Unnao Rape Case: उन्नाव दुष्कर्म कांड एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत के दरवाजे तक पहुंच गया है। यह मामला केवल एक आरोपी या एक फैसले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस न्यायिक संवेदनशीलता की परीक्षा भी है, जिस पर आम नागरिक का भरोसा टिका होता है। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित करते हुए उन्हें सशर्त जमानत दी गई थी।
सीबीआई की सुप्रीम कोर्ट में दखल की वजह
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कुलदीप सेंगर की उस अपील पर सुनवाई करते हुए उनकी सजा पर रोक लगा दी थी, जो उन्होंने 2019 में मिली उम्रकैद के खिलाफ दायर की थी। हाईकोर्ट ने यह आदेश अपील लंबित रहने तक दिया और साथ ही उन्हें सशर्त जमानत भी प्रदान कर दी।
सीबीआई ने हाईकोर्ट के इस फैसले की समीक्षा के बाद यह महसूस किया कि मामला अत्यंत गंभीर प्रकृति का है और इसमें दोषसिद्ध व्यक्ति को राहत देना कई सवाल खड़े करता है। इसी के चलते एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप की मांग की है।
2019 की सजा और लंबा कानूनी सफर
कुलदीप सिंह सेंगर को वर्ष 2019 में विशेष सीबीआई अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही उन पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। यह फैसला उस समय आया था, जब पूरा देश इस मामले को बेहद करीब से देख रहा था।
जनवरी 2020 में सेंगर ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की थी। इसके बाद मार्च 2022 में उन्होंने सजा निलंबन की याचिका दाखिल की, जिस पर अब जाकर फैसला आया और विवाद की नई लकीर खिंच गई।
पीड़िता परिवार का विरोध और भावनात्मक पहलू
इस मामले में सबसे अहम और संवेदनशील पक्ष पीड़िता और उसका परिवार है। जमानत के फैसले के बाद पीड़िता पक्ष ने इसे न्याय के साथ अन्याय बताया है। उनका कहना है कि इतने गंभीर अपराध में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को राहत देना न सिर्फ उनके लिए, बल्कि समाज के लिए भी गलत संदेश देता है।
यह विरोध केवल कानूनी नहीं, बल्कि उस दर्द की अभिव्यक्ति है, जिसे पीड़िता ने वर्षों तक झेला है। ऐसे मामलों में फैसले सिर्फ कानून की किताबों से नहीं, बल्कि समाज की आत्मा से भी जुड़े होते हैं।
जेल में ही रहेगा सेंगर, फिर भी सवाल कायम
हालांकि तकनीकी रूप से कुलदीप सेंगर फिलहाल जेल से बाहर नहीं आएंगे। वह एक अन्य सीबीआई मामले में हत्या से जुड़े अपराध में 10 साल की सजा काट रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद दुष्कर्म मामले में सजा निलंबन और जमानत का आदेश अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
कानूनी जानकारों का मानना है कि ऐसे मामलों में राहत का आधार बेहद ठोस और संवेदनशील होना चाहिए, क्योंकि इसका असर केवल आरोपी पर नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक ढांचे की विश्वसनीयता पर पड़ता है।