Osman Hadi Murder: बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर हिंसा, आरोपों और साजिशों के भंवर में फंसती नजर आ रही है। चर्चित छात्र नेता और इंकिलाब मंच के संयोजक शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने न सिर्फ देश को झकझोर दिया है, बल्कि आगामी राष्ट्रीय चुनावों पर भी गहरा सवालिया निशान लगा दिया है। यह हत्या अब सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं रह गई, बल्कि सत्ता, चुनाव और लोकतंत्र की दिशा तय करने वाली बहस का केंद्र बन चुकी है।
हादी की मौत के बाद जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुए हैं, उन्होंने अंतरिम सरकार के नेतृत्व और उसकी नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मृतक के भाई ओमर हादी के आरोपों ने इस मामले को और भी संवेदनशील बना दिया है। उनका कहना है कि यह हत्या किसी व्यक्तिगत दुश्मनी का नतीजा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक साजिश थी, जिसका मकसद आगामी चुनावों को अस्थिर करना था।
हत्या के बाद सड़कों से मंच तक गूंजता आक्रोश
ढाका के शाहबाग इलाके में राष्ट्रीय संग्रहालय के सामने आयोजित शहीदी शपथ कार्यक्रम ने साफ कर दिया कि यह मामला अब आम जनता की भावनाओं से जुड़ चुका है। हजारों लोगों की मौजूदगी में ओमर हादी ने जिस तीखे लहजे में अंतरिम सरकार पर आरोप लगाए, उसने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी।
“चुनाव पटरी से उतारने की साजिश”
ओमर हादी ने सीधे तौर पर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सत्ता में बैठे लोगों के एक खास गुट ने जानबूझकर उनके भाई की हत्या कराई। उनका आरोप है कि हादी की लोकप्रियता और चुनावी बढ़त कुछ ताकतों को रास नहीं आ रही थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया।
ओमर हादी का दावा है कि यह साजिश किसी बाहरी ताकत की नहीं, बल्कि सरकार के भीतर मौजूद एक गुट की देन है। उनके मुताबिक, यही गुट अब हत्या को बहाना बनाकर चुनावी माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है, ताकि सत्ता संतुलन अपने पक्ष में किया जा सके।
उम्मीदवार से शहीद तक, हादी की अधूरी राजनीतिक यात्रा
शरीफ उस्मान हादी सिर्फ एक छात्र नेता नहीं थे। वह उस पीढ़ी की आवाज थे, जिसने 2024 के जन आंदोलन में सड़कों पर उतरकर सत्ता परिवर्तन की नींव रखी थी। आगामी 12 फरवरी को होने वाले आम चुनाव में वह उम्मीदवार भी थे, जिससे उनकी हत्या के राजनीतिक मायने और गहरे हो जाते हैं।
परिवार का आरोप है कि हादी ने किसी भी एजेंसी या विदेशी आकाओं के आगे झुकने से इनकार कर दिया था। यही उनकी सबसे बड़ी “गलती” बन गई। बांग्लादेश की राजनीति में विदेशी प्रभाव को लेकर पहले से ही संदेह का माहौल रहा है और हादी की हत्या ने इन आशंकाओं को और मजबूत कर दिया है।
लोकप्रियता से उपजा डर
हादी की लोकप्रियता खासकर युवाओं और छात्रों के बीच तेजी से बढ़ रही थी। उनका साफ-सुथरा और आक्रामक राजनीतिक रुख कई स्थापित ताकतों के लिए खतरा बन चुका था। ऐसे में उनकी हत्या को सत्ता संघर्ष के संदर्भ में देखा जा रहा है।
हत्या की रात और सिंगापुर तक इलाज की जंग
32 वर्षीय हादी पर ढाका में एक मस्जिद से बाहर निकलते समय गोली चलाई गई। गंभीर रूप से घायल हालत में उन्हें पहले स्थानीय अस्पताल और फिर बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया। कई दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद 19 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
हादी की मौत की खबर फैलते ही ढाका समेत कई इलाकों में तनाव बढ़ गया। विरोध प्रदर्शन, नारेबाजी और सरकार विरोधी आवाजें तेज हो गईं। यह साफ संकेत था कि मामला सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या तक सीमित नहीं रहेगा।
अंतरिम सरकार पर बढ़ता दबाव
ओमर हादी ने सरकार को खुली चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर हत्यारों को जल्द सजा नहीं दी गई, तो अंतरिम सरकार का अंजाम भी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना जैसा हो सकता है। यह बयान सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि बांग्लादेश के हालिया राजनीतिक इतिहास की याद दिलाने वाला संकेत है।
शेख हसीना के पतन की छाया
2024 के जन आंदोलन के बाद शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भारत जाना पड़ा था। अब उसी आंदोलन के एक प्रमुख चेहरे की हत्या और सरकार पर उठते सवाल यह दिखाते हैं कि बांग्लादेश की राजनीति अभी भी अस्थिरता के दौर से गुजर रही है।