दिल्ली की बिगड़ती हवा और एयर प्यूरीफायर पर भारी कर का सवाल राजधानी में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से एयर प्यूरीफायर पर लगाए गए 18 फीसदी जीएसटी को लेकर सख्त सवाल किया है। अदालत ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण के बीच नागरिकों को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराना सरकार की न्यूनतम जिम्मेदारी है। बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले में सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई न होने पर नाराजगी जताई।
अदालत ने क्या कहा
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि एयर प्यूरीफायर को विलासिता की वस्तु नहीं माना जा सकता, खासकर उस शहर में जहां लोग गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। अदालत ने कहा कि हर नागरिक को साफ हवा में सांस लेने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि एयर प्यूरीफायर उपलब्ध कराए जाएं, यह तो कम से कम किया ही जा सकता है। अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह कब तक इस मामले में जवाब देगी।
न्यायालय ने कहा कि अगर अस्थायी रूप से भी हो, तो अगले एक हफ्ते या एक महीने के लिए छूट दी जाए। इसे आपातकालीन स्थिति मानते हुए अस्थायी तौर पर ही सही, कुछ राहत दी जानी चाहिए। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इस बारे में अनुदेश लेकर वापस आए।
सांसों की गिनती और फेफड़ों पर असर
पीठ ने आगे कहा कि जब हम बात कर रहे हैं तो भी सांस ले रहे हैं। आप जानते हैं कि हम एक दिन में कितनी बार सांस लेते हैं, कम से कम 21,000 बार। जरा सोचिए कि दिन में 21,000 बार सांस लेने से आप अपने फेफड़ों को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, और यह तो अनैच्छिक क्रिया है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है।
जीएसटी परिषद का फैसला
सुनवाई में बाद में जब कार्यवाही फिर शुरू हुई तो केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि जीएसटी दरों पर फैसला जीएसटी परिषद द्वारा लिया जाता है, जिसमें सभी राज्य और केंद्र शामिल होते हैं। सरकार की ओर से कहा गया कि यह अकेले केंद्र का फैसला नहीं है बल्कि सभी राज्यों की सहमति से लिया गया निर्णय है।
याचिका में क्या कहा गया
दायर की गई याचिका में एयर प्यूरीफायर को चिकित्सा उपकरण घोषित करने और उन्हें जीएसटी से छूट देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि सबसे ऊंची दर पर एयर प्यूरीफायर पर जीएसटी लगाना इन्हें आम जनता की पहुंच से दूर कर देता है। याचिका में कहा गया कि एयर प्यूरीफायर अब घर के अंदर न्यूनतम सुरक्षित हवा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हो गए हैं।
याचिका में आगे कहा गया कि सबसे ऊंची दर पर जीएसटी लगाना, एक ऐसे उपकरण पर जो न्यूनतम सुरक्षित इनडोर हवा के लिए अपरिहार्य हो गया है, ऐसे उपकरणों को आबादी के बड़े हिस्से के लिए आर्थिक रूप से अप्राप्य बना देता है। याचिका में इसे मनमाना, अनुचित और संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य बोझ बताया गया है।
दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति
यह सुनवाई उस समय हुई जब दिल्ली जहरीली धुंध की चपेट में है। आईटीओ और इंडिया गेट सहित शहर के कई हिस्सों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब दर्ज की गई। सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार एक्यूआई का स्तर 350 को पार कर गया है। दिल्ली-एनसीआर में ग्रेप स्टेज-4 के उपाय लागू किए गए हैं।
प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
ग्रेप यानी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत चौथे चरण में कई सख्त उपाय लागू किए जाते हैं। इसमें निर्माण कार्य पर रोक, ट्रकों के प्रवेश पर पाबंदी और स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं शामिल हैं। लेकिन इन सबके बावजूद प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना हुआ है।
जनता की परेशानी
दिल्ली और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। खासकर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए स्थिति और भी गंभीर है। लोग घरों में एयर प्यूरीफायर लगाने को मजबूर हैं लेकिन इन पर भारी जीएसटी उन्हें आम आदमी की पहुंच से दूर कर देता है।
बहस का विषय बना मुद्दा
दिल्ली हाईकोर्ट के इस सवाल ने एयर प्यूरीफायर की किफायत और प्रदूषण की जिम्मेदारी पर बहस छेड़ दी है। कई लोगों ने इस विरोधाभास को उजागर किया कि एक तरफ प्रदूषण की शिकायत की जाती है और दूसरी तरफ खुद ही प्रदूषण बढ़ाने में योगदान दिया जाता है। कुछ लोगों ने प्रदूषण और वित्तीय जिम्मेदारी के सरकारी प्रबंधन की आलोचना की है।
जवाबदेही का सवाल
यह मामला सरकार की जवाबदेही का भी सवाल उठाता है। क्या सरकार केवल कर वसूलने में विश्वास करती है या नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता भी करती है? एयर प्यूरीफायर जैसी जरूरी चीज पर भारी कर लगाना सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है।
समाधान की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि एयर प्यूरीफायर पर कर कम करना अस्थायी समाधान है। असली समाधान प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण करना है। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक लोगों को राहत देने के लिए एयर प्यूरीफायर सस्ते करने होंगे।
अदालत का रुख स्पष्ट है कि स्वच्छ हवा में सांस लेना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस मामले में क्या जवाब देती है और जीएसटी परिषद इस पर क्या फैसला लेती है।