बांग्लादेश में कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। हाल के दिनों में भीड़ द्वारा की गई हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं जिन्होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। इनमें मैमनसिंह में एक गारमेंट कामगार की पीट-पीटकर हत्या और लक्ष्मीपुर में आगजनी हमले में एक सात साल की बच्ची की मौत जैसी घटनाएं शामिल हैं। इन घटनाओं ने न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गहरी चिंता पैदा की है।
बांग्लादेश पुलिस का बयान
बांग्लादेश पुलिस ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनके पास ऐसी कोई खास जानकारी नहीं है कि फैसल करीम मसूद देश छोड़कर जा चुका है। फैसल इंकिलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान बिन हादी की हत्या का मुख्य आरोपी है। पुलिस के अतिरिक्त महानिरीक्षक खांडेकर रफीकुल इस्लाम ने कहा कि कानून लागू करने वाली एजेंसियां और खुफिया विभाग फैसल का पता लगाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक किसी राजनीतिक दल को इस हत्या से जोड़ने वाले कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं।
मानवाधिकार संगठन की चिंता
प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सलीश केंद्र ने हाल की भीड़ हिंसा की घटनाओं की कड़ी निंदा की है। संगठन ने चेतावनी दी है कि ये घटनाएं देश में बिगड़ती कानून व्यवस्था और बढ़ती दंडमुक्ति की संस्कृति को दर्शाती हैं। संगठन ने प्रशासनिक और सुरक्षा विफलताओं की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
दीपू चंद्र दास की हत्या का मामला
18 दिसंबर को मैमनसिंह के भालुका उपजिला में दीपू चंद्र दास नाम के एक गारमेंट कामगार की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। दीपू हिंदू समुदाय से थे और उन पर धर्म निंदा का आरोप लगाया गया था। उनकी हत्या के बाद उनके शव को एक पेड़ से बांधकर आग लगा दी गई। यह घटना बेहद क्रूर और अमानवीय थी।
हालांकि रैपिड एक्शन बटालियन ने अपनी जांच में पाया कि दीपू द्वारा किसी धार्मिक टिप्पणी किए जाने के कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिले हैं। इससे यह सवाल उठता है कि किस आधार पर भीड़ ने उन्हें मार डाला। यह घटना हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के लिए खतरे की घंटी है।
लक्ष्मीपुर में आगजनी हमला
लक्ष्मीपुर में एक आगजनी हमले में एक सात साल की मासूम बच्ची की मौत हो गई। यह घटना भी उतनी ही दुखद और चिंताजनक है। बच्ची की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। यह घटना दर्शाती है कि कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी खराब हो चुकी है।
प्रेस की आजादी पर हमले
हाल के दिनों में मीडिया कार्यालयों पर हुए हमलों ने भी गहरी चिंता पैदा की है। प्रथम आलो और द डेली स्टार के कार्यालयों में आगजनी की घटनाएं हुईं। इन हमलों को प्रेस की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर हमले के रूप में देखा जा रहा है।
वरिष्ठ राजनीतिक हस्तियों, पत्रकारों, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और यूरोपीय संघ के राजदूत सहित अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने इन हमलों की निंदा की है। उन्होंने तत्काल जवाबदेही और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदमों की मांग की है।
दंडमुक्ति की बढ़ती संस्कृति
ऐन ओ सलीश केंद्र ने चेतावनी दी है कि देश में दंडमुक्ति की संस्कृति बढ़ रही है। अपराधियों को सजा न मिलने से लोगों में कानून का डर खत्म हो रहा है। यह स्थिति बेहद खतरनाक है और इससे और अधिक हिंसा की घटनाएं हो सकती हैं।
संगठन ने कहा कि प्रशासनिक और सुरक्षा विफलताओं की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय पर हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। धर्म निंदा के झूठे आरोप लगाकर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। दीपू चंद्र दास का मामला इसका ताजा उदाहरण है।
इन घटनाओं से अल्पसंख्यक समुदाय में डर और असुरक्षा का माहौल है। वे अपने घरों में भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। सरकार को इस समुदाय की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
बांग्लादेश में हो रही इन घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जताई जा रही है। यूरोपीय संघ के राजदूत ने प्रेस की आजादी पर हमलों की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।
मानवाधिकार संगठन भी बांग्लादेश सरकार से स्थिति सुधारने की अपील कर रहे हैं। अगर सरकार ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए तो स्थिति और खराब हो सकती है।
जांच की मांग
विभिन्न संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इन सभी घटनाओं की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाई या नहीं।
ऐन ओ सलीश केंद्र ने कहा कि केवल घटनाओं की निंदा करना काफी नहीं है। जवाबदेही तय करनी होगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
बांग्लादेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था एक गंभीर चिंता का विषय है। भीड़ हिंसा, अल्पसंख्यकों पर हमले और प्रेस की आजादी पर हमले लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। सरकार को तत्काल सख्त कदम उठाने की जरूरत है। नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और दोषियों को सजा दिलाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर समय रहते स्थिति नहीं संभाली गई तो देश में अराजकता फैल सकती है।