निर्वाचन प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप के आरोपों से उठा नया राजनीतिक तूफान
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर चुनावी तैयारियों को लेकर उथल-पुथल से भर उठी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य की चुनावी व्यवस्था से जुड़े दो महत्वपूर्ण मामलों को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को एक सप्ताह में दूसरी बार पत्र लिखा है। उनके मुताबिक, राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी हालिया निर्देश चुनावी निष्पक्षता, पारदर्शिता और प्रशासनिक प्रक्रिया की आत्मनिर्भरता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े करते हैं।
ममता बनर्जी ने अपने पत्र में दो प्रमुख विषयों पर त्वरित हस्तक्षेप की मांग की है—पहला, निजी आवासीय परिसरों के भीतर मतदान केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव, और दूसरा, एक वर्ष की अवधि के लिए 1,000 डेटा एंट्री ऑपरेटर तथा 50 सॉफ्टवेयर डेवलपर्स के लिए जारी निविदा। मुख्यमंत्री ने इन दोनों प्रस्तावों को संदेहास्पद, अनावश्यक तथा पारंपरिक प्रशासनिक व्यवस्था से हटकर बताया।
निजी आवासीय परिसरों में मतदान केंद्र की अनुमति पर बढ़ती आशंकाएँ
लोकतांत्रिक निष्पक्षता पर संभावित प्रभाव
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि निजी आवासीय परिसरों में मतदान केंद्र स्थापित करने का विचार स्वयं में चुनावी परिपाटी का उल्लंघन है। उनके अनुसार, मतदान केंद्र सदैव ऐसे स्थलों पर स्थापित किए जाते रहे हैं, जो सर्वसुलभ, तटस्थ और सामान्य जनता के लिए बिना किसी बाध्यता के खुले हों। निजी परिसरों में मतदान का अर्थ है, नियंत्रित प्रवेश, सीमित निगरानी और एक खास वर्ग के लोगों की पहुंच, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों से मेल नहीं खाता।
ममता बनर्जी ने अपने पत्र में लिखा कि ऐसे स्थानों पर मतदान केंद्र बनाना पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने इस प्रस्ताव को ‘स्थापित मानदंडों से सीधे टकराने वाला’ बताया। उनका कहना है कि चुनाव आयोग को ऐसी किसी भी व्यवस्था से बचना चाहिए, जिससे मतदान प्रक्रिया पर किसी वर्ग या समूह के प्रभाव का सवाल उठे।
स्थापित मान्यताओं के अनुरूप मतदान स्थल का चयन
उन्होंने जोर देकर कहा कि दशकों से मतदान केंद्र ऐसे स्थानों पर स्थापित होते रहे हैं, जहाँ आम लोग बेधड़क प्रवेश कर सकें—जैसे सरकारी विद्यालय, सामुदायिक भवन, पंचायत परिसर, या सार्वजनिक स्थलों पर बने भवन। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए मतदान प्रक्रिया समान रूप से सुलभ हो। निजी आवासीय परिसरों में स्थापित मतदान केंद्र इस मूल अवधारणा को कमजोर कर सकते हैं।
ममता बनर्जी का कहना है कि चुनाव आयोग का यह प्रस्ताव न केवल परंपरा के विरुद्ध है, बल्कि इससे असंख्य मतदाताओं में अविश्वास की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
1000 बाहरी डेटा एंट्री ऑपरेटरों की नियुक्ति पर उठे सवाल
क्या जिला प्रशासन के पास पर्याप्त संसाधन नहीं?
मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग द्वारा जारी 1,000 डेटा एंट्री ऑपरेटरों और 50 सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की एक वर्ष की नियुक्ति के लिए निविदा (RFP) जारी करने पर कड़ी आपत्ति जताई है। वे पूछती हैं कि जब प्रत्येक जिले में पहले से ही पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित और सक्षम कर्मी मौजूद हैं, तो बाहरी एजेंसी से इतने बड़े पैमाने पर कर्मियों की नियुक्ति की आवश्यकता क्यों पड़ी।
उन्होंने लिखा कि पारंपरिक रूप से जिला निर्वाचन कार्यालय आवश्यकता के अनुसार अपने संविदात्मक कर्मियों की नियुक्ति स्वयं करता आया है। ऐसे में सीईओ कार्यालय द्वारा एक साथ इतनी बड़ी संख्या में बाहरी कर्मियों की नियुक्ति का निर्णय संदिग्ध प्रतीत होता है।
मुख्यमंत्री का तर्क है कि जिला अधिकारी स्वयं स्थानीय आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से समझते हैं और स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों का उपयोग प्रशासनिक दक्षता को भी बढ़ाता है। उन्होंने सवाल उठाया कि यह नई व्यवस्था किस उद्देश्य से की जा रही है।
राजनीतिक इशारे पर कार्रवाई का आरोप
ममता बनर्जी ने अपने पत्र में यह भी कहा कि यह पूरी प्रक्रिया किसी ‘राजनीतिक दल के इशारे’ पर की जा रही हो सकती है। उन्होंने लिखा कि निविदा का समय और तरीका कई तरह की आशंकाओं को जन्म देता है। उनका मानना है कि इस कदम से चुनावी प्रक्रिया पर अनावश्यक प्रभाव पड़ सकता है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
उन्होंने यह भी पूछा कि यदि तत्काल आवश्यकता की बात कही जा रही है, तो यह नियुक्ति पूरे वर्ष के लिए क्यों की जा रही है। उनके अनुसार यह बात समझ से परे है कि जब चुनावी प्रक्रियाएँ सीमित अवधि के लिए संचालित होती हैं, तब इस तरह की लंबी अवधि की नियुक्तियों की आवश्यकता क्यों पड़ी।
निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उठे गंभीर प्रश्न
क्या सीईओ कार्यालय जिला अधिकारियों की भूमिका से आगे बढ़ रहा है?
मुख्यमंत्री ने यह भी सवाल उठाया कि सीईओ कार्यालय ऐसी भूमिका क्यों निभा रहा है, जो पारंपरिक रूप से सदैव जिले के निर्वाचन कार्यालयों की जिम्मेदारी रही है। उनका कहना है कि राज्य की संरचना को देखते हुए जिला अधिकारी स्थानीय स्तर पर अधिक सक्षम होते हैं और चुनावी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझते हैं।
ममता ने दावा किया कि इस कदम से न केवल जिला प्रशासन की स्वायत्तता प्रभावित होगी, बल्कि इससे चुनावी प्रक्रियाओं में अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप का मार्ग भी खुलता है।
क्या चुनावी स्वतंत्रता के लिए खतरा?
पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग
ममता बनर्जी का पूरा पत्र इस चिंता पर आधारित है कि यदि चुनाव आयोग इस दिशा में आगे बढ़ता है, तो निर्वाचन की पारदर्शिता एवं निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त से आग्रह किया कि वे तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करें और राज्य में चुनावी प्रक्रिया को स्वच्छ, स्वतंत्र और सर्वसुलभ बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएँ।
मुख्यमंत्री का दावा है कि चुनाव आयोग का दायित्व सभी दलों के प्रति समानता बनाए रखना है, और यदि कोई कदम किसी एक दल के हित में प्रतीत होता है तो उसे तुरंत रोकना आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल सरकार और प्रशासन हर चुनाव में आयोग के निर्देशों का पालन करता आया है, लेकिन इस बार उठाए गए कदम कई प्रश्न छोड़ जाते हैं।
राजनीतिक माहौल में बढ़ती तीखी बयानबाज़ी
तृणमूल कांग्रेस बनाम विपक्ष
इस पूरे प्रकरण से राज्य का राजनीतिक माहौल फिर गरमा गया है। तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बाहरी कर्मियों की भर्ती और मतदान केंद्रों के नए प्रस्ताव का उद्देश्य चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करना है। दूसरी ओर विपक्ष का कहना है कि ममता बनर्जी चुनावी सुधारों का विरोध कर रही हैं।
इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच, राज्य के मतदाता एक बार फिर यह देख रहे हैं कि चुनावी व्यवस्था को लेकर राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष निरंतर गहराता जा रहा है।
आगे की राह: क्या हो सकता है समाधान?
चुनाव आयोग से स्पष्टता की माँग
ममता बनर्जी ने अपने पत्र में आग्रह किया है कि चुनाव आयोग इस पूरे प्रकरण पर तुरंत स्पष्टीकरण दे और ऐसे किसी भी कदम को रोके, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास बढ़े। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और प्रशासन चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होने देगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग मुख्यमंत्री की इन आपत्तियों पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देता है। क्या आयोग अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार करेगा या मौजूदा दिशा-निर्देशों के साथ आगे बढ़ेगा—इस पर आने वाले दिनों में स्पष्टता आ सकती है।