Bha Bha Ba Movie Release: मलयालम सिनेमा की नई फिल्म ‘भा भा बा’ गुरुवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है, लेकिन यह रिलीज सामान्य फिल्मों की तरह शांत नहीं रही। इस फिल्म के साथ एक लंबा विवाद, कई सवाल और समाज की असहजता भी सिनेमाघरों तक पहुंच गई है। अभिनेता दिलीप के करियर में यह फिल्म एक अहम मोड़ मानी जा रही है, क्योंकि यह उस कानूनी फैसले के बाद आई उनकी पहली बड़ी रिलीज है, जिसने वर्षों पुराने एक गंभीर मामले को न्यायिक रूप से समाप्त कर दिया।
फिल्म से आगे की कहानी
‘भा भा बा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उस बहस का केंद्र बन चुकी है जो 2017 से लगातार मलयालम फिल्म उद्योग और समाज के बीच चल रही है। अदालत का फैसला भले ही आ चुका हो, लेकिन दर्शकों के मन में उठे सवाल अब भी पूरी तरह शांत नहीं हुए हैं। यही वजह है कि फिल्म की रिलीज से पहले ही विरोध और समर्थन, दोनों स्वर तेज हो गए।
सोशल मीडिया से सड़कों तक विरोध
फिल्म को लेकर बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कहीं फिल्म के बहिष्कार की मांग उठी, तो कहीं सिनेमाघरों के बाहर छोटे स्तर पर विरोध दर्ज कराया गया। दिलीप की स्क्रीन पर वापसी कई लोगों को असहज करती नजर आई। वहीं, कुछ दर्शकों का मानना है कि अदालत के फैसले के बाद किसी कलाकार को हमेशा के लिए नकार देना भी सही नहीं है।
फिल्म इंडस्ट्री के भीतर उठती असहजता
‘भा भा बा’ के ट्रेलर और प्रमोशनल गतिविधियों के बाद बहस और गहरी हो गई। जब फिल्म से जुड़े कुछ बड़े नामों ने इसे सार्वजनिक रूप से समर्थन दिया, तो इंडस्ट्री के भीतर से भी सवाल उठने लगे। आलोचकों का कहना है कि एक तरफ नैतिक मूल्यों और महिला सुरक्षा की बात होती है, वहीं दूसरी ओर पेशेवर सहयोग के नाम पर चुप्पी या समर्थन दिखाई देता है।
दिलीप का सितारा और उसका ढलान
एक समय था जब दिलीप मलयालम सिनेमा के सबसे भरोसेमंद और लोकप्रिय अभिनेताओं में गिने जाते थे। उनकी पारिवारिक और हास्य फिल्मों ने उन्हें हर वर्ग का चहेता बना दिया था। लेकिन विवाद के बाद उनकी सार्वजनिक छवि को गहरा झटका लगा। फिल्मों की सफलता भी पहले जैसी नहीं रही। कुछ परियोजनाएं चलीं, लेकिन कई दर्शकों से जुड़ नहीं सकीं। ऐसे में ‘भा भा बा’ को उनके करियर की अग्निपरीक्षा माना जा रहा है।
अदालत का फैसला और समाज की उलझन
हाल ही में एर्नाकुलम प्रिंसिपल सेशंस कोर्ट ने 2017 के अभिनेत्री अपहरण और यौन उत्पीड़न मामले में दिलीप को सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष दिलीप की भूमिका साबित करने में ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। कानूनी रूप से मामला समाप्त हो गया, लेकिन सामाजिक स्तर पर सवाल अब भी जीवित हैं।