Viksit Bharat G RAM G Scheme: भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना अब केवल शहरों तक सीमित नहीं रहा। केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि इस लक्ष्य की असली नींव गांवों में रखी जाएगी। इसी सोच के तहत केंद्र सरकार ने विकसित भारत: ग्राम जी योजना को नया और व्यापक स्वरूप दिया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना को ग्रामीण भारत के लिए “आर्थिक सुरक्षा और आत्मसम्मान का आधार” बताया है।
डीडी न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि विकसित भारत का सपना तब तक अधूरा है, जब तक गांव समृद्ध, आत्मनिर्भर और सुरक्षित नहीं बनते। इसी उद्देश्य से विकसित भारत: ग्राम जी अधिनियम को लागू किया गया है, जो रोजगार, आय और अधिकार—तीनों को एक साथ मजबूत करता है।
विकसित भारत ग्राम जी योजना की नई रूपरेखा
विकसित भारत: ग्राम जी योजना का मूल उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को स्थायी आजीविका, सम्मानजनक मजदूरी और समयबद्ध रोजगार उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत अब प्रत्येक ग्रामीण परिवार को मिलने वाली मजदूरी रोजगार की वैधानिक गारंटी 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन कर दी गई है।
यह बदलाव केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह उन करोड़ों ग्रामीण परिवारों के लिए राहत है, जिनकी आजीविका मौसम, कृषि और अस्थायी काम पर निर्भर रहती है। अतिरिक्त 25 दिन का रोजगार सीधे तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह बढ़ाएगा।
15 दिन में काम नहीं तो मिलेगा बेरोजगारी भत्ता
इस योजना का सबसे अहम और ऐतिहासिक पहलू यह है कि अब यदि किसी ग्रामीण परिवार को आवेदन करने के 15 दिन के भीतर काम नहीं दिया गया, तो सरकार बेरोजगारी भत्ता देना अनिवार्य होगा।
यह प्रावधान योजना को सिर्फ एक कल्याणकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक कानूनी अधिकार बनाता है। मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट कहा कि अब रोजगार देना सरकार की जिम्मेदारी होगी और इसमें लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।
ग्रामीण सम्मान और अधिकार की बात
ग्रामीण भारत में अक्सर देखा गया है कि काम की मांग करने के बावजूद लोगों को समय पर रोजगार नहीं मिलता था। कई बार उन्हें मजबूरी में शहरों की ओर पलायन करना पड़ता था। नई व्यवस्था के तहत रोजगार न मिलने पर मिलने वाला भत्ता सरकार की जवाबदेही तय करेगा और ग्रामीणों के आत्मसम्मान को भी मजबूती देगा।
गांवों में होंगे बड़े विकास कार्य
विकसित भारत: ग्राम जी योजना केवल मजदूरी तक सीमित नहीं है। इसके अंतर्गत गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास पर भी जोर दिया जाएगा। इसमें सड़क, जल संरक्षण, सिंचाई, तालाब, खेल मैदान, पंचायत भवन और हरित परियोजनाएं शामिल होंगी।
सरकार का मानना है कि इन विकास कार्यों से गांवों में न केवल रोजगार पैदा होगा, बल्कि स्थानीय जरूरतों के अनुसार स्थायी परिसंपत्तियां भी तैयार होंगी।
एक लाख 51 हजार करोड़ रुपये का वार्षिक खर्च
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस योजना के तहत मजदूरी, सामग्री और प्रशासनिक खर्च को मिलाकर सालाना अनुमानित खर्च एक लाख 51 हजार करोड़ रुपये से अधिक होगा। इसमें केंद्र और राज्यों दोनों की हिस्सेदारी शामिल है।
उन्होंने बताया कि इस कुल राशि में से केंद्र सरकार का हिस्सा 95 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा होगा। यह आंकड़ा दर्शाता है कि केंद्र सरकार ग्रामीण विकास को कितनी गंभीरता से ले रही है।
राज्यों की भी अहम भूमिका
हालांकि योजना का बड़ा वित्तीय भार केंद्र सरकार उठा रही है, लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन में राज्यों की भूमिका भी अहम होगी। राज्यों को समय पर परियोजनाओं की योजना बनानी होगी, पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी और मजदूरों को समय पर भुगतान करना होगा।
पलायन पर लगेगी रोक
ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर होने वाला पलायन वर्षों से एक बड़ी सामाजिक समस्या रहा है। सरकार को उम्मीद है कि 125 दिन का रोजगार और बेरोजगारी भत्ते की गारंटी से गांवों में ही लोगों को काम मिलेगा और मजबूरी में शहर जाने की जरूरत कम होगी।
विकसित भारत का गांव-केंद्रित मॉडल
शिवराज सिंह चौहान ने साफ कहा कि विकसित भारत का मतलब केवल ऊंची इमारतें, एक्सप्रेसवे और स्मार्ट सिटी नहीं है। असली विकसित भारत वही होगा, जहां गांवों में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित हो।
उनके अनुसार, यह योजना गांधीजी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को आधुनिक भारत के संदर्भ में साकार करने की दिशा में बड़ा कदम है।