घुग्घुस नगर परिषद में चुनावी प्रक्रिया चल रही है और इस दौरान आदर्श आचार संहिता पूरी तरह लागू है। ऐसे में सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे नियमों का पालन करें और चुनावी निष्पक्षता को बनाए रखें। लेकिन हाल ही में घुग्घुस में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने चुनाव की पवित्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारियों और भाजपा विधायक किशोर जोरगेवार पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप लगे हैं।
विवादित बैठक और निधि की घोषणा
14 दिसंबर 2025 को घुग्घुस में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक जयप्रकाश द्विवेदी शामिल हुए। उनके साथ कंपनी के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक की सबसे खास बात यह रही कि इसमें भाजपा विधायक किशोर जोरगेवार भी उपस्थित थे।
इस बैठक के दौरान घुग्घुस स्थित एक पुल के निर्माण कार्य के लिए 1.82 करोड़ रुपये की अतिरिक्त निधि की घोषणा की गई। यह घोषणा करते हुए यह भी बताया गया कि इस राशि को 15 दिसंबर 2025 को जारी किया जाएगा। सामान्य परिस्थितियों में यह एक विकास कार्य के लिए सकारात्मक कदम माना जाता, लेकिन चुनाव के दौरान ऐसी घोषणा करना आदर्श आचार संहिता का सीधा उल्लंघन है।

आदर्श आचार संहिता क्या कहती है
आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए वे नियम हैं जो चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए बनाए गए हैं। जब किसी क्षेत्र में चुनाव की घोषणा हो जाती है, तब से लेकर चुनाव परिणाम आने तक आचार संहिता लागू रहती है। इस दौरान कोई भी सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि किसी भी प्रकार की नई योजना की घोषणा नहीं कर सकता, कोई नई निधि जारी नहीं कर सकता और न ही ऐसी कोई गतिविधि कर सकता है जिससे मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके।
घुग्घुस में जो घटना हुई वह इन नियमों का खुला उल्लंघन है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के अधिकारियों द्वारा चुनाव के दौरान निधि की घोषणा करना, वह भी एक राजनीतिक दल के विधायक की उपस्थिति में, चुनावी मर्यादा का हनन माना जा रहा है।

सोशल मीडिया पर प्रचार का आरोप
मामला यहीं नहीं रुका। बैठक के बाद विधायक किशोर जोरगेवार ने इस निधि घोषणा की तस्वीरें और जानकारी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा की। साथ ही इसे विभिन्न व्हाट्सऐप ग्रुप्स में भी प्रसारित किया गया। इस तरह की गतिविधि से साफ तौर पर यह दिखता है कि सरकारी मंच का इस्तेमाल राजनीतिक प्रचार के लिए किया गया।
जब कोई जनप्रतिनिधि सरकारी योजना या निधि की घोषणा को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करता है, तो इससे मतदाताओं पर सीधा असर पड़ता है। खासकर चुनाव के समय में ऐसा करना और भी खतरनाक है क्योंकि इससे मतदाता प्रभावित हो सकते हैं और एक पक्ष को अनुचित लाभ मिल सकता है।
सार्वजनिक संस्थाओं की तटस्थता जरूरी
वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड भारत सरकार की कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी है और यह एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। ऐसी संस्थाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे हर समय तटस्थ रहें और किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल न हों। खासकर चुनाव के दौरान इन संस्थाओं को बेहद सतर्क रहना चाहिए।
लेकिन घुग्घुस की घटना में WCL के अधिकारियों ने एक राजनीतिक दल के विधायक की उपस्थिति में निधि की घोषणा की। यह सरकारी संस्थाओं की तटस्थता पर सवाल खड़े करता है। अगर सरकारी अधिकारी चुनाव के समय राजनीतिक नेताओं के साथ मिलकर घोषणाएं करने लगें तो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी।
चुनाव आयोग से शिकायत
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्थानीय नागरिकों और विरोधी दलों ने चुनाव आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में कहा गया है कि WCL के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक जयप्रकाश द्विवेदी, अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और भाजपा विधायक किशोर जोरगेवार ने आदर्श आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन किया है।
शिकायतकर्ताओं ने मांग की है कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जाए। संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और सोशल मीडिया पर फैलाई गई प्रचार सामग्री को तुरंत हटाया जाए। साथ ही यह भी मांग की गई है कि सभी सरकारी संस्थाओं को स्पष्ट निर्देश दिए जाएं कि वे चुनाव के दौरान पूरी तरह तटस्थ रहें।
चुनावी निष्पक्षता पर सवाल
यह घटना सिर्फ एक नियम उल्लंघन का मामला नहीं है। यह लोकतंत्र की बुनियाद पर सवाल खड़े करता है। जब सरकारी अधिकारी और जनप्रतिनिधि मिलकर चुनाव के दौरान नियमों को तोड़ते हैं, तो आम नागरिकों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास कमजोर होता है।
घुग्घुस के मतदाताओं को यह महसूस हो सकता है कि उन्हें निधि की घोषणा के बदले वोट देने के लिए प्रभावित किया जा रहा है। यह चुनाव की पवित्रता और स्वतंत्रता के खिलाफ है। हर नागरिक को बिना किसी दबाव या प्रलोभन के अपने मन के अनुसार वोट देने का अधिकार है।
कड़े कदम उठाने की जरूरत
इस मामले में चुनाव आयोग को सख्त कदम उठाना जरूरी है। अगर ऐसे उल्लंघनों को नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में और भी कई ऐसे मामले सामने आ सकते हैं। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए ��ि सभी राजनीतिक दल, सरकारी अधिकारी और संस्थाएं आदर्श आचार संहिता का पालन करें।
साथ ही इस मामले में दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। केवल चेतावनी देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि ऐसे उदाहरण पेश करने होंगे जो भविष्य में किसी को भी ऐसा करने से रोकें।
घुग्घुस नगर परिषद चुनाव में हुआ यह उल्लंघन चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को चुनौती देता है। सार्वजनिक संस्थाओं और जनप्रतिनिधियों को समझना होगा कि लोकतंत्र में नियमों का पालन सबसे जरूरी है। अगर नियम सभी पर समान रूप से लागू नहीं होंगे तो लोकतंत्र कमजोर होगा। अब चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह इस मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई करे ताकि चुनावी प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे और नागरिकों का विश्वास बना रहे।