पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन समीक्षा प्रक्रिया में 32 लाख मतदाताओं को सुनवाई के लिए बुलाया गया है। इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बारासात से तृणमूल कांग्रेस की सांसद काकोली घोष दस्तीदार के परिवार के सदस्यों के नाम भी मसौदा मतदाता सूची से गायब हो गए हैं। इस घटना के बाद काकोली ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह जानबूझकर उन्हें और उनके परिवार को परेशान करने की कोशिश है।
काकोली घोष दस्तीदार की 90 वर्षीय मां, दोनों बेटे और एक बहन का नाम मसौदा मतदाता सूची में नहीं मिला। शनिवार से शुरू हुई सुनवाई प्रक्रिया में इन सभी को उपस्थित होने के लिए बुलाया गया है। काकोली 2009 से लोकसभा सांसद हैं और निचले सदन में तृणमूल की मुख्य सचेतक भी हैं।
चुनाव आयोग पर लगे गंभीर आरोप
काकोली घोष दस्तीदार ने चुनाव आयोग पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग बीजेपी के निर्देशों पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि बिना किसी कारण के नाम मसौदा सूची से हटा दिए गए हैं। उनके परिवार के सदस्य सच्चे मतदाता हैं, भारतीय नागरिक हैं और कई सालों से वोट डालते आ रहे हैं।
सांसद ने आगे कहा कि अगर एक मौजूदा सांसद के परिवार के सदस्यों, पूर्व राज्य मंत्री के बेटों के नाम मसौदा सूची में नहीं मिलते हैं, तो कोई सिर्फ कल्पना कर सकता है कि राज्य में क्या हो रहा है। उनका आरोप है कि बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हर तरीके का इस्तेमाल कर रही है।
किन परिवार सदस्यों के नाम हैं गायब
काकोली की मां इरा मित्रा और बहन पियाली उत्तर 24 परगना जिले के मध्यमग्राम में एक बूथ की मतदाता हैं। वहीं उनके दोनों बेटे विश्वनाथ और बैद्यनाथ दक्षिण कोलकाता में मतदाता हैं। दोनों बेटे डॉक्टर हैं और काफी जाने-माने हैं। मां और बेटी को बारासात ब्लॉक नंबर 2 कार्यालय में बुलाया गया है जबकि बेटों को कोलकाता में हाजिर होना है।
क्या है विशेष गहन समीक्षा प्रक्रिया
बंगाल की 294 विधानसभा सीटों के लिए मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा के तहत सुनवाई शनिवार से शुरू हो गई है। पूरे राज्य में 3,234 केंद्रों पर यह सुनवाई हो रही है। हर विधानसभा सीट में 11 टेबलों पर सुनवाई की जा रही है, यानी कुल 3,234 टेबल लगाए गए हैं। इनमें से 121 टेबल कोलकाता में हैं।
इन सुनवाई केंद्रों पर 4,500 से अधिक सूक्ष्म पर्यवेक्षकों की निगरानी में काम हो रहा है। इन्हें चुनाव पंजीकरण अधिकारी, सहायक रिटर्निंग अधिकारी, बूथ स्तरीय अधिकारी और पर्यवेक्षकों द्वारा अधिकृत किया गया है।
कौन से दस्तावेज हैं जरूरी
चुनाव आयोग ने पहचान और पते के प्रमाण के लिए 12 दस्तावेजों को मान्यता दी है। हालांकि, सिर्फ आधार कार्ड को प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। जिन लोगों को बुलाया गया है उन्हें अन्य दस्तावेजों के साथ सुनवाई में शामिल होना होगा।
बीजेपी का जवाब
बीजेपी ने तृणमूल सांसद के आरोपों को खारिज कर दिया है। बीजेपी की बंगाल इकाई के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहा कि चुनाव आयोग ने जरूर दस्तावेजों में किसी बेमेल के कारण उन्हें बुलाया होगा।
सिन्हा ने कहा कि लगभग 30 लाख मतदाताओं को इसी कारण से बुलाया गया है। उन्हें बस सुनवाई में शामिल होना है और स्पष्ट करना है कि उनके नाम क्यों मैप नहीं हो सके। हर बात में साजिश देखने की जरूरत नहीं है।
2002 की मतदाता सूची से जुड़ाव नहीं
चुनाव आयोग ने जिन 32 लाख मतदाताओं को बुलाया है, वे ‘अनमैप्ड वोटर्स’ की श्रेणी में आते हैं। इसका मतलब है कि इन मतदाताओं का 2002 की मतदाता सूची से कोई जुड़ाव स्थापित नहीं हो सका। इसी वजह से इन्हें प्राथमिक सुनवाई के लिए बुलाया जा रहा है।
यह प्रक्रिया विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को साफ और सटीक बनाने के लिए की जा रही है। लेकिन काकोली जैसी राजनीतिक हस्तियों के परिवार के नाम गायब होने से यह मुद्दा राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है।
राजनीतिक तनाव बढ़ा
इस पूरे मामले ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है। तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी चुनाव आयोग के माध्यम से उनके मतदाताओं को निशाना बना रही है। वहीं बीजेपी कहती है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है और इसमें कोई राजनीति नहीं है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन 32 लाख मतदाताओं की सुनवाई कैसे होती है और कितने लोगों के नाम फिर से मतदाता सूची में शामिल किए जाते हैं। फिलहाल यह मुद्दा बंगाल की राजनीति में गर्मागर्म बहस का विषय बना हुआ है।