप लेने लगा है। अगर ऐसी घटनाएं बढ़ीं तो यह कानून-व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा दोनों को चुनौती देगा।