Unnao Rape Case: उन्नाव दुष्कर्म मामला एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत के दरवाजे पर पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दी गई उम्रकैद की सजा को निलंबित किए जाने के फैसले के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय कल 29 दिसंबर को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई न केवल एक व्यक्ति विशेष से जुड़ा मामला है, बल्कि इसमें कानून की व्याख्या, जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही और पीड़ितों को मिलने वाले न्याय के सवाल भी जुड़े हुए हैं।
यह मामला ऐसे समय में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया है, जब अदालत शीतकालीन अवकाश पर है। इसके बावजूद इसकी गंभीरता को देखते हुए इसे अवकाशकालीन पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय में क्यों अहम है यह सुनवाई
सीबीआई की याचिका भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष रखी गई है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट 5 जनवरी से नियमित रूप से कार्य करना शुरू करेगा, इसलिए यह सुनवाई अंतरिम तौर पर बेहद निर्णायक मानी जा रही है।
सीबीआई ने अदालत से आग्रह किया है कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई राहत पर पुनर्विचार किया जाए, क्योंकि इससे न्याय प्रक्रिया और पीड़िता के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सजा निलंबन पर सवाल
उच्च न्यायालय ने इस सप्ताह की शुरुआत में कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत देते हुए उनकी उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया था। अदालत का तर्क था कि इस मामले में सेंगर को ‘लोक सेवक’ की श्रेणी में नहीं माना जा सकता, इसलिए सजा के आधार पर दी गई कठोरता पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
निचली अदालत का दृष्टिकोण
दिल्ली की निचली अदालत ने दिसंबर 2019 में कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि एक विधायक होने के नाते सेंगर ‘लोक सेवक’ की परिभाषा में आते हैं और इस कारण उनके द्वारा किया गया अपराध अधिक गंभीर श्रेणी में रखा जाएगा।
उच्च न्यायालय की अलग व्याख्या
इसके विपरीत उच्च न्यायालय ने कहा कि विधायक को स्वतः ‘लोक सेवक’ मानना कानूनन सही नहीं है। इसी आधार पर सजा निलंबित कर जमानत दी गई। यही बिंदु अब सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ा कानूनी विवाद बनकर उभरा है।
सीबीआई का तर्क
सीबीआई का कहना है कि उच्च न्यायालय ने कानून की व्याख्या में गंभीर त्रुटि की है। एजेंसी के अनुसार, जनप्रतिनिधि होने के कारण विधायक जनता के प्रति जवाबदेह होता है और इसलिए उसे ‘लोक सेवक’ की श्रेणी से बाहर नहीं किया जा सकता।
उन्नाव मामला क्यों बना राष्ट्रीय बहस
उन्नाव दुष्कर्म मामला केवल एक आपराधिक केस नहीं रहा, बल्कि यह सत्ता, दबाव और न्याय के बीच संघर्ष का प्रतीक बन गया। पीड़िता ने जिस तरह धमकियों और सामाजिक दबाव के बावजूद न्याय की लड़ाई लड़ी, उसने पूरे देश का ध्यान इस मामले की ओर खींचा।
इस केस में पहले भी कई बार यह सवाल उठ चुका है कि क्या प्रभावशाली लोगों को कानून से अलग नजर से देखा जाता है। सेंगर को मिली राहत के बाद एक बार फिर यही चर्चा तेज हो गई है कि क्या पीड़ितों को अंत तक न्याय मिल पाता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह तय कर सकता है कि भविष्य में जनप्रतिनिधियों को ‘लोक सेवक’ की श्रेणी में किस तरह देखा जाएगा। यह फैसला सिर्फ इस मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आगे आने वाले कई मामलों की दिशा तय कर सकता है।
यह सुनवाई पीड़ितों के अधिकारों और न्यायिक संवेदनशीलता की भी परीक्षा है। अगर सजा निलंबन पर रोक लगती है, तो यह संदेश जाएगा कि गंभीर अपराधों में दोषियों को राहत देना आसान नहीं है।