मतदाता सूची में नाम का संशोधन कराने के लिए शारीरिक रूप से अक्षम और बुजुर्ग लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बसीरहाट और हिंगलगंज में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां बिस्तर पर पड़े बुजुर्गों को परिवार वाले उठाकर संशोधन शिविर तक लाने को मजबूर हुए। इस स्थिति पर परिवार वालों ने नाराजगी जताते हुए मांग की है कि चुनाव विभाग के अधिकारियों को ऐसे मामलों में घर-घर जाकर संशोधन का काम करना चाहिए।
बसीरहाट में 70 वर्षीय दिव्यांग को उठाकर लाना पड़ा
बसीरहाट पौरसभा के 21 नंबर वार्ड के सुकांत पल्ली निवासी 70 वर्षीय प्रद्युत कुंडू शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम हैं। वे बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं और चल-फिर नहीं सकते। लेकिन मतदाता सूची में उनके नाम के संशोधन के लिए उन्हें संशोधन शिविर में बुलाया गया।
दरअसल, 2002 में मतदाता सूची में उनका नाम गणेश कुंडू दर्ज था। इसी नाम में समस्या थी। बाद में उन्होंने कोर्ट के माध्यम से एफिडेविट करवाकर अपना नाम प्रद्युत कुंडू करवा लिया। उनके अन्य सरकारी दस्तावेजों और 2002 के बाद की मतदाता सूची में प्रद्युत कुंडू नाम ही दर्ज है।
इस नाम के संशोधन के लिए आज उन्हें बसीरहाट हाईस्कूल स्थित संशोधन केंद्र में बुलाया गया। परिवार के सदस्यों को उन्हें उठाकर संशोधन केंद्र तक लाना पड़ा। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद अन्य लोग भी द्रवित हो गए।
परिवार की पीड़ा
प्रद्युत कुंडू के बेटे गोबिंद कुंडू ने इस पूरी स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनके पिता की हालत किसी से छिपी नहीं है। वे पूरी तरह से बिस्तर पर ही हैं और उन्हें हिलाना-डुलाना भी मुश्किल है। ऐसे में उन्हें संशोधन केंद्र तक लाना बेहद कठिन काम था। उन्होंने मांग की कि चुनाव विभाग के अधिकारियों को ऐसे मामलों में घर पर जाकर संशोधन का काम करना चाहिए।
हिंगलगंज में बिस्तर पर पड़ी बुजुर्ग महिला की मजबूरी
इसी तरह का एक और मामला हिंगलगंज के स्वरूपकाठी 51 नंबर बूथ से सामने आया। यहां ननीबाला गाइन नाम की एक बुजुर्ग महिला हैं जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। वे कई सालों से बिस्तर पर ही पड़ी हुई हैं।
ननीबाला गाइन के नाम में भी कुछ गलती थी। उस गलती को सुधारने के लिए उन्हें भी संशोधन शिविर में बुलाया गया। परिवार के लोगों को उन्हें भी कोलों में उठाकर शिविर तक लाना पड़ा। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद लोगों ने भी चुनाव विभाग की इस कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।
परिजनों ने उठाई आवाज
ननीबाला गाइन की रिश्तेदार तपती गाइन ने इस स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसे बुजुर्ग और दिव्यांग लोगों को शिविर तक लाना बहुत मुश्किल है। उन्हें शारीरिक कष्ट भी होता है। अगर चुनाव विभाग के अधिकारी घर-घर जाकर ऐसे लोगों के नाम का संशोधन करते तो इन बुजुर्गों को इतना कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया
मतदाता सूची में नाम, पता, या अन्य जानकारी में गलती होने पर संशोधन कराना जरूरी होता है। चुनाव आयोग समय-समय पर विशेष संशोधन शिविर आयोजित करता है जहां लोग अपनी गलतियां सुधरवा सकते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में शारीरिक रूप से अक्षम, बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं होती।
मौजूदा व्यवस्था में कमी
वर्तमान व्यवस्था के अनुसार, संशोधन के लिए व्यक्ति को स्वयं शिविर में उपस्थित होना जरूरी है। लेकिन जो लोग चल-फिर नहीं सकते, उनके लिए यह बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे मामलों में परिवार वाले उन्हें किसी तरह उठाकर लाते हैं, जिससे बुजुर्गों को शारीरिक कष्ट होता है।
परिवारों की मांग
दोनों ही मामलों में परिवार वालों ने एक ही मांग उठाई है। उनका कहना है कि चुनाव विभाग को ऐसे विशेष मामलों के लिए घर-घर जाकर संशोधन की व्यवस्था करनी चाहिए। जो लोग शारीरिक रूप से अक्षम हैं, बिस्तर पर पड़े हैं, या बहुत बुजुर्ग हैं, उनके घर जाकर अधिकारी काम कर सकते हैं।
अन्य राज्यों में व्यवस्था
कुछ राज्यों में ऐसी व्यवस्था पहले से मौजूद है जहां दिव्यांग और बुजुर्ग मतदाताओं के लिए घर पर जाकर सुविधा दी जाती है। चुनाव के समय भी ऐसे मतदाताओं के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। लेकिन मतदाता सूची संशोधन के मामले में अभी भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
संवेदनशीलता की जरूरत
इन घटनाओं से यह साफ होता है कि चुनाव विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में संवेदनशीलता लानी होगी। जो लोग शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, उनके लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। यह केवल सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि मानवीय संवेदना का भी सवाल है।
तकनीकी समाधान भी संभव
आज के डिजिटल युग में ऐसे मामलों के लिए तकनीकी समाधान भी संभव है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या घर पर जाकर बायोमेट्रिक सत्यापन करके संशोधन का काम किया जा सकता है। इससे बुजुर्गों और दिव्यांगों को शिविर तक आने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बसीरहाट और हिंगलगंज में हुई इन घटनाओं ने चुनाव प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी को उजागर किया है। प्रद्युत कुंडू और ननीबाला गाइन जैसे बुजुर्गों को जो कष्ट उठाना पड़ा, वह किसी भी संवेदनशील व्यवस्था में नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और ऐसे विशेष मामलों के लिए घर-घर जाकर संशोधन की व्यवस्था बनानी चाहिए। यह न केवल बुजुर्गों और दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा होगी, बल्कि लोकतंत्र को और मजबूत भी बनाएगी।