हेली गुब्बी ज्वालामुखी का अप्रत्याशित उद्गार: सहस्राब्दियों की निस्तब्धता भंग
अफ्रीकी महाद्वीप के इथियोपिया में स्थित अफार क्षेत्र एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों का केंद्र बन गया है। लगभग दस हजार वर्षों से शांत पड़े हेलि गुब्बी ज्वालामुखी ने अचानक रविवार की सुबह महाविस्फोट का रूप ले लिया, जिसने न केवल इस निर्जन क्षेत्र में भूगर्भीय गतिविधि के नए अध्याय की शुरुआत की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वायु-परिवहन व्यवस्था में भी गंभीर व्यवधान पैदा कर दिया। इस विस्फोट की तीव्रता इतनी अधिक रही कि क्षणभर में घना राख-स्तर वायुमंडल के 15 किलोमीटर तक पहुंच गया, जिससे लाल सागर पार कर यमन और ओमान तक इसका प्रभाव विस्तारित हो गया।
उद्गार की प्रारंभिक झलक: निर्जन अफार की भूमि पर प्रकृति का प्रकोप
इथियोपिया का अफार क्षेत्र पृथ्वी के सबसे कठोर भू-भागों में से एक माना जाता है। यहां की चिलचिलाती गर्मी, असमतल पथरीली भूमि और न्यूनतम मानव हस्तक्षेप इस क्षेत्र को लगभग वीरान बना देते हैं। इसी दुर्गम दानाकिल अवनमन में हेलि गुब्बी ज्वालामुखी स्थित है, जो एक ढालाकार ज्वालामुखी—शील्ड वॉल्केनो—के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिक अभिलेख बताते हैं कि होलोसीन युग, यानी पिछले लगभग 10000 वर्षों में इस ज्वालामुखी ने किसी भी प्रकार की ज्ञात सक्रियता नहीं दिखाई थी। ऐसे में इसका अचानक और तीव्र विस्फोट वैज्ञानिक समुदाय के लिए अत्यंत चौंकाने वाला है।
23 नवंबर की सुबह अचानक सैटेलाइट चित्रों में राख और सल्फर डायऑक्साइड के घने बादलों का उभार दर्ज किया गया। शुरूआती क्षणों में ही यह बादल कई किलोमीटर ऊपर उठ गया और तेज हवाओं के साथ लाल सागर की दिशा में फैलने लगा। ज्वालामुखी की यह गतिविधि इतनी अनपेक्षित थी कि स्थानीय भूगर्भीय तंत्र पर काम करने वाले विशेषज्ञ भी प्रारंभिक विश्लेषण तक सीमित रह गए।
सैटेलाइट से मिली पुष्टि: भूमिगत गतिविधि का एकमात्र प्रमाण
अफार क्षेत्र में भू-निगरानी के लिए कोई प्रत्यक्ष उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। भूमि के कठोर परिवेश के कारण वहां किसी स्थायी मॉनिटरिंग स्टेशन की स्थापना वर्षों से चुनौती बनी हुई है। ऐसे में हेलि गुब्बी के विस्फोट की पुष्टि लगभग पूरी तरह सैटेलाइट प्रणालियों के माध्यम से की गई। टूलूज स्थित ज्वालामुखी राख सलाहकार केंद्र (VAAC) ने विभिन्न सैटेलाइट स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर यह स्पष्ट किया कि विस्फोट वास्तविक है और इसकी तीव्रता असामान्य रूप से अधिक है।
सैटेलाइट डेटा में देखा गया कि राख का बादल कुछ ही घंटों में 15 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई तक पहुंच गया। यह ऊंचाई वैश्विक उड्डयन के लिए अत्यंत संवेदनशील है और यात्री-विमानों की ऊंचाई से प्रत्यक्ष रूप से मेल खाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्वालामुखीय राख इंजन के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है। यह पिघलकर इंजन की धात्विक सतहों पर चिपक सकती है, जिससे इंजन बंद होने या गंभीर नुकसान का जोखिम होता है।
उड़ानों पर प्रभाव: इंडिगो फ्लाइट का डायवर्ज़न
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के मार्गों पर राख के बादल के प्रभाव का सबसे त्वरित उदाहरण भारत की इंडिगो एयरलाइंस की उड़ान 6E 1433 के रूप में सामने आया। यह उड़ान कन्नूर से अबू धाबी जा रही थी, जब इसे अचानक हवा में ही मार्ग बदलना पड़ा। इथियोपिया के ऊपर फैले राख के तीव्र बादल ने इस उड़ान के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया था। विमानों के लिए निर्धारित मानकों के अनुसार ज्वालामुखीय राख से भरे क्षेत्र में प्रवेश करना किसी भी स्थिति में सुरक्षित नहीं है। अतः उड़ान को तुरंत अहमदाबाद की ओर डायवर्ट किया गया।
उड्डयन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थितियाँ केवल सावधानी नहीं, बल्कि अनिवार्य सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन हैं। क्योंकि जेट इंजन राख के महीन कणों को पहचान नहीं पाते और ये कण अत्यंत उच्च तापमान पर पिघलकर इंजन के भीतर जाम की स्थिति पैदा कर सकते हैं। कई ऐतिहासिक घटनाएँ भी इस खतरे की पुष्टि करती हैं, जब राख बादलों में फंसे विमानों के इंजनों ने अचानक काम करना बंद कर दिया था।
अरब प्रायद्वीप में चेतावनियाँ: वायु-गुणवत्ता पर खतरा
विस्फोट की तीव्रता और राख के बादल की दिशा ने जल्द ही अरब प्रायद्वीप के कई हिस्सों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया। यमन और ओमान की दिशा में फैलते हुए इस बादल के कारण वायु-गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव देखना प्रारंभ हुआ। सल्फर डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर को देखते हुए वहां की स्वास्थ्य एजेंसियों ने सलाह जारी की और संवेदनशील लोगों से घरों में रहने का अनुरोध किया। विशेषज्ञों का मानना है कि ज्वालामुखीय विस्फोट के पश्चात कुछ दिनों तक वायु में प्रदूषक गैसों का स्तर बढ़ा रह सकता है, जिससे सांस संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने की आशंका रहती है।
वैज्ञानिक महत्व: अप्रत्याशित विस्फोट ने उठाए अनेक प्रश्न
वैश्विक ज्वालामुखी कार्यक्रम के अनुसार, हेलि गुब्बी में अंतिम परिचित गतिविधि दस हजार वर्ष पूर्व हुई थी। इस दृष्टिकोण से यह विस्फोट केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि भूगर्भीय अध्ययन की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है इस क्षेत्र में मैग्मा गतिविधियां धीरे-धीरे पिछले वर्षों में बढ़ी हों और अब इसका प्रत्यक्ष परिणाम सामने आया हो। हालांकि, कठोर भू-परिस्थितियों के कारण वैज्ञानिक टीमें अभी तक घटनास्थल तक पहुंच नहीं पा रही हैं। ऐसे में विस्तृत अध्ययन की प्रक्रिया में समय लगेगा।
ऐसे ज्वालामुखी, जो कई हजार वर्षों तक निष्क्रिय रहने के बाद सक्रिय होते हैं, वैज्ञानिकों के लिए विशेष रुचि का विषय होते हैं। यह इस बात का संकेत हो सकता है कि धरती के भीतर प्लेटों की गति या मैग्मा संरचना में कोई नया भूगर्भीय परिवर्तन घटित हो रहा है। यदि आने वाले समय में हेलि गुब्बी दोबारा सक्रिय हुआ, तो यह अफार क्षेत्र के भूगोल को पुनर्परिभाषित कर सकता है।
भविष्य की चुनौतियाँ: निगरानी और शोध का विस्तृत मार्ग
हेलि गुब्बी का विस्फोट यह स्पष्ट कर देता है कि प्राकृतिक घटनाओं की भविष्यवाणी और निरीक्षण अभी भी मानव तकनीक के लिए चुनौतीपूर्ण है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं। अफार क्षेत्र में किसी स्थायी निगरानी स्टेशन की स्थापना वैज्ञानिकों की प्राथमिकता हो सकती है, किंतु इसके लिए उच्च स्तरीय तकनीकी और मानव संसाधन योजना की आवश्यकता होगी।
साथ ही, अंतरराष्ट्रीय विमानन एजेंसियों ने स्पष्ट किया है कि आने वाले दिनों में उड़ानों के मार्गों को बदलना या समायोजित करना पड़ सकता है। राख का बादल कई दिनों तक वातावरण में बना रह सकता है। इसलिए, यात्री और विमानन कंपनियों दोनों को सावधानी और धैर्य बरतने की आवश्यकता है।