नागपुर में आज एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जो महाराष्ट्र की राजनीति और सांस्कृतिक परंपराओं के गहरे रिश्ते को दर्शाता है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रेशीमबाग स्थित स्मृति मंदिर का दौरा किया। यह सिर्फ एक औपचारिक भेंट नहीं थी, बल्कि यह उन मूल्यों और विचारधाराओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक प्रतीकात्मक क्षण था, जिनका महाराष्ट्र की राजनीति में गहरा प्रभाव रहा है।
जब मैं इस खबर को देखता हूं, तो मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा नहीं है। नागपुर, जिसे संघ की कर्मभूमि कहा जाता है, में इस तरह की भेंट का अपना विशेष महत्व है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार तथा द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य माधव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरुजी’ की स्मृति स्थलों पर दर्शन कर श्रद्धापूर्वक अभिवादन किया।

रेशीमबाग का ऐतिहासिक महत्व
नागपुर का रेशीमबाग सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि यह भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहां स्थित स्मृति मंदिर में डॉ. हेडगेवार और गुरुजी गोलवलकर के स्मृति स्थल हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी और इसे एक विशाल संगठन के रूप में विकसित किया।
डॉ. हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। उनका विचार था कि राष्ट्र की सच्ची शक्ति उसके संगठित और अनुशासित नागरिकों में निहित है। गुरुजी गोलवलकर ने इस विरासत को आगे बढ़ाया और संघ को वैचारिक मजबूती प्रदान की। आज जब राज्य के शीर्ष नेता यहां आते हैं, तो यह इस विरासत के प्रति उनकी स्वीकृति और सम्मान को दर्शाता है।
उच्च स्तरीय उपस्थिति
इस अवसर पर सिर्फ मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि विधान परिषद के सभापति प्रो. राम शिंदे, उपसभापति डॉ. नीलम गोरे, राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य तथा विधानमंडल के अनेक सदस्यों ने भी स्मृति स्थलों का दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इतनी बड़ी संख्या में नेताओं की उपस्थिति इस भेंट के राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करती है।
मेरी नजर में, यह उपस्थिति यह भी दिखाती है कि महाराष्ट्र की राजनीति में संघ की विचारधारा का कितना व्यापक प्रभाव है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि भाजपा और शिवसेना जैसे दल संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि से जुड़े हैं, लेकिन जब सामूहिक रूप से राज्य का नेतृत्व इस तरह की श्रद्धांजलि देता है, तो यह एक मजबूत संदेश देता है।
संघ के वरिष्ठ प्रचारकों की मौजूदगी
कार्यक्रम के दौरान डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति के व्यवस्थाप्रमुख एवं वरिष्ठ प्रचारक विकास तेलंग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख सुनील देशपांडे, महानगर कार्यवाह रविंद्र बोकारे, स्मारक समिति के सचिव अभय अग्निहोत्री सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे। यह संघ के संगठनात्मक ढांचे और उसकी सक्रियता को दर्शाता है।
संघ की एक खासियत यह है कि यह अपने प्रचारकों और स्वयंसेवकों के माध्यम से जमीनी स्तर पर काम करता है। जब राज्य के शीर्ष नेता यहां आते हैं, तो यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक दौरा नहीं होता, बल्कि यह संघ की जमीनी ताकत और राजनीतिक नेतृत्व के बीच एक सेतु का काम भी करता है।

राष्ट्र निर्माण में योगदान की स्मृति
इस अवसर पर उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों ने राष्ट्र निर्माण में डॉ. हेडगेवार और गुरुजी के योगदान को स्मरण किया तथा उनके विचारों से प्रेरणा लेने की भावना व्यक्त की। यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि आज जब हम स्वतंत्र भारत के 77 वर्ष पूरे कर चुके हैं, तब राष्ट्र निर्माण की अवधारणा और उसमें विभिन्न व्यक्तियों और संगठनों के योगदान को याद रखना जरूरी है।
डॉ. हेडगेवार का मानना था कि एक संगठित समाज ही मजबूत राष्ट्र का आधार बन सकता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन इस विचार को मूर्त रूप देने में लगा दिया। गुरुजी गोलवलकर ने इस विचार को वैचारिक गहराई और दार्शनिक आयाम प्रदान किया। उनकी रचनाएं आज भी संघ के स्वयंसेवकों और राष्ट्रवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान
यह भेंट सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति सम्मान को दर्शाने वाली रही। मेरे विचार में, यह पहलू बेहद महत्वपूर्ण है। आज की राजनीति में अक्सर हम सिर्फ सत्ता और रणनीति की बात करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि राजनीति का एक सांस्कृतिक और मूल्यपरक पक्ष भी होता है।
जब राज्य के नेता किसी सांस्कृतिक या सामाजिक स्थल पर जाते हैं, तो यह केवल राजनीतिक प्रदर्शन नहीं होता। यह उन मूल्यों और परंपराओं को स्वीकार करना भी है जो समाज की पहचान बनाते हैं। महाराष्ट्र में संघ की विचारधारा का व्यापक प्रभाव है, और यह दौरा उस प्रभाव की स्वीकृति का प्रतीक है।
राजनीतिक संदेश और समीकरण
हालांकि यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम था, लेकिन इसके राजनीतिक संदेश को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का एक साथ यहां आना यह भी दिखाता है कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में एकता है। हाल के विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता में आई इस सरकार के लिए यह एक सामूहिक संदेश देने का अवसर था।
संघ हमेशा से भाजपा और उससे जुड़े दलों की वैचारिक प्रेरणा रहा है। जब दोनों नेता एक साथ यहां आते हैं, तो यह संदेश जाता है कि वे एक साझा वैचारिक आधार पर खड़े हैं। यह गठबंधन की मजबूती के लिए भी एक महत्वपूर्ण संकेत है।
नागपुर का केंद्रीय स्थान
नागपुर महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी है और यहां विधानमंडल का शीतकालीन सत्र होता है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि नागपुर संघ की जन्मभूमि और कर्मभूमि है। यहां के रेशीमबाग, महाराज बाग और अन्य स्थान संघ के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं।
जब राज्य का नेतृत्व नागपुर में होता है और वे इन ऐतिहासिक स्थलों पर जाते हैं, तो यह शहर की सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्रीयता को और मजबूत करता है। विदर्भ क्षेत्र के लिए भी यह गौरव का विषय है कि उनका शहर ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियों का केंद्र बनता है।

व्यक्तिगत राय और विश्लेषण
मेरी नजर में, यह दौरा कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है। एक स्तर पर यह ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के प्रति सम्मान है, दूसरे स्तर पर यह वैचारिक जुड़ाव की स्वीकृति है, और तीसरे स्तर पर यह राजनीतिक एकता का प्रदर्शन भी है।
लेकिन इससे आगे, मुझे लगता है कि यह उस व्यापक सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा है जो भारतीय राजनीति को परिभाषित करता है। पश्चिम की राजनीति की तरह यहां राजनीति सिर्फ नीतियों और कार्यक्रमों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गहरे सांस्कृतिक और वैचारिक धाराओं से जुड़ी है।
अंततः, यह दौरा यह भी दिखाता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में वैचारिक स्पष्टता है और राज्य का नेतृत्व अपनी जड़ों को भूला नहीं है। चाहे इसे कोई सकारात्मक देखे या नकारात्मक, लेकिन यह एक वास्तविकता है जिसे समझना जरूरी है।