Odisha Maoist Encounter: ओडिशा के कंधमाल जिले के घने और दुर्गम गुम्मा जंगलों में बुधवार रात जो हुआ, वह सिर्फ एक मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि वर्षों से जारी माओवादी हिंसा के खिलाफ सुरक्षा बलों की रणनीतिक बढ़त का संकेत था। इस मुठभेड़ में दो महिला सहित चार माओवादियों के मारे जाने की पुष्टि ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि राज्य में नक्सलवाद की जड़ें कमजोर हो रही हैं, भले ही उसका खतरा पूरी तरह खत्म न हुआ हो।
गुम्मा के जंगलों में कैसे शुरू हुआ अभियान
जानकारी के मुताबिक, ओडिशा पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की एक छोटी लेकिन प्रशिक्षित मोबाइल टीम ने बेलघर पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गुम्मा जंगल में तलाशी अभियान शुरू किया था। यह इलाका लंबे समय से माओवादियों की गतिविधियों के लिए जाना जाता रहा है।
जैसे ही सुरक्षा बल जंगल के भीतर आगे बढ़े, माओवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद दोनों ओर से भारी फायरिंग हुई। यह मुठभेड़ देर रात तक चली, जिसमें चार माओवादी मारे गए।
मारा गया 1.1 करोड़ इनामी गणेश उइके
इस मुठभेड़ का सबसे बड़ा पहलू ओडिशा के शीर्ष माओवादी नेताओं में शामिल गणेश उइके का मारा जाना है। गणेश उइके पर 1.1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था और वह राज्य में माओवादी गतिविधियों का एक अहम चेहरा माना जाता था।
उसकी मौत केवल एक कैडर के खत्म होने की घटना नहीं है, बल्कि इससे माओवादी नेटवर्क की रणनीतिक कमर टूटने की संभावना है। वर्षों से जंगलों में सक्रिय यह नेता सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बना हुआ था।
महिला माओवादियों की मौजूदगी
मुठभेड़ स्थल से दो महिला माओवादियों के शव बरामद होने और बाद में तीसरी महिला कैडर का शव मिलने से यह भी स्पष्ट होता है कि माओवादी संगठन अब महिला कैडरों को अग्रिम मोर्चे पर उतार रहा है।
यह माओवादी रणनीति में बदलाव का संकेत है, जहां महिलाएं न केवल समर्थन भूमिकाओं में, बल्कि सीधे हथियारबंद संघर्ष में शामिल हो रही हैं। हालांकि, सुरक्षा बलों की सटीक कार्रवाई ने इस प्रयास को भी नाकाम कर दिया।
बरामद हथियार और संचार उपकरण
पुलिस ने मुठभेड़ स्थल से एक रिवॉल्वर, एक .303 राइफल और एक वॉकी-टॉकी सेट बरामद किया है। ये बरामदगी इस बात का संकेत है कि माओवादी अब भी हथियारों और संचार साधनों से लैस हैं, लेकिन उनकी गतिविधियों पर सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ मजबूत होती जा रही है।
बिना किसी नुकसान के लौटी सुरक्षा टीम
इस मुठभेड़ का एक अहम पहलू यह रहा कि सुरक्षा बलों की ओर से कोई हताहत नहीं हुआ। यह स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की ट्रेनिंग, समन्वय और रणनीति की सफलता को दर्शाता है।
मुठभेड़ के बाद इलाके में तलाशी अभियान और तेज कर दिया गया है, ताकि किसी भी संभावित माओवादी समूह की मौजूदगी को पूरी तरह खत्म किया जा सके।
सरेंडर के बाद बदला सुरक्षा परिदृश्य
यह मुठभेड़ ऐसे समय में हुई है, जब इसके ठीक एक दिन पहले पड़ोसी मलकानगिरी जिले में 22 माओवादियों ने ओडिशा के पुलिस महानिदेशक वाईबी खुराना के सामने आत्मसमर्पण किया था।
एक तरफ सामूहिक सरेंडर और दूसरी तरफ सख्त कार्रवाई, यह दोहरी रणनीति राज्य सरकार और पुलिस की नीति को दर्शाती है। एक ओर मुख्यधारा में लौटने का मौका, तो दूसरी ओर हिंसा जारी रखने वालों के खिलाफ कड़ा रुख।