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उन्नाव रेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर लगाई रोक, जानें पूरा मामला

Unnao Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर लगाई रोक
Unnao Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर लगाई रोक (File Photo)
सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई सशर्त जमानत पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा को तकनीकी मुद्दा बताते हुए जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मामला है और जमानत उचित नहीं है। सेंगर को 2019 में आजीवन कारावास की सजा हुई थी।
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उत्तर प्रदेश के उन्नाव रेप केस ने एक बार फिर से सुर्खियां बटोरी हैं। भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट ने जो सशर्त जमानत दी थी, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। यह मामला देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि इसमें एक नाबालिग के साथ रेप और सत्ता के दुरुपयोग के गंभीर आरोप शामिल हैं।

29 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कुलदीप सिंह सेंगर को मिली राहत पर विराम लगा दिया। इस फैसले से पीड़िता पक्ष को बड़ी राहत मिली है। लेकिन सवाल यह उठता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आखिर किस आधार पर कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक क्यों लगाई।

कुलदीप सिंह सेंगर को क्यों मिली थी जमानत

दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर 2025 को कुलदीप सिंह सेंगर को सशर्त जमानत देते हुए उनकी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया था। यह फैसला तब आया जब सेंगर ने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब तक अपील का निपटारा नहीं होता, तब तक सजा को लागू रखना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने माना कि इस मामले में कुछ तकनीकी कानूनी मुद्दे हैं जिन पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है।

जमानत देने के पीछे के कारण

हाईकोर्ट ने जमानत देते समय कई बातों को ध्यान में रखा। सबसे पहले, कोर्ट ने यह देखा कि कुलदीप सिंह सेंगर पहले से ही काफी समय जेल में बिता चुके हैं। दूसरा, कोर्ट ने कहा कि मामले में कुछ कानूनी पेचीदगियां हैं जिन पर गहराई से विचार करना जरूरी है।

हाईकोर्ट ने जमानत देते समय कुछ सख्त शर्तें भी लगाई थीं। इनमें बांड भरना, कुछ जगहों पर न जाना और नियमित रूप से कोर्ट में पेश होना शामिल था। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सेंगर पीड़िता या उसके परिवार के संपर्क में नहीं आएंगे।

पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा पर विवाद

दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत का सबसे बड़ा आधार ‘पब्लिक सर्वेंट’ यानी लोक सेवक की परिभाषा को बताया। यह इस मामले का सबसे अहम कानूनी पहलू बन गया।

ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि एक विधायक को लोक सेवक माना जाना चाहिए। इस आधार पर कोर्ट ने पोक्सो एक्ट की सबसे गंभीर धाराओं को लागू किया था, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट में ‘पब्लिक सर्वेंट’ शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। इसलिए इसे समझने के लिए अन्य कानूनों का सहारा लेना होगा। यह एक तकनीकी मुद्दा है जिस पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है।

क्या है पोक्सो एक्ट में लोक सेवक का प्रावधान

पोक्सो एक्ट यानी बच्चों के यौन शोषण से सुरक्षा का कानून बहुत सख्त है। इस कानून में अगर अपराधी कोई लोक सेवक हो तो सजा और भी कड़ी हो जाती है।

कानून में यह माना गया है कि लोक सेवक की स्थिति का दुरुपयोग करके अगर कोई अपराध किया जाता है तो यह और भी गंभीर है। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा भी बहुत सख्त होती है और अधिकतम सजा आजीवन कारावास या उससे भी अधिक हो सकती है।

ट्रायल कोर्ट ने यही आधार लेते हुए कुलदीप सिंह सेंगर को कड़ी सजा सुनाई थी क्योंकि वह उस समय विधायक थे।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने 29 दिसंबर को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि इस तरह के गंभीर मामलों में जमानत देना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया।

कोर्ट ने कहा कि यह मामला केवल तकनीकी कानूनी मुद्दों का नहीं है, बल्कि इसमें एक नाबालिग के साथ हुए गंभीर अपराध का सवाल है। ऐसे में जमानत देना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

उन्नाव रेप केस की पृष्ठभूमि

यह मामला 2017 का है जब उन्नाव की एक नाबालिग लड़की ने कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप का आरोप लगाया था। उस समय सेंगर भाजपा के विधायक थे और काफी प्रभावशाली माने जाते थे।

मामला तब और गंभीर हो गया जब पीड़िता के परिवार पर दबाव बनाया गया और उनके पिता की जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इसके बाद पीड़िता ने खुद मुख्यमंत्री के आवास के सामने न्याय की गुहार लगाई।

मामले की सुनवाई और फैसला

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई दिल्ली की एक विशेष अदालत में करवाई। 2019 में ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

कोर्ट ने कहा था कि सेंगर ने अपनी शक्ति और प्रभाव का दुरुपयोग करके यह घिनौना अपराध किया है। पीड़िता के परिवार के साथ जो व्यवहार किया गया, वह भी बेहद निंदनीय है।

क्या है आगे की राह

अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रोक लगा दी है, कुलदीप सिंह सेंगर को फिर से जेल भेजा जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट में उनकी अपील की सुनवाई जारी रहेगी, लेकिन तब तक वह जेल में ही रहेंगे।

यह मामला एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा किए गए अपराधों में न्याय कैसे मिले। पीड़िता और उसके परिवार को न्याय दिलाना बेहद जरूरी है।

यह केस यह भी दिखाता है कि हमारे कानूनी सिस्टम में अभी भी कई खामियां हैं। तकनीकी कानूनी मुद्दों के नाम पर अपराधियों को राहत मिल जाती है, जो चिंता का विषय है। जरूरत इस बात की है कि कानून को और मजबूत बनाया जाए ताकि ऐसे मामलों में तेजी से और सही न्याय मिल सके।

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Asfi Shadab

एक लेखक, चिंतक और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता, जो खेल, राजनीति और वित्त की जटिलता को समझते हुए उनके बीच के रिश्तों पर निरंतर शोध और विश्लेषण करते हैं। जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरल, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध।