सर्वोच्च न्यायालय का तिहासिक फैसला
देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर न्याय की उम्मीद जगाई है। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 2017 में हुए दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को रोक दिया जिसमें पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत को मंजूरी दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली छुट्टी की पीठ ने यह अहम फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।
सेंगर को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने पीड़िता को भी अपनी याचिका के साथ इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दे दी है। यह फैसला केंद्रीय जांच ब्यूरो की उस अपील पर आया जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पीड़िता को मिली राहत
इस फैसले से उन्नाव दुष्कर्म कांड की पीड़िता को बड़ी राहत मिली है। सुनवाई से पहले पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में अपना भरोसा जताते हुए कहा था कि उसे न्याय मिलेगा। उसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी अपने और अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने की गुहार लगाई थी।
पीड़िता ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि कुलदीप सेंगर ने जांच अधिकारी सहित कई अधिकारियों और दिल्ली हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को रिश्वत दी है। उसने कहा कि सेंगर को जमानत मिलने के बाद से उसके परिवार को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
दिल्ली हाईकोर्ट का विवादित फैसला
इस सप्ताह की शुरुआत में दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया था। यह फैसला काफी विवादित रहा क्योंकि हाईकोर्ट ने कहा था कि सेंगर के विधायक होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें ‘लोक सेवक’ माना जाए।
जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन की पीठ ने यह भी कहा था कि इस मामले में बच्चों से यौन अपराध से संबंधित कानून पोक्सो लागू नहीं होता। अदालत ने यह भी कहा कि सेंगर ने अब तक साढ़े सात साल की सजा काट ली है जो इस मामले में कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा से अधिक है।
जमानत की शर्तें और विरोध
कुलदीप सेंगर को शर्तों के साथ जमानत दी गई थी। इन शर्तों में 15 लाख रुपये का व्यक्तिगत मुचलका, दिल्ली न छोड़ने और पीड़िता से पांच किलोमीटर की दूरी बनाए रखने का वादा शामिल था।
इस रिहाई की देशभर में तीखी आलोचना हुई। दिल्ली में केंद्रीय सुरक्षा बलों द्वारा विरोध कर रही पीड़िता और उसकी मां के साथ किए गए बर्ताव ने देश को झकझोर दिया। पिछले हफ्ते इस घटना पर गुस्सा और तनाव का माहौल बना रहा।
दिल्ली में हुई शर्मनाक घटना
मंगलवार और बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय बलों और पीड़िता के परिवार के बीच झड़प हुई। डरावने वीडियो में दिखाया गया कि किस तरह पीड़िता की मां को चलती बस से कूदने के लिए मजबूर किया गया और फिर बस उनकी बेटी को लेकर चली गई।
पत्रकारों से बात करते हुए मां ने रोते हुए कहा, “हमें न्याय नहीं मिला। मेरी बेटी को बंधक बना लिया गया है। ऐसा लगता है कि वे हमें मारना चाहते हैं।”
सीआरपीएफ अधिकारी ने बाद में दावा किया कि पीड़िता को घर वापस ले जाया जा रहा था, लेकिन मां को बस से उतारने पर कोई औपचारिक बयान नहीं आया।
पूरा मामला क्या है
2017 का उन्नाव दुष्कर्म मामला बेहद संवेदनशील और गंभीर है। उस समय नाबालिग थी लड़की के साथ तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर ने दुष्कर्म किया था। मामला तब और गंभीर हो गया जब पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत हो गई। सेंगर को इस मामले में भी सजा मिली है और वह अभी भी इस सजा की अवधि काट रहे हैं।
सीबीआई की भूमिका
केंद्रीय जांच ब्यूरो इस मामले में मुख्य जांच और अभियोजन एजेंसी रही है। सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एजेंसी का तर्क था कि सेंगर जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को जमानत देना न्याय के खिलाफ होगा और इससे पीड़िता को खतरा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की याचिका को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट के फैसले को रोक दिया। अदालत ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से समझौता करने का सवाल नहीं है, लेकिन पीड़िता की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले पर जनता की प्रतिक्रिया बेहद तीखी रही है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाए कि आखिर कब तक प्रभावशाली लोगों को कानून से बचने का मौका मिलता रहेगा। महिला संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
आगे की राह
अब कुलदीप सेंगर को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब देना होगा। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी। पीड़िता और उसके परिवार को उम्मीद है कि अब उन्हें सही मायने में न्याय मिलेगा और वे सुरक्षित रह पाएंगे।
यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि हमारे देश में न्याय व्यवस्था भले ही धीमी हो, लेकिन अंततः सच्चाई की जीत होती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए पीड़िता के हक में फैसला दिया है, जो भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक सकारात्मक संकेत है।