संपादकीय-शैली में न्यूज़ रिपोर्ट: अनुराग कश्यप का AI-निर्मित फिल्म ‘चिरंजीवी हनुमान’ पर तीखा प्रहार
नई दिल्ली / मुंबई | अगस्त 2025 – फ्यूचर का फ़िल्मी परिदृश्य बदल गया है, और इसके बीच अनुभवी फिल्ममेकर्स का सशक्त विरोध खड़ा हुआ है। अनुराग कश्यप ने हाल ही में ‘Chiranjeevi Hanuman – The Eternal’ नामक एआई-निर्मित फिल्म की निर्माताओं को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस बहुप्रचारित फिल्म को “Made-in-AI” और “Made in India” के रूप में पेश किया गया है, लेकिन कश्यप को यह परियोजना मानवीय सृजनात्मकता की हत्या नजर आ रही है।
Sources: The Times of India, PINKVILLA, afaqs!
Anurag Kashyap News: विरोध का स्वर | Chiranjivi Hanuman Controversy News
Anurag Kashyap News: कश्यप ने विजय सुब्रमण्यम—जो कलाकारों की एजेंसी Collective Artists Network के संस्थापक और CEO भी हैं—पर निशाना साधा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा:
“Congratulations … Here is the man heading the … that represents artists, writers, directors, now producing a film made by AI. So much for looking after creators.”
“किसी कलाकार में आत्मसम्मान है तो उसे इससे सवाल उठाना चाहिए या इससे एजेंसी छोड़ देनी चाहिए… ये ‘Made in AI’ भविष्य है, जब रचनाकारों की पूरी जगह मशीनें ले लेंगी।” PINKVILLAThe Times of India
इन्होने इसे “रचनाकारों के साथ धोखा” करार देते हुए, निर्माताओं को “शर्म ही काफी नहीं, गटर (नाली) में जाने के योग्य” तक बताया।
Source: Maharashtra Times
Anurag Kashyap News: रचनाकारों और फिल्म उद्योग की चिंता
अनुराग कश्यप के साथ ही विक्रमादित्य मोतवाने ने भी चिंता जताई:
“And so it begins… Who needs writers and directors when it’s ‘Made in AI’.”
Source: The Indian Express, afaqs!
इस प्रकरण को पहले से चल रहे ‘Raanjhanaa’ की AI-रिलीज विवाद से जोड़ा जा रहा है, जिसमें कलाकारों और निर्देशक ने इसे “अधिकारभ्रष्ट” बताया था।
Source: afaqs!, India Today
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निष्कर्ष — रचनात्मकता और तकनीक का टकराव
Anurag Kashyap News: कश्यप और मोतवाने का विरोध केवल निजी राय नहीं, बल्कि यह एक चेतावनी है—जहाँ तक संभव हो, AI का उपयोग तकनीकी उपकरण तक सीमित रहना चाहिए, पूरी फिल्म निर्माण की जगह मशीनों को नहीं दी जानी चाहिए। यह सिर्फ कला की रक्षा नहीं, बल्कि उन कलाकारों के भविष्य की भी बात है जो अपनी मेहनत और संवेदना से कहानियाँ कहते हैं।
जैसे-जैसे AI फ़िल्मों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, सवाल ढेर सारे हैं:
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क्या रचनाकार मशीनों से प्रतिस्पर्धा कर पायेंगे?
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क्या हमारी कला संरचना इसी राह पर आगे बढ़ेगी, या संवेदना बनी रहेगी?
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और सबसे अहम—क्या इसे नियंत्रित करने के कोई नैतिक मानदंड बनेंगे?