शनिवार को कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी निर्णय लेने वाली संस्था कार्य समिति की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में पार्टी के शीर्ष नेताओं ने देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की और केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना को हटाकर नया कानून लाने के खिलाफ आगे की रणनीति तय करने पर विचार किया।
इस विस्तारित बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी शामिल हुए। इसके अलावा कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बैठक में मौजूद रहे। राज्य कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी इस बैठक में शामिल हुए।
देश की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा
कांग्रेस कार्य समिति की इस बैठक में देश में चल रही राजनीतिक गतिविधियों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने केंद्र सरकार की नीतियों और फैसलों का विश्लेषण किया। खासतौर पर मनरेगा जैसी लोककल्याणकारी योजना को बदलने के फैसले को लेकर गंभीर चिंता जताई गई।
बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि किस तरह से सरकार ने बिना किसी ठोस कारण के एक सफल योजना को बदल दिया। नेताओं ने महसूस किया कि यह फैसला गरीब और ग्रामीण लोगों के हितों के खिलाफ है।
मनरेगा से विकसित भारत योजना तक
केंद्र सरकार ने यूपीए सरकार के समय शुरू की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 यानी मनरेगा को हटा दिया है। इसकी जगह विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन ग्रामीण योजना लाई गई है। यह नया बिल संसद के हाल ही में समाप्त हुए शीतकालीन सत्र में पारित किया गया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी भी दे दी है।
नए कानून में 125 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है जबकि पुराने कानून में 100 दिन का प्रावधान था। लेकिन इस बदलाव के साथ कई अन्य बदलाव भी किए गए हैं जो चिंता का विषय बन गए हैं।
केंद्र और राज्य के बीच खर्च का बंटवारा
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि पहले यह योजना पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती थी। लेकिन अब नए कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को 60:40 के अनुपात में खर्च वहन करना होगा। इसका मतलब है कि राज्य सरकारों को अब इस योजना के लिए अपनी जेब से 40 फीसदी पैसा देना होगा।
यह बदलाव राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। खासकर उन राज्यों के लिए जो पहले से ही आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह फैसला राज्यों पर अतिरिक्त बोझ डालने के लिए लिया गया है।
महात्मा गांधी के नाम का हटाया जाना
कांग्रेस और विपक्षी दलों ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जताई है कि नए कानून से महात्मा गांधी का नाम हटा दिया गया है। पार्टी का कहना है कि यह राष्ट्रपिता के अपमान के समान है। योजना के शीर्षक से उनका नाम हटाना गांधीजी के विचारों और उनके योगदान को नकारने जैसा है।
विपक्षी दलों ने इसे सरकार की संकीर्ण मानसिकता बताया है। उनका तर्क है कि महात्मा गांधी सिर्फ किसी एक पार्टी की विरासत नहीं बल्कि पूरे देश के गौरव हैं।
आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी
यह बैठक अगले साल होने वाले असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले हुई है। इन राज्यों में चुनाव रणनीति तय करना भी इस बैठक का एक अहम उद्देश्य था।
पार्टी नेताओं ने इन राज्यों में जनता तक अपनी बात पहुंचाने के तरीकों पर विचार किया। खासतौर पर मनरेगा जैसे मुद्दे को चुनावी मुहिम में कैसे उठाया जाए इस पर गहन चर्चा हुई।
कांग्रेस शासित राज्यों की भूमिका
बैठक में कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। इन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है और नए कानून के लागू होने से इन राज्यों पर सीधा असर पड़ेगा।
मुख्यमंत्रियों ने बताया कि 40 फीसदी खर्च वहन करना उनके राज्यों के बजट पर कितना भारी पड़ेगा। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि अगर राज्य सरकारें अपना हिस्सा नहीं दे पाईं तो गरीब लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ेगा।
विपक्ष की एकजुटता की जरूरत
कांग्रेस नेताओं ने महसूस किया कि इस मुद्दे पर सभी विपक्षी दलों को एक साथ आना होगा। केवल कांग्रेस के अकेले विरोध से सरकार पर दबाव नहीं बनाया जा सकता। इसलिए अन्य विपक्षी दलों से संपर्क बढ़ाने और एक साझा रणनीति बनाने पर सहमति बनी।
जनता तक पहुंचने की योजना
बैठक में यह भी तय किया गया कि पार्टी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को इस नए कानून के नुकसान के बारे में बताएंगे। जनता को यह समझाया जाएगा कि कैसे पुरानी योजना बेहतर थी और नया कानून उनके हितों के खिलाफ है।
पार्टी सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से भी अपना संदेश फैलाने की योजना बना रही है। जनसभाओं, रैलियों और धरने-प्रदर्शन के जरिए भी सरकार पर दबाव बनाया जाएगा।
आगे की राह
कांग्रेस कार्य समिति की यह बैठक पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। पार्टी ने स्पष्ट रणनीति तैयार की है और आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ जोरदार अभियान चलाने का फैसला लिया है। मनरेगा का मुद्दा अब सिर्फ एक योजना का मुद्दा नहीं रहा बल्कि यह गरीबों के अधिकारों और महात्मा गांधी के सम्मान का सवाल बन गया है।